स्व. कारी खलील अहमद |
बेगमगंज। हजारों साल नरग़िस अपनी बेनूरी पे रोती है बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा, हम उस अज़ीम शख्सियत अल्लाह वाले बुजुर्ग की बात कर रहे हैं जिनसे हिंदुस्तान के ज़्यादातर सूबो में लोगों को फैज़ पहुंचा है। हिंदुस्तान में बुजुर्गों के चार सिलसिले नक्शबंदीया, सहरवर्दिया, कादरिया, और चिश्तिया से एक ही ख़ानकाह और मदरसे से लोगों को बैअत करने और तालीम देने का अनोखा काम शुरू करने वाले पीरे तरीकत हज़रत कमरुज्जमा इलाहाबादी साहब के खलीफा मंडी बामोरा में एक बड़े दारुल इकामा के जरिए लोगों को अलग अलग तरीके से खिदमात अंजाम देने वाले हज़रत अक़दस क़ारी खलील अहमद साहब रह. की जिन्होंने लोगों को शरीयत, तरीकत, मार्फत और हक़ीकत से रुहशनास कराया। आपने कई यतीमो की परवरिश करके उन्हें दीन का दाई बना डाला।
उक्त बात मुफ्ती मुस्तफा खां ने कारी खलील अहमद रह. की सातवीं बरसी पर उन्हें शिद्दत से याद करते हुए कही। उन्होंने कहा कि आप एक अच्छे नात ख्वां भी थे जब आप अपनी बुलंद आवाज में नात शरीफ का नज़राना पेश करते थे तो लोगों के जिस्म के रुए खड़े हो जाते थे और लोग दूसरी ही कैफियत में पहुंच जाते थे - लोगो पर वज़्द तारी हो जाता था-
जिस ख्वाब में हो जाए दीदारे नबी हासिल अए इश्क कभी मुझको नींद ऐसी सुला जाना
नात शरीफ के इस शेर की मांनिंद ही आप 29 दिसंबर 2016 को अपने मालिके हक़ीकी से जा मिले। तदफ़ीन में हज़ारों का मजमा इस बात की गवाही दे रहा था की अल्लाह का नेक बंदा दूसरी दुनिया में मुन्तकिल हो गया है। हर आंख अश्कबार थी आप के हज़ारों मुरीद,शागिर्द, बड़े- बड़े रईस और दानिश्वर आखरी दीदार के लिए उमड़ पड़े थे।
किसी शायर ने क्या खूब कहा है की:-
फैज़ मिलता नहीं मुर्शिद को अकीदत के बगैर, ना मुकम्मल है इबादत किसी रहबर के बगैर, बेशक आपकी रहबरी से भटके हुए लोग राहे हक़ पर आ गए, आज से 7 साल कब्ल नज़रों से ओझल हो जाने के बावजूद ऐसा महसूस होता है कि आप हम सब के करीब हैं। लेकिन आपकी कमी हमेशा महसूस होती है। आप के ज़रिए दिए गए दर्स आज भी हम सबकी रहबरी करते हैं। आपका लोगों को समझाने का अंदाज़ निराला था बात लोगों के जहन में ऐसे बैठ जाती थी जैसे शीशा पिलाई हुई दीवार। आपने अपनी सरपरस्ती में कई जगह मदरसों को कायम फरमाया जो आज भी दीनी खिदमात का ज़रिया बने हुए हैं।
आपने अपने इंतेकाल से पहले अपने खास मुरीद को एक शेर लिख कर दिया था-
मोहब्बत का असर होने ना पाए, उन्हें मेरी खबर होने ना पाए, मोहब्बत के सफर में शर्त ये है, मुकम्मल ये सफर होने ना पाए। बेशक बुजुर्गों का यह सिलसिला कभी थमने वाला नहीं है अल्लाह से दुआ है कि आपका नेक बदल अता फरमांए आपके जरिए लगाए गए मदारिस के बाग फूलते फलते रहें अल्लाह जन्नतुल फिरदौस में आपके दर्जात बुलंद फरमाए आमीन।
" ज़मी मैली नहीं होती ज़मन मैला नहीं होता, आका के गुलामों का कफ़न मैला नहीं होता, मोहब्बत कमली वाले से वो जज़्बा है सुनो लोगों, ये जिस मन में समा जाए वो मन मैला नहीं होता। आपकी सातवीं बरसी पर मौलाना नजर मो. गोंडवीं, हाफिज मो. इलियास, मुफ्ती रुस्तम खां नदवी, मौलाना सामिद खां नदवी, हाफिज सैयद अकबर खां, कारी रज्जाक खान, हाफिज अशफाक खान, हाजी नोमान बेग (माला), सैयद आबिद हुसैन तालिब, हाफिज़ रियाज परवेज, डा. मो. शफी, जावेद मीर खां, हाजी मुश्ताक खान, हाजी फिरोज खां, छोटा मुन्ना अली दाना, एहफाज सौदागर,सैयद जमील खां, रफीक नवाब, रफीक मंसूरी, शारिक शाह खान, हाजी नफीस नवाब, मो.नईम खां पत्रकार, मो. बाबर, आदिल खान सुप्रीम, महफूज पायलेट, अब्दुल हफीज अली, रफीक अली, सगीर भारती टेलर, अख्तर सेठ,
अस्सू नाना, परवेज खां उस्ताद, वसीम खां एमजे, इमरान सिद्दीकी, अनीस चच्चा, शमीम मंत्री, नस्सू ठेकेदार, रईस भोपाली, रेहान खान,अनवार खां उर्फ अन्ना भाई, रफीक बाबा, राशिद पठान,असलम बाबा, शमसुलहक, डा. नसीम अली, अरहम सौदागर,मुशर्रफ अली उर्फ लल्लू इनवर्टर, हाजी शफीक अली, सैयद फरजान अली, मुजाहिद अहमद, जुबेर मिर्जा, सैयद इलियास अली, आमिर राईन, शादाब मंसूरी, फरहान लाला, नसीम नवाब, हाजी टेलर, समेत सामाजिक संस्था इस्लाहे मिल्लत कमेटी, आरिफ मसूद फैंस क्लब, मुस्लिम त्योहार कमेटी आदि ने खिराजे अकीदत पेश की है।