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डॉ. राधाकृष्णन द्वारा सनातन की प्रचारित अवधारणा का खण्डन


नई दिल्ली। ” वेद की मूल संहिताएं, जो आज हमें उपलब्ध हैं, उस समय की बौद्धिक स्फूर्ति से प्राप्त हुई हैं जबकि आर्य लोग अपनी वास्तविक मातृभूमि को छोड़कर इस देश मे आकर बसे थे। वे अपने साथ कुछ ऐसे विशेष भाव एवम विश्वास लाये जिनका इस देश की भूमि में विकास और प्रचलन हुआ।”

अब यह इतिहास का सर्वमान्य विषय है कि वैदिक आर्य और ईरानी लोग ही जाति के हैं और इनमें बहुत सी समानतायें एवम बंधुत्व का नाता दिखाई देता है। वे अपने एक ही आदिनिवासस्थान से भारत में और पारसियों के ईरान में आये।” 

“जब आर्य जाति के लोग पंजाब के मार्ग से भारत आये तो उनका भारत के उन आदिवासियों से सामना हुआ जिन्हें उन्होंने दस्यु की संज्ञा दी और जो उनके निर्बाध प्रसार का विरोध करते थे। ये दस्यु लोग कृष्ण वर्ण के थे, गोमांस खाते थे। आर्य लोग इनके सम्पर्क में आकर अपने आपको इनसे पृथक रखने के इच्छुक थे। जातिगत अभिमान के कारण व अपनी संस्कति की सर्वोत्तममत्ता के कारण उत्पन्न हुए, अपने को दस्युओं से पृथक रहने के भाव ने ही आगेचलकर  जात- पात के भेदभाव का रूप धारण कर लिया।”     

राधाकृष्णन के इन कथनों के विवेचन से यह भी साबित होता है कि आर्यों के पूर्व भारत मे सभ्यता का विकास हो गया था। भारत के मूलनिवासियो की अपनी पूजा पद्धति थी जो विदेशी आर्यों से भिन्न थी। वेदों के कई प्रसंग जैसे इंद्र और कृष्ण का संघर्ष कोई कोरी कहानी नही वरन दो संस्कृतियों के संघर्ष का प्रतीक है। ये संघर्ष भारत की मूल संस्कृति के साथ आर्यो के संघर्ष थे। इसी संघर्ष में आर्यों ने मूलनिवासि भारतीयों को राक्षस कहा  है।

राक्षस जो मूलनिवासी भारतीयों में बलशाली लोग होते हैं।जो मूलनिवासी भारतीयों की रक्षा करते थे। बार बार आर्य ऋषियों के राक्षसों से युद्ध यही साबित करतें हैं। आर्यो के नेता जब मूलनिवासी भारतीयों की जमीनों ,संसाधनों पर कब्जा करते थे तो राक्षस से उनका युद्ध होता था। सीधी लड़ाई में आर्य कमजोर थे तो वे साजिशो का सहारा लेते थे, बाद में आर्यों ने इन्ही मूलनिवासी राक्षसों का वर्णन अपने कथा, कहानियों ने दुराचारी, अत्याचारी, नरभक्षी के रूप में किया है जिनको हराने के लिए आर्यो की साजिश की गाथा इनके धार्मिक ग्रंथों में भरी पड़ी है।

आर्यों ने इस सभ्यता के साथ कैसा व्यवहार किया? प्राचीन संस्कृति क्या थी? कैसी थी? वह संस्कृति आज किस रूप में है?  हैं भी या नही? सिंधु सभ्यता के साथ आर्यो के संघर्ष का क्या प्रारूप रहा?

यह सारे सवाल शोध के विषय हैं। पर राधाकृष्णन इस अवधारणा का खंडन कर ही देते हैं कि सभी भारतीयों का DNA एक है। यह भी स्थापित करते कि वैदिक आर्य भारत की प्राचीनतम सभ्यता के अंग नही हैं।

राधाकृष्णन तमाम तर्को से यह साबित करतें हैं कि आर्य और ईरानी एक मूल के हैं। उनका मानना है कि पारसियों का धर्मग्रंथ, जिन्दावस्ता, वेदों के जितना सन्निकट है उतने निकट आर्यो के अपने उत्तरवर्ती संस्कृत के महाकाव्य भी नही हैं। राधाकृष्णन आर्य और ईरानीयों को बन्धु जाति कहतें हैं और बतातें हैं कि इनके देवता एक ही हैं।

अब उन लोगो को जो सभी भारतीयों का डीएनए एक मानते हैं, राधाकृष्णन को देशद्रोही घोषित करने में देर नही करनी चाहिए और उनकी पुस्तकों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। उनके खिलाफ धरना प्रदर्शन शुरू कर देना चाहिए।

उन्हें भी जो कहतें हैं कि वेद लाखों, करोड़ों वर्ष पुराने हैं और ये भारत भूमि की पर अवतरित हुए, को राधाकृणन के खिलाफ मोर्चा खोल देना चाहिए। कुछ संस्थाए व भ्रमवंशी जो यह प्रचारित करते कि आर्यों का वैदिक धर्म, ब्राह्मण धर्म परवर्ती हिन्दू धर्म सनातन है, अनादि काल से है, राधाकृष्णन उनको जोरदार वैचारिक थप्पड़ मारते हैं।

आर्यो के पूर्व भारत मे विकसित सभ्यता थी। सम्भवतः वह सिंधु सभ्यता थी। कुछ शोधार्थी यह भी कहतें हैं कि आर्यो के आक्रमण/आगमन से पूर्व की सभ्यता बौद्ध सभ्यता थी, गौतम बुद्ध , बुद्धों की परम्परा के 28 वें व अंतिम बुद्ध थे। पर यह परिकल्पना अभी और शोधपूर्ण अध्ययन की मांग करती हैं।

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