महिला शाखा और “यूएन वीमन” संस्था के सहयोग से आयोजित दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान पुलिस विभाग, ग्रामीण आजीविका मिशन एवं शहरी आजीविका मिशन के प्रतिभागियों को महत्वपूर्ण जानकारी देकर किया गया प्रशिक्षित
भोपाल। मध्य प्रदेश पुलिस राज्य की महिलाओं को सशक्त व आत्मनिर्भर बनाने तथा उन्हें सुरक्षित व भयमुक्त वातावरण प्रदान करने के लिए समय-समय पर निरंतर उत्कृष्ट कार्य और नवाचार कर रही है। इसी तारतम्य में पुलिस विभाग की महिला शाखा और “यूएन वीमन” के सहयोग से पुलिस विभाग, ग्रामीण आजीविका मिशन एवं शहरी आजीविका मिशन के प्रतिभागियों के लिए 20 और 21 फरवरी को दो दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। पहले दिन मंगलवार को कार्यक्रम की मुख्यअतिथि व महिला शाखा की एडीजी श्रीमती प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव ने अपने संबोधन में कहा कि हम किसी घटना को सबसे पहले अपराध की तरह देखते हैं कि इस मामले में क्या धारा लगती है, हम कार्रवाई करते हैं या मुकदमा दर्ज करते है, वह एक हिस्सा है परंतु यह कोई नहीं देखता कि पीड़िता किस मानसिक स्थिति से गुजर रही है। उन्होंने कहा कि घरेलू हिंसा एवं महिला संबंधी अपराधों से पीड़ित महिलाओं व बालिकाओं की काउंसलिंग उनकी मानसिक स्थिति सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी और वे खुलकर अपनी बात कह सकेंगी।
इस अवसर पर आईजी श्रीमती हिमानी खन्ना, महिला सुरक्षा शाखा के एआईजी डॉ.वीरेंद्र कुमार मिश्रा, श्रीमती किरणलता केरकेट्टा, यूएन वीमन के प्रशिक्षक श्री सौम्य भौमिक व सुदीपा दास उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन यूएन वीमन की स्टेट हेड जोयत्री रे ने किया।
प्रशिक्षण में सिखाई बातों पर बेहतर तरीके से अमल करें :- एडीजी श्रीमती श्रीवास्तव
महिला शाखा की एडीजी श्रीमती श्रीवास्तव ने कहा कि लेटेस्ट सजायाबी दर 16 से 17 प्रतिशत है जबकि विटनेस प्रोटेक्शन स्कीम जिसमें लगाते हैं, उसका प्रतिशत काफी ज्यादी होता है, क्योंकि हम पूरे समय देखते रहते हैं कि किसने क्या गवाही दी, क्या किया व क्या नहीं। सजायाबी नहीं होने का प्रमुख कारण है कि 80 से 85 प्रतिशत प्रकरणों में पीड़िताएं कोर्ट में मुकर जाती है। ऐसी कौन सी बात है, जो उन्हें बताई गई या उन पर ऐसा क्या मानसिक दबाव था, जो उन्होंने अपना बयान बदल दिया, हमें इस पर भी ध्यान देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि एक परिवार में बच्ची के साथ घटना घटने पर वह अपनी मां को बताती है। अव्वल तो ऐसे प्रकरणों में गंभीर घटना न हो तो मां उसे समझा देती है कि जाने दो घर की बात है । यदि मामला गंभीर होने पर उसे लगता है कि मेरी बच्ची को न्याय मिलना चाहिए तो हमें किन-किन की काउंसलिंग करनी है, हमें यह पता होना चाहिए।
