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मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग की पहल को न्यायमूर्तियों ने सराहा

भोपाल। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति श्री जितेन्द्र कुमार माहेश्वरी ने कहा है कि समाज और सरकार की शुद्ध अंतकरणीय  चेतना से बंदियों के नागरिक अधिकारों की सुरक्षा हो सकती है और वे देश के सभी मानव जैसे ही विकास में भागीदार हो सकते है। उन्होंने शासन को सुझाव दिया कि पायलट प्रोजेक्ट के रूप में किसी एक जेल को आदर्श रूप देकर बंदियों को सेहतमंद बनाकर उनके सभी मौलिक अधिकारों को अमल में लाया जा सकता है। न्यायमूर्ति श्री माहेश्वरी रविवार को प्रशासन और प्रबंधकीय अकादमी में मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग द्वारा अंतराष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस पर बंदियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा अधिकार मानव अधिकार विषय पर सेमीनार में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे।

श्री माहेश्वरी सहित अन्य अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर सेमीनार के उद्घाटन सत्र का शुभारंभ किया।उन्होंने महात्मा गांधी के विचारो को उद्धृत करते हुए कहा कि अपराधी भी मानव होता है और कुछ परिस्थितियां होती है जो समाज के उसी मानव को अपराधी बनाती है।हमे अपराधी नहीं अपराध से घृणा करना सिखाया गया है।उन्होंने कहा कि समाज और सभी जिम्मेवारो को मानव के अधिकारो के लिए सजग रहकर चेतना भाव से कार्य करना होगा। न्यायमूर्ति श्री माहेश्वरी ने कहा कि हमे एक सकारात्मक चेतना तंत्र विकसित करना होगा और उस पर अमल करके बंदियों को देश के विकास के लिए सहभागी मानव बनाना होगा। उन्होंने मध्यप्रदेश सहित अन्य जेल में वर्तमान की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए बंदियों को सेहतमंद बनाने के लिए ठोस और सुनियोजित प्रयासों की जरूरत बताई। उन्होंने मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग की इस पहल के लिए सराहना भी की।

मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर के न्यायमूर्ति श्री सुजाय पाल ने विशिष्ठ अतिथि के रूप में कहा कि नेल्सन मंडेला कहा करते थे कि किसी राष्ट्र की अच्छाई इस बात से परखी जाना चाहिए कि उसके बंदीगृह कैसे है।उन्होंने उपस्थित जनों से कहा कि दोषमुक्त या सजा पूरी कर चुके बंदी को समाज को अपनाने में भेद नहीं करना चाहिए। उन्होंने विध्वंस और सृजन को समझाते हुए लोगो से सभी मानवों को सामान्य रूप से अपनाने की अपील की।उन्होंने भगवान बुद्ध की एक सीख से 999 हत्या करने वाले अंगुलिमाल के संत बन जाने का उल्लेख करते हुए कहा कि कोई भी अपराधी नही सुधरेगा यह सही नहीं है। उन्होंने आयोग के इस सेमीनार को बंदियों के स्वास्थ और सुरक्षा अधिकार के लिए मील का पत्थर बताते हुए कहा कि आज के विमर्श से नई राह निकलेगी।उन्होंने आयोग को इस आयोजन के लिए बधाई भी दी।

उच्च न्यायालय ग्वालियर बेंच के न्यायमूर्ति श्री संजीव एस कालगंवकर ने कहा कि जिला सत्र न्यायाधीश रहते हुए उन्होंने बंदियों के अधिकारो के हनन के कई गंभीर मामले देखे है और उन्हें ठीक भी करवाया है। उन्होंने कहा कि सुधार और नवाचार की हमेशा संभावना बनी रहती है। उन्होंने कहा कि बंदियों को मानव मानकर उनके मूलभूत अधिकार उन्हे देना ही चाहिए।उन्होंने सभी से आत्म परीक्षण करने की अपील करते हुए कहा कि सरकारी नियम कायदे और जेल प्रशासन के उचित ओरियेटेंशन नही होने से भी मनमाफिक व्याख्या होती है, जिससे बंदी अधिकारो से वंचित होते है। उन्होंने आज के सेमीनार को बंदियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा अधिकार की दिशा में बीज रोपण बताते हुए कहा कि इसकी अच्छी अनुशंसाएँ बंदियों को अधिकार दे सकेंगी।

सेमीनार की अध्यक्षता करते हुए मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष श्री मनोहर ममतानी ने विषय की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पिछले 5 वर्षों में प्रदेश की जेलों में 900 से अधिक बंदियों की मृत्यु में से अधिकतर तो सामान्य थी पर कुछ स्वास्थ्य सेवाओ की कमी, समय पर उपचार न मिलने, रोग की पहचान नहीं होने और कुछ अवसाद के कारण हुई है जो गंभीर है। उन्होंने कहा कि आयोग ने बंदियों के नागरिक अधिकारों की सुरक्षा करते हुए उनके परिवारों को 3 करोड़ से अधिक की राशि दिलवाई है, पर असल बात बंदियों को समय पर संविधान में प्रदत्त अधिकार के अंतर्गत उनकी स्वास्थ्य और सुरक्षा के अधिकार दिलवाना हैं।

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