के डी शर्मा, भोपाल। एक बार फिर चौंकाने वाला निर्णय। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने अपनी चौंकाने वाली परंपरा को कायम रखते हुए इस बार मध्यप्रदेश में लीक से हटकर एक चौंकाने वाला नाम दिया है। मुख्यमंत्री के रूप में मध्यप्रदेश में डॉ मोहन यादव का ऐसा नाम सामने आया है जिसके बारे में न चर्चा थी,न विचार विमर्श,न कयास और न ही दूर-दूर तक कोई संभावना व्यक्त की गई थी। लेकिन परंपरागत तरीके से इस बार भी नाम वाकई चौंकाने वाला सामने आया और कई नए संदेशों के साथ सामने आया है। प्रधानमंत्री ने यह संदेश दे दिया है कि उनके मन में सिर्फ मध्यप्रदेश ही नहीं मोहन भी है और वह भी सांदीपनी की नगरी का। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन से स्पष्ट कर दिया है कि मध्यप्रदेश की जनता के जनादेश के ध्वजवाहक डॉ मोहन यादव ही होंगे।
इसके साथ ही एक बार फिर यह बात रेखांकित हुई है कि संकल्प की गोपनीयता का सबक कोई मोदी और शाह से सीखे। निर्णय के क्रियान्वयन के लिए पर्यवेक्षक के रूप में पार्टी के संदेशवाहक जरूर भोपाल आए थे और सबसे मिलजुल भी रहे थे। लेकिन मजाल है कि नाम की गोपनीयता भंग हो जाए। माहौल में कई नाम तैर रहे थे और अलग-अलग चेहरे सामने आ रहा थे। इस बीच प्रहलाद पटेल के निवास पर सुरक्षा बढ़ाने की बात सामने आई तो उन्हें बधाई मिलने लगीं। लेकिन असमंजस खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था और लाख टके सवाल यही था कि कौन बनेगा मुख्यमंत्री? चार बजे के बाद तक यही स्थिति बनी रही और जिस समय मुख्य पर्यवेक्षक मनोहर लाल खट्टर ने मोहन यादव के नाम का उच्चारण किया तो पूरा सदन चौंक गया।पीछे की पंक्ति में बैठे डॉ मोहन यादव तो चौंके ही पर्यवेक्षकों के आसपास मौजूद वरिष्ठ नेतागण भी बुरी तरह से चौंक गए। इसमें कुछ मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी शामिल थे। और शायद इसी को कई लोग मोदी मैजिक के रूप में भी परिभाषित करते हैं।
सर्वविदित है कि संघ के मन में हमेशा से यह बात रही है कि मध्यप्रदेश में सरकार की कमान कोई राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से निकला हुआ स्वयं सेवक संभाले। डॉक्टर मोहन यादव इस कसौटी पर काफी हद तक खरे उतरते हैं। वह पूर्ण कालिक कार्यकर्ता तो नहीं रहे हैं, लेकिन छात्र राजनीति और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में रहते हुए पार्टी के लिए काम करने के दौरान संघ के निर्देश पर राजनीतिक गतिविधियों से विश्राम लेकर उन्होंने कुछ वर्षों तक संघ के लिए समर्पित भाव से कार्य किया है और संघ के दक्ष स्वयंसेवक होने के साथ-साथ प्रशिक्षित कार्यकर्ता भी हैं।
जहां तक डॉ. मोहन यादव का सवाल है वह उज्जैन से आने वाले मध्य प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री हैं। इसके पूर्व सन् 1972 में प्रकाश चंद सेठी ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कमान संभाली थी, वह भी उज्जैन की ही एक विधानसभा सीट से जीतकर आए थे लेकिन वह कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व करते थे। वैसे संपूर्ण मालवा जनसंघ की तगड़ी पकड़ वाला क्षेत्र रहा है और यही वजह है कि मालवा ने इसके पूर्व भी प्रदेश को तीन धुरंधर मुख्यमंत्री दिए हैं। सर्वप्रथम कैलाश जोशी उसके बाद वीरेंद्र कुमार सकलेचा तथा दो बार मुख्यमंत्री रहे सुंदरलाल पटवा। इस लिहाज से डॉ. यादव भाजपा के चौथे मुख्यमंत्री हैं, जो मालवा से आते हैं।
