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अच्छी पुस्तक और अच्छे लोगों का संग करें : शास्त्री

बेगमगंज हनुमान बाग मन्दिर परिसर में कथा श्रवण करते श्रद्धालुजन

बेगमगंज । हनुमान बाग मंदिर में चल रही श्री शिव महापुराण कथा के तृतीय दिवस में पं कमलेश कृष्ण शास्त्री ने कहा यदि  अच्छे व्यक्तियों का संग सुलभ न हो तो अच्छी पुस्तकें पढ़ना शुरू कर दीजिए। इससे सद्‌विचार प्रतिदिन हमारे भीतर उतरेंगे। पुस्तक को लगातार न पढ़ें।

जैसे दिनभर में हम बीच-बीच में जल ग्रहण करते रहते हैं, ऐसे ही दिन में जब भी समय मिले कुछ अच्छे पन्ने पढ़ लीजिए। हमारे मन- मस्तिष्क में विचार निरन्तर चलते रहते हैं। विचार शून्य होना ध्यान की अवस्था है। जब हम अच्छी पुस्तक पढ़ते हैं या अच्छे लोगों की संगत में बैठते हैं तब इस बात की सम्भावना बढ़ जाती है कि हम भीतर आ रहे विचारों का निरीक्षण कर सकें कि क्या शुभ- अशुभ, उचित-अनुचित उतर रहा है । एक तरह से यह स्वनिर्मित चैकपोस्ट होगी। किन विचारों को भीतर जाना चाहिए और किन्हें रोकना है, इसका विवेक धीरे-धीरे जाग जाएगा। फिर आप समझने लगेंगे कि व्यर्थ विचार भीतर जाकर किस तरह से अन्तर्मन को क्षति पहुँचाते हैं। जो ऊर्जा किसी रचनात्मक कार्य में काम आ सकती है वह अनावश्यक ही व्यर्थ के सोच-विचार में नष्ट हो जाती है, इसलिए दिनभर में किसी अच्छी पुस्तक को थोड़ा-थोड़ा पढ़ते रहिए।

 स्वाध्याय से मिलती है  परम शान्ति - शिक्षा का केवल यही अर्थ नहीं है कि मनुष्य दो वक्त की रोटी कमाने के लायक हो जाए। धन तो बिना पढ़े-लिखे लोगों के जीवन में भी आ जाता है। पर, वास्तव में शिक्षा से मनुष्य पशु जैसी स्थिति से बाहर निकलकर मनुष्य बन जाता है। हमारे धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि विद्या मनुष्य का मानसिक संस्कार करती है। शिक्षा अर्जित करने के लिए विषय, परिश्रम और एकाग्रता की आवश्यकता पड़ती है। जिस संस्थान में आप शिक्षित हो रहे हैं उसका भी महत्व होता है। अच्छी शिक्षा के लिए ये चार बातें जरूरी हैं - अध्ययन, अध्यापन, अभ्यास और व्यवहार। 

लेकिन बात यहीं समाप्त नहीं हो जाती। शिक्षा के साथ स्वाध्याय को जोड़ना पड़ेगा। बच्चों को समझाना होगा कि जितनी आवश्यक शिक्षा है उतना ही आवश्यक है - स्वाध्याय को समझना। स्वाध्याय का सीधा अर्थ होता है - स्वयं का अध्ययन। इसे आत्म- शिक्षण भी कहते हैं। इसमें चिन्तन, मनन और अध्ययन तीन बातें आती हैं। शिक्षा के साथ ये तीन बातें जुड़ जायें तो जो सफलता हाथ लगती है वह बहुत दृढ़ होती है। शिक्षा पूर्ण ही तब होगी जब मनुष्य स्वाध्याय से गुजरेगा। शिक्षा यदि परिश्रम है तो स्वाध्याय तप है। शिक्षा यदि सुख और सफलता प्रदान करती है तो स्वाध्याय धैर्य और शन्ति देगा।


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