भोपाल। देश की वानस्पतिक एवं औषधीय धरोहर को तथ्यात्मक एवं प्रामाणिक दस्तावेज के साथ विश्व के समक्ष रखना है। इसके लिए हमें स्वयं के सामर्थ्य पर विश्वास का भाव जागृत करने की आवश्यकता है। आयुर्वेद हमारा सामर्थ्य है, आयुर्वेद अतीत में भी विश्वमंच पर सार्वभौमिक, जनकल्याणकारी एवं विश्वसनीय रहा है और भविष्य में भी अपनी उपयोगिता सिद्ध करेगा। यह बात उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री श्री इन्दर सिंह परमार ने बुधवार को भोपाल स्थित पं. खुशीलाल शर्मा शासकीय आयुर्वेद संस्थान के रजत जयंती ऑडिटोरियम में "भारतीय आयुर्वेदीय भेषज संहिता की समृद्धि के लिये वानस्पतिक प्रजातियों का वैज्ञानिक मूल्यांकन एवं प्रलेखीकरण" विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह के अवसर पर कही।
श्री परमार ने कहा कि वानस्पतिक एवं औषधीय मंथन से आयुर्वेद को आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त होगा, विमर्श प्रक्रिया का यह क्रम सतत जारी रहे। आयुर्वेद, मनुष्य को वैचारिक एवं शारीरिक दोनों रूप से स्वस्थ रखता है। अपने आयुर्वेदीय सिद्धांतों एवं मूल्यों के एकस्व दस्तावेजीकरण (पेटेंट) के महत्व को समझने की आवश्यकता है। अपनी आयुर्वेदीय धरोहर की सुरक्षा, संरक्षण एवं उत्थान के लिए सभी की सहभागिता आवश्यक है। श्री परमार ने कहा कि इस संगोष्ठी का विचार-मंथन; एकस्व दस्तावेजीकरण (पेटेंट) के माध्यम से स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत की भूमिका को विश्वपटल पर स्थापित करेगा। श्री परमार ने भारतीय आयुर्वेदीय भेषज संहिता की समृद्धि के संबंध में व्यापक विचार मंथन के लिए राष्ट्रीय संगोष्ठी के सफल आयोजन लिए संस्थान को शुभकामनाएं भी दी।