यदि वह हमारे पास आए तो सबसे पहले हमें मां को समझना होगा, वह हिम्मत जुटाकर शिकायत दर्ज करवाने आई है तो आवश्यक है कि हम उनकी हिम्मत को बनाए रखें। इसके पश्चात वह बच्ची, जिसे यह भी नहीं पता कि जहां वह सबसे सुरक्षित थी, वहां उसके साथ ऐसा क्यों हुआ, हमें उसे मेन स्ट्रीम में लाने का प्रयास करना होगा यानी बच्ची स्कूल जाए, दोस्तों से मिले तो उसे कहीं से भी यह नहीं लगना चाहिए कि जो हुआ, उसमें मेरा कसूर था। घरेलू हिंसा एवं महिला संबंधी अपराधों से पीड़ित महिलाओं व बालिकाओं की काउंसलिंग बहुत विस्तृत क्षेत्र है । उन्होंने उपस्थित प्रतिभागियों से कहा कि सभी प्रशिक्षण में सिखाई गई बातों को बेहतर तरीके से अमल में लाएं ताकि इस आयोजन की सार्थकता सिद्ध हो।
प्रदेश में प्रथम बार हुआ इस तरह का आयोजन :-
प्रदेश में प्रथम बार पुलिस प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान (पीटीआरआई) जहांगीराबाद, भोपाल स्थित सभागार में यूएन वीमन, ग्रामीण आजीविका मिशन व शहरी आजीविका मिशन तथा पुलिस के लिए एक साथ प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। 20 फरवरी को सुबह 10.30 बजे दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। महिला एवं सुरक्षा शाखा की एआईजी सुश्री पिंकी जीवनानी ने अपने स्वागत अभिभाषण में कार्यक्रम में उपस्थित सभी वरिष्ठ अधिकारियों, यूएन वीमन ग्रुप के पदाधिकारियों और उपस्थितजन का स्वागत किया और अपना अमूल्य समय देने के लिए सभी का धन्यवाद व्यक्त किया। उन्होंने कार्यक्रम की सफलता की कामना करते हुए उपस्थित प्रतिभागियों से कहा कि सभी प्रशिक्षण में पूरे मनोयोग से हिस्सा लें और इसे अपने क्षेत्र में लागू कर महिला सुरक्षा की दिशा में अपना योगदान दें।
जेंडर वाक और ग्रुप डिस्कशन का आयोजन :-
कार्यक्रम के दौरान सर्वप्रथम सभी प्रतिभागियों के लिए जेंडर वाक का आयोजन किया गया, जिसमें हिस्सा लेकर प्रतिभागियों ने पीड़ितों की भूमिका निभाकर उनके दर्द को महसूस किया। इसके पश्चात सभी प्रतिभागियों ने इस प्रक्रिया के संबंध में अपने अनुभव साझा किए। इसके बाद सभी प्रतिभागियों के 8 ग्रुप बनाकर विभिन्न विषयों पर ग्रुप डिस्कशन का आयोजन किया गया। इस डिस्कशन के दौरान महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के प्रकरण में रिपोर्ट हेतु वर्तमान में अपनाई जा रही प्रक्रिया एवं चुनौतियां, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के प्रकरणों में निराकरण हेतु वर्तमान में अपनाई जा रही प्रक्रिया, चुनौतियां और कमियां, उर्जा डेस्क की कार्यवाही, चुनौतियां व कमियां तथा पीड़ित महिलाओं को आवश्यकता अनुरूप दी जाने वाली सेवाएं एवं उन सेवाओं से संबंधित विभाग, अवसर चुनौतियां और कमियां विषय पर चर्चा की गई। डिस्कशन के पश्चात सभी प्रतिभागियों ने मंच से अपने विषय के संबंध में विचार रखे।
स्किट के माध्यम से किया जागरूक :-
प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागियों को पीड़ित को समझने का तरीका एवं महिलाओं एवं बालिकाओं पर हिंसा के परिणामों के बारे में, जेंडर पर आधारित कार्य को नियंत्रित करने वाले आवश्यक सेवाओं से संबंधित नियमों एवं अधिनियमों और पीड़ित बालिका /महिला को सुनने वाले प्रथम उत्तरदायी की भूमिका के बारे में अवगत करवाया गया। प्रशिक्षण के प्रथम दिन अंत में नाटिका (स्किट)की प्रस्तुति देकर प्रतिभागियों को पीड़िताओं की काउंसलिंग के प्रति जागरूक किया गया।
