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भारतीय परिधान साड़ी स्त्रीत्व, गरिमा और आत्मविश्वास का प्रतीक : मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव

भोपाल। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि भारतीय परिधान साड़ी स्त्रीत्व, गरिमा और आत्मविश्वास का प्रतीक है। यह भारत का, भारत के लिए, भारत के द्वारा बना परिधान है। हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की तरह ही साड़ी भी भारत की ब्रांड और एक सशक्त पहचान है। साड़ी विविधता से भरे भारत को एकाकार कर देने वाला परिधान भी है। उन्होंने कहा कि पूरे देश में अलग-अलग क्षेत्रों में साड़ियों का भिन्न-भिन्न रंग रूप है, पर आत्मा एक है। साड़िया देश के विविध रंगों और संस्कृतियों को खुद में समेटे हुए है। साड़ी समाज के हर वर्ग का परिधान है, हर अवसर में अनुकूल है, सामाजिक समरसता का परिचायक भी है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की विशेष उपस्थिति में आज इंदौर में वन भारत अभियान के तहत "आत्मनिर्भर नारी, गर्व से पहने साड़ी" के ध्येय को लेकर अनूठा आयोजन हुआ। इस आयोजन में लगभग 40 हजार महिलाओं ने परम्परागत वेषभूषा(साड़ी) में वाकथॉन कार्यक्रम में भाग लिया। इस कार्यक्रम को वर्ल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज करने का प्रोविजनल प्रमाण पत्र मुख्यमंत्री ने संबंधित विभाग के मंत्री श्री दिलीप जायसवाल को सौंपा। केन्द्रीय वस्त्र एवं रेल राज्यमंत्री श्रीमती दर्शना जरदोश, जल संसाधन मंत्री श्री तुलसीराम सिलावट, कुटीर एवं ग्रामोद्योग राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार श्री दिलीप जायसवाल, सांसद श्री शंकर लालवानी तथा सुश्री कविता पाटीदार, महापौर श्री पुष्यमित्र भार्गव, विधायक श्री महेन्द्र हार्डिया, श्री रमेश मेंदोला, श्रीमती मालिनी गौड़, श्री मधु वर्मा तथा श्री गोलु शुक्ला, श्री गौरव रणदीवे सहित जनप्रतिनिधि मौजूद थे।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि साड़ी सबका प्रिय परिधान है और हर अवसर में अनुकूल है। साड़ी जाति-धर्म गरीब-अमीर और क्षेत्रवाद के विभाजन को पाटने वाला सशक्त सिंबल भी है। साड़ी एक पीढ़ी को दूसरी पीढ़ी से भी जोड़ने वाली कड़ी है। साड़ी से पारिवारिक एकता भी बढ़ती है। साड़ी वैश्विक स्तर पर भारत के बढ़ते कद और भारतीयों के बढ़ते आत्मविश्वास का भी प्रतीक है। यह भारत के सांस्कृतिक अभ्युदय को देश की मातृशक्तियों से मिलने वाले समर्थन का भी प्रतीक है। देश उस दुर्भाग्यशाली दौर का भी साक्षी रहा है जब साड़ी जैसे गौरवशाली परिधान को रुढीवाद और पिछड़ेपन का प्रतीक बना दिया गया था। खुद को एजुकेटेड और प्रोफेशनल दिखाने के लिए महिलाओं पर बिजनेस सूट पहनने की बाध्यता थोप दी गई थी। अंग्रेज़ जब भारत आए थे तो वैश्विक बाजार में भारतीय उत्पादों की तूती बोलती थी, लगभग एक चौथाई वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भारत का कब्जा था। भारतीय बुनकरों के बनाए वस्त्र की दुनिया भर में भारी मांग थी। पिछले दस वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी जी ने प्रगति के साथ ही संस्कृति को भी सहेजने सँवारने की जो परिपाटी चला दी है, उसके परिणाम अब दिखने लगे हैं। "मेक इन इंडिया", "आत्मनिर्भर भारत" और "वोकल फॉर लोकल" की भावना से प्रेरित होकर देशवासी अब स्वदेशी उत्पादों को उत्साहपूर्वक अपना रहे हैं, और यह एक जन आंदोलन का रूप ले चुका है। हमारे नवयुवकों का रुझान कुर्ते-पजामे की ओर बढ़ा है और नवयुवतियों का साड़ी की ओर।

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