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मध्य प्रदेश में तीसरे मोर्चे को नजरंदाज करना कांग्रेस को पड़ा महंगा

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 का नतीजा 163 बनाम कांग्रेस को मिले 66 सीट के अंतर के साथ भाजपा के पक्ष में गया है। इस नतीजे ने न सिर्फ कांग्रेस पार्टी को चौंकाया है, बल्कि वे लोग भी आश्चर्यचकित हैं, जो राज्य में सत्ता परिवर्तन की आस लगाए थे। इन लोगों में खास तौर से अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, ओबीसी संगठनों के लोग शामिल थे। अब जबकि परिणाम सामने है सूबे में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) व गोंडवाना गणतंत्र पार्टी आदि को नजरअंदाज करना कांग्रेस को महंगा पड़ा।

ये चर्चाएं निराधार नहीं हैं। मसलन, जयस का आदिवासी बहुल क्षेत्रों में व्यापक प्रभाव है और चुनाव पूर्व इसे राज्य में तीसरे मोर्चे के रूप में देखा जा रहा था। जयस संगठन ने 80 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान भी किया था। 

जयस किसी पार्टी के रूप में पंजीकृत न होकर एक सामाजिक संगठन है और इसकी गतिविधियों में सामाजिक के साथ-साथ राजनीतिक गतिविधियां भी शामिल हैं। चुनाव के पहले जयस के राष्ट्रीय संरक्षक डॉ. हिरालाल अलावा ने कहा था कि उनके संगठन के उम्मीदवार या तो निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे या फिर किसी पार्टी से गठबंधन होने की स्थिति में उस पार्टी से चुनाव लड़ेंगे।

लेकिन विधानसभा चुनाव नजदीक आते-आते जयस के अधिकतर लोग जो अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव की तैयारी कर रहे थे, वे बिखर गए। ऐसा इसलिए भी हुआ, क्योंकि जयस के राष्ट्रीय संरक्षक डॉ. हिरालाल अलावा, जो खुद कांग्रेस पार्टी से विधायक थे, और वे कांग्रेस पार्टी से समझौते के पक्षधर थे। ऐसा इसलिए भी कि कहीं न कहीं उनका मानना था कि भाजपा जयस की विचारधारा से वास्ता नहीं रखती है। इसलिए जयस का समझौता कांग्रेस के साथ हुआ। 

इसकी जानकारी स्वयं डॉ. अलावा ने देते हुए कहा था कि कांग्रेस ने जयस समर्थित चार उम्मीदवारों को टिकट दिया है। इसमें खुद डॉ. हिरालाल अलावा की मनावर विधानसभा सीट भी शामिल रही। इसके अलावा सेंधवा से मोंटू सोलंकी, रतलाम ग्रामीण से लक्ष्मण डिंडोर और निवास से चैनसिंह वरकड़े शामिल हैं। वहीं कांग्रेस ने बड़वानी विधानसभा क्षेत्र से आदिवासी एकता परिषद से जुड़े राजन मंडलोई को उम्मीदवार बनाया, जिसके बारे में कहा गया कि यह जयस की अनुशंसा के उपरांत किया गया। 

इस प्रकार जो लोग जयस के माध्यम से मध्य प्रदेश विधानसभा में जाने का सपना देख रहे थे, उनकी उम्मीदों को तब झटका लगा जब कांग्रेस ने जयस समर्थित केवल 4 लोगों को ही उम्मीदवार बनाया। चर्चा यह भी हुई कि रतलाम ग्रामीण से जिस लक्ष्मण डिंडोर को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया है, अब उन्हें जयस का समर्थन हासिल नहीं है। वहीं दूसरी ओर यह भी कहा गया कि जयस अब कांग्रेस की बी-टीम बनकर रह गई है। 

हालांकि इसके बाद जयस बिखराव की ओर बढ़ा और उसके कई गुट बन गए। जयस के कई ऐसे कार्यकर्ता, जो अपने क्षेत्रों में प्रभावशाली रहे, और विधानसभा चुनाव की काफी तैयारी कर चुके थे, संगठन के निर्णय के खिलाफ जाकर अन्य पार्टियों में अपनी भूमिका तलाशने लगे। जबकि कईयों ने चुनाव में निर्दलीय उतरने का निर्णय लिया। इसके अलावा राजस्थान में हाल ही में गठित भारत आदिवासी पार्टी ने भी जयस के कुछ लोगों को मध्य प्रदेश में अपना उम्मीदवार बनाया। 

देखा जाय तो अलग-अलग पार्टियों से या निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जयस के कार्यकर्ताओं के चुनावी मैदान में उतरने से कांग्रेस को ज्यादा नुकसान हुआ। मध्य प्रदेश की लगभग 80 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभानेवाले आदिवासी वोटरों को जयस ने कुछ हद तक लामबंद करने में सफलता हासिल की, जबकि बहुत से आदिवासी मतदाता भ्रम के शिकार भी हुए, क्योंकि जयस के अलग-अलग गुटों के कई उम्मीदवार, या जयस के ही बागी लोग चुनावी मैदान में खड़े थे। 

जयस के ही एक गुट – ‘जयस कोर कमेटी’ – जिसका नेतृत्व जयस संगठन के संस्थापक सदस्यों में से एक विक्रम अछालिया करते हैं, उन्होंने चुनाव पूर्व कहा था कि हम लोग जयस को किसी पार्टी की बी टीम नहीं बनने देंगे। चाहे सफलता देर से मिले, लेकिन हम लोग स्वतंत्र आदिवासी नेतृत्व तैयार करेंगे। 

हालांकि उन्होंने यह स्वीकार किया था कि उनकी टीम से भी कांग्रेस पार्टी के लोगों ने समझौता करने की प्रयास किए थे, लेकिन बात नहीं बनी।

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