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जीवन में हम कभी भी निराश ना हो गीता जीवन जीने का संदेश देती है : प. कमलेश शास्त्री

 प. कमलेश कृष्ण शास्त्री ।

बेगमगंज। गीता जयंती के पावन पर्व पर पं.कमलेश कृष्ण शास्त्री  ने कहा श्रीमद्भगवद्गीता जीवन की प्रतिकूलताओं- विषमताओं और कठिनाइयों में विजय- विभूति, श्री-ऐश्वर्य और विवेक-विद्या प्रदात्रि है ! अतः जीवन सिद्धि- सफलता में सहायक है  श्रीमद्भगवद्गीता  श्रीमद्भगवद्गीता का वास्तविक उद्देश्य व्यवहार एवं अध्यात्म का समन्वय है, गीता में सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण का अमर संदेश है। गीता ने सदाचार को ही धर्म कहा है। सदाचार से ही त्याग जागृत होता है और त्याग से ही सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है। भारत के महान सन्त ठाकुर रामकृष्ण परमहंस  कहा करते थे कि गीता का अर्थ समझना है तो 'गीता' इन दो शब्दों को उलटकर बोलो अर्थात् 'तागी' या 'त्यागी'। जो त्यागी है, वह ज्ञानी हो सकता है। जीवन जिस सच्चाई का नाम है व्यक्ति प्रायः उस सच्चाई से दूर भागने का प्रयास करता है और यही भागदौड़ उसे कमजोर बनाती है। यदि वह सच्चाई का सामना करना सीख जाए तो जीवन में सफलता के नए सौपान प्राप्त किए जा सकते हैं। इन सबका एक ही समाधान है कि व्यक्ति जहाँ कहीं अवसर मिले वह श्रीमद्भागवत जैसी अथाह ज्ञान देने वाली कथा का वाचन- श्रवण अवश्य करे। श्रीमद्भागवत समाधान कारक व मोक्षदायक साक्षात् भगवदीय शब्द-विग्रह है, जहाँ जीवन की प्रत्येक पहेली का हल, प्रश्नों के उत्तर एवं शंका-समाधान समाहित हैं। पूज्य "प्रभुश्री"  ने जीवन जीने का मूल मंत्र बताते हुए कहा कि स्वयं को नियंत्रित करने, नियमों का निर्वहन करने, परम्पराओं का आदर करने तथा जो प्राकृतिक नियमों का पालन करते हैं वह पूजनीय हो जाते हैं। शास्त्र कहता है कि स्वयं से भी स्पर्धा करो, एक प्रतियोगिता स्वयं से रखो, अपने मन को जीत लो, अपनी बुद्धि व ज्ञान को जीत लो। आप अच्छा करते हो तो आपकी जीत है। जीवन परिवर्तन का दूसरा नाम है। और, प्रत्येक परिवर्तन को सकारात्मक दृष्टिकोण से स्वीकार करते हुए उसे नए उजाले की तरह अनुभव करना चाहिए। यह प्रवृत्ति तभी आ सकती है जब व्यक्ति श्रीमद्भागवत जैसी कथा का निष्ठा एवं तन्मयता से श्रवण करे। इस प्रकार सन्तों का सत्संग व्यक्ति को सद्-मार्ग की ओर ले जाता है ।


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