डॉ. मोहन यादव का व्यक्तित्व भी कई विशेषताएं लिए हुए है। वे बीएससी के साथ-साथ विधि स्नातक भी हैं और विशेष बात यह कि कला क्षेत्र के विषय राजनीति शास्त्र से उन्होंने पीएचडी की उपाधि हासिल की है। वह एमबीए के उपाधिधारक भी हैं। इस प्रकार शिक्षा के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां हासिल करने के साथ-साथ छात्र जीवन से ही उन्होंने राजनीति का ककहरा सीखना भी प्रारंभ कर दिया था। जब वे उज्जैन के माधव साइंस कॉलेज के प्रथम वर्ष के विद्यार्थी थे, तभी छात्रसंघ के सह सचिव बन गए थे और बाद में वे इसी महाविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष भी निर्वाचित हुए। इसके बाद में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में जिले से राष्ट्रीय स्तर तक कार्य करते रहे। तभी संघ का निर्देश मिलने पर उन्होंने राजनीतिक जीवन त्याग कर संघ के स्वयंसेवक के रूप में कार्य करना शुरू किया, जहां वे करीब चार वर्ष तक समर्पित भाव से जुड़े रहे। लेकिन एक बार फिर संघ के निर्देश पर उन्होंने भाजपा में सक्रियता प्रारंभ की और संघर्षों के साथ आगे बढ़ते हुए उज्जैन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष का पदभार लगभग 6 वर्ष तक संभाला और कई उल्लेखनीय कार्य किए। वे स्काउट गाइड में भी सक्रिय रहे। उनके व्यवहार और कार्यशैली को देखते हुए उन्हें पार्टी ने मप्र पर्यटन विकास निगम का अध्यक्ष भी नियुक्त किया। डॉ. यादव को हालांकि वर्ष 2003 में भी विधानसभा चुनाव के लिए टिकट दिया गया था, लेकिन बड़प्पन दिखाते हुए उन्होंने अपने से वरिष्ठ कार्यकर्ता को टिकट देने का आग्रह करते हुए टिकट लौटा दिया। ऐसे उदाहरण भी बिरले ही मिलते हैं। वर्ष 2013 में पहली बार मध्य प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़े और पहली ही बार में उज्जैन दक्षिण से उन्होंने सफलता का परचम फहरा दिया। इसके बाद 2018 और 2023 में भी वे सफलतापूर्वक निर्वाचित होकर विधानसभा सदन पहुंचे। 2020 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में उन्हें उच्च शिक्षा मंत्री का दायित्व सौंपा गया, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। इसी क्रम में उन्हें आज पार्टी ने मुख्यमंत्री का दायित्व सौंपा है। निश्चित रूप से शिक्षा का क्षेत्र, विकास व सेवा का क्षेत्र और स्काउट गाइड इन सारे अनुभवों का लाभ मध्यप्रदेश को डॉ. मोहन यादव के माध्यम से प्राप्त होगा। कुल मिलाकर वह भाजपा के मुख्य नारे विकास के ध्वजवाहक बनेंगे।
लेकिन डॉ. यादव के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं है, वैसे तो अभी बधाई गीत का दौर है, लेकिन भविष्य के लिए सचेत होना भी आवश्यक है। सर्वाधिक चिंता का विषय है कि मध्य प्रदेश की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, कर्ज बहुत अधिक हो चुका है जिससे वेतन बांटने तक का संकट बीच-बीच में उपस्थित होता रहता है। इस आर्थिक संकट से प्रदेश को उबारना फिर चुनावी घोषणा पत्र में की गई घोषणाओं का क्रियान्वयन निश्चित रूप से व्यय बढ़ाने वाला ही है। इस स्थिति से प्रदेश को उबारना और विकास को गति देना भी बड़ी चुनौती है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि मुख्यमंत्री के रूप में अपने लगभग 16 वर्ष के कार्यकाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जो कीर्तिमान स्थापित किया है लोकप्रियता, सक्रियता और सफलता हर मोर्चे पर वह बहुत बड़े कद के साथ मुख्यमंत्री के पद से विदा हुए हैं, इसलिए जनता और पार्टी की अपेक्षाएं डॉ. यादव से भी कुछ कम नहीं हैं। उस ऊंचाई को छूना, उस कीर्तिमानी कद तक पहुंचना डॉक्टर यादव के लिए मुझे लगता है, सबसे बड़ी चुनौती होगा। इसके साथ पार्टी की सबसे बड़ी चिंता यह भी है कि लोकसभा चुनाव भी हैं जो कुछ महीने की दूरी पर हैं और उसमें सफलता की गारंटी भी डॉ. यादव को ही देनी पड़ेगी और चुनाव में सफलता का दायित्व अपने कंधों पर लेकर जीत का मार्ग प्रशस्त करना होगा। बहरहाल, अपेक्षाएं बहुत हैं और डॉ. यादव की क्षमताओं पर भी किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। उनके उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएं।