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34वीं बरसी पर कय्यूम चचा को शिद्दत से किया याद

स्वर्गीय कय्यूम चचा

बेगमगंज। हर रह गुजर पर शम्मा जलाना है मेरा काम,तेवर हवा के क्या है मैं देखता नहीं, बेगमगंज वो बस्ती है जिसमें एक से एक नामवर लोगों ने जन्म लिया और अपनी किसी ना किसी  विशेषता के कारण  आज भी लोगो के दिलों में जिन्दा है , लोग उन्हें याद करते हैं उनकी मिसालें दिया करते हैं । ऐसी ही एक शख्शियत का हम  जिक्र कर रहे हैं जो सियासी रहनुमा भी थे बेबाक अंदाज से अपनी बात लोगों के सामने रखना और गालेबन गलत बात को नहीं मानना उनकी विशेषता मैं शामिल था । मैं बात कर रहा हूं अपने वक्त मे मुकरबा मोहल्ला वार्ड से नगर पालिका के पार्षद रहते हुए समाज की रहनुमाई करने वाले मशहूर बीड़ी ठेकेदार स्व.  अब्दुल कयूम दादा साहब की जिन्हें लोग प्यार से चच्चा कहते थे। आप हम सबसे करीब 34 साल पहले 17 जनवरी 1990 को इस फानी दुनिया को अलविदा कह कर मालिके हकीकी  से जा मिले।

उक्त बात उनकी 34वीं बरसी पर शिद्दत से याद करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता चांद मियां ने कही।

रिटायर्ड शिक्षक सैयद आबिद हुसैन तालिब ने उनके बारे में बताते हुए कहा कि उनके मिजाज के ऊपर किसी शायर का यह शेर फिट बैठता है कि मैं अब्र और जब्र को वफा नहीं कहता, जितना सच में कहता हूं कोई दूसरा नहीं कहता, शायद मेरी तरक्की इसीलिए नहीं होती, मैं वक्त के बादशाहो को खुदा नहीं कहता। अपनी बात साफगोई से किसी के भी सामने रखने में जरा सी भी हिचक आपको महसूस नहीं होती थी बड़े-बड़े मसले आपकी सुजाअत और दूर अनदेशी से चुटकियों में हल हो जाते थे। खुदा ने आपको बेशुमार सलाहियतों से नवाज़ा था। सियासी गलियारों में आपकी अलग ही पहचान थी बड़े बड़े नेता भी आपको चाचा कह कर पुकारते थे।  आप उलेमाओं की काफी कद्र किया करते थे । 

राह देखा करेगें सदियों तक। छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा।।

34वीं बरसी पर सईद कमर खान एडवोकेट, बाबू शब्बीर आजम खान, हारून अनवर,‌‌ पत्रकार शब्बीर अहमद, रफीक नवाब, शेख इकरार, जावेद मीर, रिहान खान, हाजी नफीस नवाब, सहित उनके परिवार के मतीन खान, हाजी हकीम पठान, अब्दुल सलाम खान, हाजी वाहिद खान, अजीम पठान, शकील अहमद, लईक पठान, नवेद पठान, रजि पठान, शानू खान आदि ने खिराजे अकीदत पेश करते हुए शिद्दत से याद किया।


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