भोपाल। जनजातीय समाज प्रकृति पूजक समाज है। प्रकृति के सबसे निकटतम और श्रेष्ठ जीवन पद्धति का परिचायक, जनजातीय समाज है। उनकी जीवन पद्धति, दर्शन, सभ्यता और विरासत में प्रकृति का महत्व समाहित है। पर्यावरण की वैश्विक चुनौती का समाधान, जनजातीय समाज की जीवन सभ्यता में पारंपरिक रूप से परिलक्षित है। यह बात उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री श्री इन्दर सिंह परमार ने रविवार को राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय भोपाल के नॉलेज रिसोर्स सेंटर स्थित सभागार में "जनजातीय विषय पर शोध एवं पाठ्यक्रम निर्माण हेतु" आयोजित दो दिवसीय अखिल भारतीय कार्यशाला के समापन के अवसर पर कही। श्री परमार ने कहा कि सभी को जनजातीय समाज के दर्शन, इतिहास, विरासत संस्कृति, जीवन पद्धति और सभ्यता को जानने के लिए उनके मध्य जाने की आवश्यकता है। जनजातीय समाज में स्वाभिमान का दर्शन मिलता है। उन्होंने कहा कि वह स्वयं व्यक्तिगत रूप से जनजातीय समाज के जीवन पद्धति और दर्शन से प्रभावित हैं। जनजातीय समाज के समग्र विकास के लिए जीवन पद्धति और दर्शन पर अध्ययन और शोध करने की आवश्यकता है। श्री परमार ने कहा कि जनजातीय बाहुल्य क्षेत्रों में सिकलसेल रोग के नियंत्रण और उन्मूलन के लिए आयुष विभाग अंतर्गत व्यापक कार्ययोजना के साथ कार्य कर रहे हैं।
तकनीकी शिक्षा मंत्री श्री परमार ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य में प्रदेश में तीव्र गति से क्रियान्वयन हो रहा है। इस अनुक्रम में प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के पुस्तकालयों को जनजातीय समाज से जुड़े साहित्य से समृद्ध करने की आवश्यकता है। श्री परमार ने कहा कि पुस्तकों और पाठ्यक्रमों के अतिरिक्त भी जनजातीय समाज से जुड़े समस्त साहित्य भी उपलब्ध होना चाहिए। श्री परमार ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रदेश के सभी शासकीय एवं अशासकीय विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में सघन विकसित करने के उद्देश्य से ही "विद्यावन" के रूप में अभिनव पहल की गई है।
जनजाति शोध एवं अनुशीलन केंद्र नई दिल्ली, जनजातीय अनुसंधान एवं विकास संस्था भोपाल एवं राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय भोपाल के संयुक्त तत्वाधान में दो दिवसीय कार्यशाला हुई। विभिन्न विषय विशेषज्ञों ने जनजातीय समाज से जुड़े विविध विषयों पर व्यापक विचार विमर्श किया। कार्यशाला के प्रथम दिवस जनजातीय समाज की अस्मिता, अस्तित्व और विकास पर व्यापक चर्चा हुई और द्वितीय दिवस पाठ्यक्रम निर्माण को लेकर विचार मंथन हुआ। जनजातीय समाज की अस्मिता (संस्कृति, दर्शन, जीवन पद्धति आदि) को जानने के बाद ही उनके अस्तित्व को समझा जा सकता है। उनकी अस्मिता और अस्तित्व के गहन अध्ययन के बाद ही उनके समग्र विकास के लिए मार्ग प्रशस्त होगा। कार्यशाला में जनजातीय अध्ययन को बढ़ावा देने, शोध एवं अध्ययन की दृष्टि आदि सार्थक विषयों पर व्यापक विचार विमर्श कर दस्तावेजीकरण के लिए कार्ययोजना बनाए जाने पर भी चर्चा हुई।