नई दिल्ली। नाना पाटेकर द्वारा अभिनीत एक फ़िल्म का संवाद है कि “ एक साल मच्छर अच्छे ख़ासे मर्द को हिजड़ा बना देता है।“ यह संवाद अब किसी भी सरकार पर ज्यों का त्यों चस्पाँ किया जा सकता है। भारत जी हाँ अपना भारत, दुनिया के उन 15 देशों में शामिल है, जो मलेरिया से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। देश के उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, त्रिपुरा, मेघालय और उत्तरपूर्व के दूसरे राज्यों में मलेरिया बेहद संक्रामक बीमारी है।
करीब एक सौ तीस सालों से निरंतर जानकारी में होने के बावजूद मेडिकल साइंस अभी भी मलेरिया से पार नहीं पा सकी। आज भी पूरी दुनिया में मलेरिया बड़े पैमाने पर इंसानी जान के लिए खतरा है। प्रतिवर्ष 5-6 लाख लोगों की मौतें मलेरिया के कारण हो जाती हैं, इसलिए हर साल मच्छरों के काटने से फैलने वाली इस बीमारी से बचाव के लिए पूरी दुनिया के विशेषज्ञ डॉक्टर 25 अप्रैल को अपनी जानकारियों और इससे निपटने के अपने अनुभव एक-दूसरे से साझा करते हैं ताकि इस पर पार पाया जा सके। चार्ल्स लुई अल्फोंस लावेरन नामक शख्स ने साल 1889 में मलेरिया परजीवी की खोज की थी,जिसके लिए उन्हें 1907 में नोबेल पुरस्कार भी मिला था।
जब पता चल गया कि यकृत में छिपे रूप में मलेरिया परजीवी मौजूद रह सकता है, इसी के बाद यह गुत्थी सुलझी कि आखिर सालों पहले मलेरिया से उबरे मरीज फिर अचानक कैसे रोग ग्रस्त हो जाते हैं। वैसे मलेरिया सामान्य तौर पर बहुत मामूली लक्षणों के साथ प्रकट होता है। मसलन लगातार सिरदर्द होता है, जी घबराता है , मितलियां आती हैं, कभी अचानक बहुत तेज बुखार हो जाता है, कभी बहुत तेज ठंड लगने लगती है, कई बार लगातार उल्टियां होती हैं, पेट में रह-रहकर भयानक दर्द उठते हैं, बहुत ज्यादा पसीना आता है और शरीर में अचानक खून की कमी महसूस होती है।
मलेरिया के संबंध में रिसर्च बहुत हो रही है, फिर भी मलेरिया दुनिया की उन गिनी-चुनी बीमारियों में से है, जिस पर आजतक इंसान नियंत्रण नहीं पा सका और जो सामान्य लक्षणों से प्रकट होकर देखते ही देखते जानलेवा हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के नेतृत्व में दो साल पहले मलेरिया का टीका आर 21/मैट्रिक्स-एम का इंसानी परीक्षण शुरू हुआ। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, प्रारंभिक परीक्षणों में यह 77 प्रतिशत तक प्रभावी पाया गया। लंदन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा निर्मित इस टीके को पहली बार इंसानों पर अफ्रीकी देश घाना में इस्तेमाल किया गया है।
घाना की फूड एंड ड्रग अथॉरिटी ने इस टीके को शिशुओं और किशोरों में इस्तेमाल की अनुमति दी है। वैज्ञानिकों-डॉक्टरों को उम्मीद है कि इस टीके के बाद मलेरिया से मरने वाले लोगों की संख्या में कमी आयेगी । आँकड़े कहते है हर साल यह करीब 25 करोड़ लोगों को संक्रमित करता है जिनमें से करीब 6 लाख की मौत हो जाती है। भारत दुनिया के उन 15 देशों में शामिल है, जो मलेरिया से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, त्रिपुरा, मेघालय और उत्तरपूर्व के दूसरे राज्यों में मलेरिया बेहद संक्रामक बीमारी है।
सर्व विदित है मलेरिया प्रोटोजोआ या परजीवी से फैलता है और इसका सबसे खतरनाक वैरियंट फाल्सीपेरम परजीवी है। यह परजीवी इंसान की लालरक्त कोशिकाओं को क्षति पहुंचाता है, इससे लालरक्त वाहिकाएं बंद हो जाती हैं नतीजतन हमारे दिमाग, किडनी और फेफड़ों को जबरदस्त नुकसान पहुंचता है। अफ्रीका के कई देश मलेरिया से काफी ज्यादा प्रभावित हैं। अफ्रीका के लिए मलेरिया केवल गंभीर रोग ही नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरनाक है। अफ्रीका में पर्यटन उद्योग को इससे नुकसान पहुंचता है। मलेरिया से मौतों का रजिस्टर्ड आंकड़ा करीब 6 लाख 30 हजार सालाना है, लेकिन हकीकत में इससे कई लाख ज्यादा लोग मरते हैं, क्योंकि बहुत से मरीज अस्पतालों की बजाय घर में ही दम तोड़ देते हैं। डब्ल्यूएचओ का मानना है कि इससे 7 से 27 लाख लोगों तक मौतें अनुमानित हैं ।
दुनिया में सबसे ज्यादा मलेरिया से मौतें नाइजीरिया में होती हैं, लेकिन भारत में भी हर साल 2 लाख से ज्यादा लोग मलेरिया से दम तोड़ देते हैं। मलेरिया से निपटने के लिए दुनियाभर के डॉक्टर और विशेषज्ञ हर साल मलेरिया के खिलाफ जंग के लिए एक थीम का चुनाव करते हैं। इस साल का थीम है, ‘हेल्थ इक्वेलिटी, जेंडर एंड ह्यूमन राइट्स’। हर साल एक नई थीम चुने जाने का अर्थ है कि उस पूरे साल मलेरिया से संबंधित उस विषय विशेष पर फोकस किया जाए। एक तरह से पूरी दुनिया के डॉक्टर, अनुसंधानकर्ता और वैज्ञानिक मलेरिया के विरुद्ध पूरे वेग से घमासान कर रहे हैं। बावजूद इसके इंसान के लिए मलेरिया की 130 साल की खोज के बाद भी स्थिति डरावनी बनी हुई है। …और सरकारें॰॰॰॰॰॰!