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कभी हाथ से बनते थे मूवी पोस्टर्स:स्पेलिंग की गलतियां भारी पड़ती थीं

आपको महेश भट्ट की सुपरहिट फिल्म आशिकी का यह पोस्टर तो याद ही होगा। पोस्टर का ही कमाल था कि फिल्म रिलीज होने से पहले ही चर्चा में आ गई। दिलचस्प बात यह है कि पोस्टर में दिखा शॉट फिल्म में था ही नहीं। चूंकि पोस्टर ही इतना ज्यादा हिट हो गया कि महेश भट्ट को बकायदा वो सीन शूट कराकर फिल्म में डालना पड़ा।

पुराने समय में पोस्टर्स ही एकमात्र साधन होते थे, जिनसे कि फिल्मों का प्रचार-प्रसार होता था। पोस्टर आर्टिस्ट 15-16 रील की एक फिल्म को 15-16 फीट के एक होर्डिंग में समेट देते थे।

एक फिल्म के लाखों पोस्टर्स छपते थे। मुंबई से ये पोस्टर्स छपकर पूरे देश में ट्रेन के जरिए भेजे जाते थे। कंप्यूटर युग के पहले हाथ से पोस्टर्स बनाए जाते थे। एक्टर्स पहले फोटोशूट कराते थे, फिर पोस्टर आर्टिस्ट फोटो को देख उसे पेपर या कपड़े पर उतारते थे।

रील टु रियल के नए एपिसोड में हम पोस्टर आर्टिस्ट आत्मानंद गोलतकर से बात करेंगे। आत्मानंद 50 साल से ज्यादा समय से फिल्मों के पोस्टर्स बना रहे हैं। 1978 में इन्होंने इस काम की शुरुआत की थी। उस वक्त हाथ से पोस्टर्स बनाए जाते थे।

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