काउंसलिंग के समय पीड़िता के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाएं :- डॉ.याशी जैन
प्रशिक्षण कार्यक्रम के दूसरे दिन मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार डॉ.याशी जैन ने सभी प्रतिभागियों को सिखाया कि पीड़ित की मानसिक स्थिति की पहचान किस प्रकार की जाए। उन्होंने कहा कि काउंसलिंग प्रारंभ करने के पूर्व हमें पीड़िता के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने होंगे। आपको पीड़िता को यह विश्वास दिलाना होगा कि आप उसके साथ हैं और विश्वासपात्र हैं। वह आपसे जो भी बात कहेगी, वह गोपनीय रहेगी और कभी बाहर नहीं जाएगी। आप वही हैं जो उसे बाहर निकाल लेंगे और सही रास्ते पर ले जाने में उसकी हेल्प करेंगे। काउंसलिंग करते समय हमेशा पीड़िता के तरीके से देखने की शुरूआत करें, आपके परसेप्शन व बेड एक्सपीरियंस को अवरोध न बनाएं । यदि संवेदनशील तरीके से आप पीड़िता के मन में स्वयं को स्थापित कर पाएंगे तो ही सफल हो पाएंगे। डॉ.जैन ने कहा कि यदि आप पीड़िता की काउंसलिंग कर रहे हैं और सफलता नहीं मिल रही हो तो आशा न छोड़ें, जुटे रहें। इस दौरान उन्होंने पीड़िताओं की काउंसलिंग की विभिन्न तकनीकों की जानकारी प्रदान की। डॉ. जैन ने विभिन्न अभ्यास प्रक्रियाओं के माध्यम से प्रतिभागियों की मनोस्थिति और व्यक्तित्च के संबंध में जानकारी दी और उन्हें पीड़ित महिलाओं की काउंसलिंग के दौरान उन्हें अपनाने के बारे में प्रेरित किया। इस प्रक्रिया में सभी प्रतिभागियों ने भी बढ़-चढ़कर सहभागिता की।
रोल प्ले के दौरान प्रतिभागियों ने किरदारों को निभाया :-
प्रशिक्षण कार्यक्रम के दूसरे दिन “रोल प्ले” का आयोजन किया गया, जिसमें प्रतिभागियों को विभिन्न किरदारों की भूमिका निभाने का दायित्व सौंपा गया। इस दौरान सभी प्रतिभागियों ने स्वयं को मिले किरदार के अनुसार अभिनय किया। इसके पश्चात पीड़ित तक पहुंचने के लिए और क्या किया जा सकता है, इस विषय पर ग्रुप डिस्कशन किया गया और तत्पश्चात इस बारे में चर्चा की गई। कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र और डॉ.याशी जैन व अन्य अतिथियों को स्मृति चिह्न प्रदान किया गया।
प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण को यादगार बताया :-
दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण के संबंध में अपना फीडबैक प्रदान किया। प्रतिभागियों ने कहा कि प्रशिक्षण के दौरान यादगार अनुभव रहा और उन्हें काफी सीखने का अवसर मिला। अपने क्षेत्र में पहुंचने पर यह प्रशिक्षण हमारे लिए अत्यंत लाभकारी रहेगा और हमें घरेलू हिंसा और महिला संबंधी अपराधों से पीड़ित महिलाओं व बालिकाओं की काउंसलिंग में सहायक सिद्ध होगा। उन्होंने कहा कि प्रशिक्षकों द्वारा सिखाए गए काउंसलिंग के तरीके और प्रेरणास्पद बातें हमें अपने कार्य को बेहतर तरीके से करने के लिए प्रेरित करेंगी।