भोपाल। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि वीरांगना रानी दुर्गावती का योगदान ऐतिहासिक था। शौर्य की प्रतीक रानी युद्ध संचालन में दक्ष थीं। उन्होंने बाहरी हमलावरों को निरंतर परास्त किया। लगातार 51 युद्ध जीतने के बाद उनका आखिरी युद्ध भी प्रेरणादायी था, जिसमें उन्होंने पराजय की स्थिति देखते हुए शत्रु के हाथ मारे जाने की बजाय कटार भोंककर स्वयं की इहलीला समाप्त की। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि वीरांगना रानी दुर्गावती की राजधानी में मंत्रि-परिषद की बैठक और रानी दुर्गावती के जीवन से जुड़े अन्य स्थानों पर विविध कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। दमोह जिले में सिंग्रामपुर गांव के निकट सिंगौरगढ़ का किला है। यह क्षेत्र वीरांगना रानी दुर्गावती की राजधानी के रूप में इतिहास में दर्ज है।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने बैठक में निर्देश दिए कि वीरांगना की स्मृति में जबलपुर में 100 करोड़ रूपए की लागत से निर्मित किए जा रहे रानी दुर्गावती स्मारक स्थल और उद्यान के कार्य शीघ्र करवाने की कार्यवाही की जाए। इन कार्यों की सतत समीक्षा भी की जाए। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी इस स्मारक स्थल की आधारशिला रख चुके हैं। इस कार्य की एजेंसी मध्यप्रदेश राज्य पर्यटनविकास निगम है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने वीरांगना की जन्मतिथि पर आगामी 05 अक्टूबर को भी विशेष कार्यक्रम के आयोजन के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार ने वीरांगना रानी दुर्गावती के सम्मान में मंत्रि-परिषद की प्रथम बैठक 3 जनवरी 2024 को जबलपुर में आयोजित की थी। इसके साथ ही वीरांगना के नाम पर रानी दुर्गावती श्रीअन्न प्रोत्साहन योजना भी प्रारंभ की गई।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि वीरांगना रानी दुर्गावती ने पति दलपत शाह की मृत्यु के बाद अपने राज्य की रक्षा के लिए गोंडवाना साम्राज्य की बागडोर संभाली। इनके राज्य में प्रशासनिक व्यवस्था ऐसी थी कि करों का भुगतान सोने के सिक्के और हाथी देकर किया जाता है। वीरांगना ने जबलपुर में रानीताल, चेरीताल और आधारताल सहित अनेक सरोवरों का निर्माण करवाया। उन्होंने शिक्षा और पारम्परिक ज्ञान को प्रोत्साहित किया। कई मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण भी करवाया।