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नन्नू हाफिज साहब को आठवीं बरसी पर शिद्दत से किया याद

स्वर्गीय हाफिज नन्नू खान

बेगमगंज। नहीं है ना-उमीद 'इक़बाल' अपनी किश्त-ए-वीराँ से ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बहुत ज़रख़ेज़ है साक़ी बेशक बेगमगंज की सरज़मी बड़ी जरखेज है जहां बड़े-बड़े अल्लाह वालों ने जन्म लिया और दीन के रोशन चराग बनकर इल्म की रोशनी से लोगों के जमीरों को रोशन कर राहे हक पर गांमजन किया। उन्हीं में से ऐसे ही एक अल्लाह के नेक बंदे जिनकी जाहिरी तौर पर आंखों की रोशनी नहीं थी अल्लाह ने उनके सीने में कुरआन पाक को महफूज किया और ऐसा महफूज किया कि आंखों से देख कर पढ़ने वाला गलती कर जाएं लेकिन उनसे गलती नहीं होती थी। मेरी मुराद है हजरत कारी हबीबुर्रहमान  कासमी की जो  नन्नू हाफिज साहब के नाम से मशहूर हुए लोग यह जानकर दांतो तले उंगलियां दबा लेते हैं कि आपके सीने में कुरआने हकीम को महफूज कराने वाले उस्ताद मोहतरम मुज्जू हाफिज साहब भी जाहिरी तौर पर नाबीना थे। हाफिज का कोर्स करने के बाद आपने दारुल उलूम देवबंद से आलिम और कारी का कोर्स किया।

उक्त बात उनकी आठवीं बरसी पर उन्हें शिद्दत से याद करते हुए एडिशनल मुफ्ती शहर भोपाल रईस अहमद कासमी  ने कही। उनके शागिर्द मुफ्ती वसीम खां उर्फ चांद ने बताया कि रायसेन जिला सहित आसपास के जिलों में आप के मुकाबले का कोई हाफिज और कारी नहीं था तरावीह पढ़ाते वक्त आपको कोई लुकमा नहीं दे पाता था, खुदा ने आपको ऐसी सलाहियतों  से नवाजा था  कि जब तकरीर कर दें तो बुझे हुए दिलों में भी  जज्बा ए ईमानी पैदा हो जाता था। दुआ कराने का भी अंदाज निराला था सख्त दिल इंसानो की भी हिचकियां लग जाती थी।

कारी रफीक खान ने कहा कि आपके दर्जनों शागिर्द जो आपकी जेरे निगरानी में हाफिज हुए मध्य प्रदेश के कई शहरों में अपनी खिदमात अंजाम दे रहे हैं।  आप एक अच्छे नातख्वां थे जब आप नात शरीफ का नजराना पेश करते थे तो लोगों की कैफियत बदल जाती थी। आप अक्सर नात शरीफ का यह शेर दौहराते थे - अगर अल्लाह ने चाहा तो तैबा हम भी जाएंगे, जाएंगे मगर लौट कर वापस ना आएंगे , वहां का जर्रा जर्रा मुश्को अंबर से भी बेहतर है, वहां की खाक को चूमेंगे आंखों से लगाएगें।

हाफिज सैयद अकबर खां ने बताया कि सर ज़मीने बेगमगंज के इल्म का रोशन चराग  आज से 8 साल पहले 31 दिसंबर 2015 को बुझ  गया और हजरत अपने मालिके हकीकी से जा मिले। दूर-दूर से आपके शागिर्द और पूरी बस्ती आपके दीदार के लिए उमड़  पड़ी,  जाहिरी तौर पर वह हमारी नजरों से जरूर ओझल हो गए हैं  लेकिन रूहानी एतबार से उन्हें  अपने करीब पाते हैं ।

''ज़माना बड़े गौर से सुन रहा था, हमीं सो गए दास्तां  कहते कहते । 

मौलाना अकरम उल्ला खान फाजिल ने कहा कि आपको अल्लाह ने ऐसी सलाहियत बख्शी  थी कि आप आवाज से लोगों को पहचान लेते थे, रास्तों का तजुर्बा भी आपको इतना था कि कदमों के हिसाब से अंदाज लगा लेते थे  कि अब फला शख्स की दुकान या मकान आ गया है। हाफिज साहब ने इंतेकाल से करीब तीन दिन पहले कब्र की जगह के मुताल्लिक जागीरदार सा. से बात करके जगह का ताइयुन किया था। 

अल्लाह मोहतरम हाफिज नन्नू साहब की बाल-बाल मगफिरत फरमांकर जन्नतुल फिरदौस में आला मुकाम अता फरमाए और आपका नेयमल बदल अता फरमाए आमीन।

जर्रों मे रहगुजर के चमक छोड़ जाऊँगा, पहचान अपनी दूर तलक छोड़ जाऊँगा,

खामोशियों की मौत गंवारा नहीं मुझे, शीशा हूं टूटकर भी खनक छोड़ जाऊँगा।

आपकी आठवीं बरसी पर वरिष्ठ हाफिज खुर्शीद खान उर्फ चांद मियां, हाफिज अब्दुल वहीद खान, हाफिज नईम बेग, हाफिज रियाज खान परवेज, हाफिज अजीज खान, हाफिज मो. इलियास, हाफिज लाल खां जागीरदार, हाफिज मजहर खान, हाफिज मो. शरीफ, हाफिज हस्सान साबरी, हाफिज अब्दुल रशीद, हाफिज आबिद अली,हाफिज सादिक खान, हाफिज राशिद खान, हाफिज इस्हाक खां, हाफिज इस्लाम खां, मंसूरी, मौलाना फरीद खां मंसूरी,मौलाना सगीर खां मंसूरी, मौलाना इकबाल खां मंसूरी, हाफिज अब्दुल शफीक खां, हाफिज असगर खान, हाफिज जुनैद खान, हाफ़िज़ शहजाद खां, हाफिज अकील खान, हाफिज आजम खान, हाफिज अब्दुल मतीन खान, हाफिज अब्दुल लईक खां,  हाफिज हसीब खां मंसूरी, हाफिज समीर खां, कारी सरफराज खां,  आदि ने शिद्दत से याद करते हुए खिराजे अकीदत पेश की है।


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