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बिहार में अति पिछड़ा वर्ग में शामिल पसमांदा जातियों की बदहाली

बिहार। सरकार द्वारा जारी जाति आधारित गणना रिपोर्ट के मुताबिक सूबे की कुल आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 है। इसमें मुसलमानों की आबादी 2 करोड़ 31 लाख 49 हजार 925 है जो कि कुल आबादी का 17.7088 प्रतिशत है। वहीं इनमें अशराफ (सवर्ण जातियों– शेख, पठान, और सैयद) की आबादी 62 लाख 80 हजार 537 है। हालांकि पारंपरिक रूप से मुगल भी अशराफ में शामिल हैं, लेकिन बिहार सरकार की रपट में उन्हें अन्य के रूप में प्रतिवेदित बताया गया है। एक अनुमान के मुताबिक दरभंगा, मधुबनी सहित मिथिला के क्षेत्र में इनकी आबादी करीब 10 से 15 हजार है।

इस आधार पर देखें तो पसमांदा मुसलमान (जो कि पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग में शामिल हैं) की कुल आबादी 1 करोड़ 68 लाख 69 हजार 388 है। चूंकि रिपोर्ट में पसमांदा जातियों को पृथक रूप से एकीकृत नहीं किया गया है, लिहाजा इनकी शैक्षणिक, आवासीय और रोजगार संबंधी आंकड़ों को अलग करके देखा जाना आवश्यक होगा ताकि यह सामने आ सके कि बिहार में मुसलमानों की एक बड़ी आबादी किस हाल में गुजर-बसर कर रही है।

सनद रहे कि पसमांदा मुसलमानों में सबसे अधिक जातियां अति पिछड़ा वर्ग में शामिल हैं। पिछड़ा वर्ग में शामिल पसमांदा मुसलमानों की बिहार की कुल आबादी में हिस्सेदारी केवल 2.1124 प्रतिशत है। 

पसमांदा समाज की स्थिति का एक अनुमान तो इसी मात्र से लगाया जा सकता है कि पिछड़ा वर्ग में शामिल सुरजापुरी मुसलमान, जिनका रहवास पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया आदि जिलों में है और – जो मल्लिक, मुगल और पठान नहीं हैं – के कुल 5 लाख 53 हजार 969 परिवारों में से 1 लाख 62 हजार 500 परिवार गरीब की श्रेणी में शामिल हैं।

यह आंकड़ा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार और अररिया आदि जिलों में सुरजापुरी मुसलमान खेतिहर रहे हैं और उनका मूल पेशा खेती रहा है। इसके बावजूद इस जाति के 29.33 प्रतिशत परिवार प्रति माह 6 हजार रुपए या इससे कम में गुजर-बसर कर रहे हैं। हालांकि राज्य सरकार द्वारा गरीबी का निर्धारण न्यूनतम मजदूरी यानी रोजाना कम से कम 395 रुपए के आधार पर किया जाता तो निश्चित तौर पर गरीबों और उनकी गरीबी के आंकड़े में और वृद्धि होती।

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