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खजुराहो के प्राचीन मंदिरों की वैभव की छाया में बुना जा रहा नृत्य परम्पराओं का ताना—बाना

भोपाल। खजुराहो के प्राचीन मंदिरों के वैभव की छाया में यह नृत्य समागम दिन—प्रतिदिन कलाओं के प्रति लोगों का प्रेम बढ़ाने का कार्य कर रहा है। प्रतिदिन उन्हें भारत की बहुरंगी सांस्कृतिक विरासत से साक्षात्कार करने का अवसर प्राप्त हो रहा है। पिछले पांच दशकों से नृत्य एवं समकालीन कलाओं के रंगों को बिखेरता आ रहा खजुराहो नृत्य समारोह अपनी स्वर्ण जयंती पर कलारसिकों के हृदय को आनंद की अनुभूतियों से भर रहा है। 

मुख्य मंच पर तीसरे दिन की नृत्य सभा की शुरुआत सुश्री साक्षी शर्मा, दिल्ली के कथक नृत्य प्रस्तुति के साथ हुई। अपनी प्रस्तुति की शुरुआत आराध्य देव भगवान शिव की स्तुति कर की। इस शिव स्तुति की विशेषता थी कि यह राजस्थानी लोक परम्परा में गाई जाती है और कथक के गुरुओं ने इस रचना को कथक में सौंदर्यपूर्ण ढंग से पिरोया है। इसके पश्चात् तीन ताल विलंबित में नृत्य पक्ष की प्रस्तुति दी, जिसमें कुछ पारंपरिक बंदिशों को हस्तकों और पदचाप के माध्यम से प्रदर्शित किया। प्रस्तुति के अगले क्रम में एक ठुमरी की प्रस्तुति दी, जो नायिका सौंदर्य के ऊपर आधारित थी, इसके बोल थे 'लचक लचक चलत चाल इठलाती चतुर नार'। प्रस्तुति के अंतिम चरण में द्रुत तीन ताल की प्रस्तुति दी, जिसमें परने, तिहाई एवं गत निकास की प्रस्तुति देकर विराम दिया।

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