ऑपरेशन सिलक्यारा में जुटे राहत एवं बचाव दलों के लिए मंगलवार की सुबह से ही मंगलकारी सूचनाएं आने लगीं। जैसे-जैसे सूरज चढ़ता गया, ऑपरेशन की सफलता से संबंधित सूचनाएं भी आगे बढ़ती गईं।
लोग टकटकी लगाए सुरंग की तरफ ही देखते रहे। उम्मीद और आस में लोगों का दिन बीत गया। शाम को जब मजदूर बाहर आए तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी दिनभर सिलक्यारा सुरंग स्थल पर मौजूद रहे।
उत्तरकाशी की धंसी सुरंग में फंसे सभी 41 श्रमिकों को बाहर निकाल लिया गया है। 12 नवंबर को अहले सुबह सुरंग धंसी थी और वहां काम कर रहे मजदूर फंस गए थे। तब से उन्हें बाहर निकालने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया गया। देश ही नहीं, विदेश से भी एक्सपर्ट आए। भारी मशीनों को लगाया गया। इस दौरान बाबा बौख नाग को मनाने का दौर भी जारी रहा। आखिरकार 16 दिनों के रेस्क्यू ऑपरेशन ने रंग दिखा दिया। ‘इंसान, विज्ञान और भगवान’ की त्रिशक्ति ने सीमेंट और शरिये की मजबूत जोड़ को ध्वस्त कर दिया। अब 16 दिन बाद 41 जिंदगियां घुप्प अंधेरे से निकलकर आजाद हवा में सांस ले पाएंगे। यह चमत्कार नहीं तो चमत्कार से कम भी नहीं है। आइए जानते हैं कि इंसान, विज्ञान और भगवान की त्रिशक्ति ने कैसे यह चमत्कार कर दिखाया…।
बात 12 नवंबर, 2023 की सुबह करीब 5.30 बजे की है जब उत्तरकाशी में बन रही सिलक्यारा-डंडालगांव सुरंग का एक हिस्सा अचानक धंसने लगा। सुरंग में काम कर रहे मजदूरों पर देखते ही देखते आफत की बारिश हो गई। सुरंग का मलबा 60 मीटर तक फैल गया और बाहर का रास्ता बंद हो गया। 41 मजदूर सुरंग में कैद हो गए। सबसे पहली चुनौती थी- मजदूरों की स्थिति जानने की। मलबे की वजह से वॉकी-टॉकी ने काम करना बंद कर दिया था। तब उत्तरकाशी जिला प्रशासन ने डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (डीएमए) और स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (एसडीआरएफ) की टीम को लगा दिया। इसके साथ ही रेस्क्यु ऑपरेशन की शुरुआत हो गई। मजदूरों का हाल जानकर उन्हें सुरक्षित रखने की कवायद होने लगी। इस प्रयास में काम आया चार इंच का एक पाइप जिसे एक दिन पहले ही सुरंग का पानी बाहर निकालने के लिए बिछाया गया था। इसी पाइप के पास वॉकी-टॉकी का सिग्नल मिला और मजदूरों से बातचीत होने लगी। मजदूरों को पाइप से कंप्रेसर के जरिए ऑक्सिजन, दवाइयां और कुछ खाने-पीने की चीजें भेजी जाने लगीं। पहले चरण की सफलता मिलने के बाद अब पूरा ध्यान मजदूरों को बाहर निकालने पर गया।
इसी प्रयास में मलबा हटाने की कोशिशें तेज हुईं। लेकिन एक तरफ मलबा हटाया जा रहा था तो दूसरी तरफ से मलबा गिर भी रहा था। तब मशीन से करीब 20 मीटर तक मिट्टी हटाई गई, लेकिन ऊपर से मलबा गिरने लगा। तब मलबा हटाने के बजाय ऊपर से ड्रिलिंग करने का फैसला किया गया। ड्रिलिंग के जरिए 900 एमएम के मोटे पाइप मजदूरों तक पहुंचाने थे। काम शुरू हुआ, लेकिन रफ्तार बहुत धीमी रही। तब सी30 हरक्यूलिस विमान से 25 टन वजनी अमेरिकी ऑगर मशीन दिल्ली से लाया गया। पहले की ऑगर मशीन हर घंटे 1 मीटर ड्रिल कर रही थी और दिल्ली से आई मशीन प्रति घंटे 5 मीटर की रफ्तार से ड्रिलिंग करने लगी। लेकिन करीब 25 मीटर तक ही पाइप डाली गई थी कि ऑगर मशीन में खराबी आ गई। अब 900 एमएम का पाइप डालना मुश्किल हो गया।
तब 800 एमएम का पाइप डाला जाने लगा। रेस्क्यु ऑपरेशन के आठ दिन हो गए थे। लेकिन कुछ खास सफलता मिलती नहीं दिख रही थी। तब पांच तरफ से ड्रिलिंग करने का फैसला हुआ। एनएचआईडीसीएल, टीएचडीसीआईएल, ओएनजीसी, आरवीएनएल और सतलुज जल विद्युत निगम जैसी संस्थाओं को इस काम में लगा दिया गया। 21 नवंबर को 6 इंच का एक पाइप मजदूरों तक पहुंचाने में सफलता मिल गई। इस पाइप से उनके पास खाने-पीने के बेहतर साधन मुहैया होने लगे। तभी एक वक्त ऐसा आया जब लगा कि कुछ घंटों में मजदूर बाहर निकाल लिए जाएंगे। 60 मीटर के मलबे में 45 मीटर तक 800एमएम का पाइप पहुंच चुका था। बस तीन पाइप डाले जाने थे कि अमेरिकी ऑगर मशीन सीमेंट और शरिये के मजबूत जोड़ में फंसकर खराब हो गई।
तब तक विदेश से एक्सपर्ट्स भी आ गए थे। उन्होंने कहा कि अब ऑगर मशीन ठीक नहीं की जा सकती है। दो दिन ड्रीलिंग का काम रुक गया। फिर रैट माइनर्स को काम पर लगाया गया। यह इंसानी जज्बे की पराकाष्ठा का प्रतीक है। रैट माइनर्स के जरिए हाथ से मलबा निकालने का काम शुरू हुआ। 27 नवंबर, सोमवार को 6 रैट माइनर्स से 2-2 की टीम में लोग मजदूरों तक पहुंचने लगे। कहा गया कि 24 घंटे में वो मजदूरों तक पहुंच जाएंगे। लेकिन जुनून देखिए, अनुमान से पहले ही वो मजदूरों तक पहुंच गए।
जब मशीनें दम दिखा रही थीं, इंसानी जज्बे सबाबा पर थे, तभी भगवान से आशीर्वाद भी मांगा जा रहा था। दरअसल, स्थानीय लोग कह रहे थे कि बाबा बौखनाग की नाराजगी के कारण सुरंग धंसी है। उनका दावा है कि सुरंग बनाने के दौरान बाबा बौखनाग की प्राचीन मंदिर को नष्ट कर दिया गया। स्थानीय लोगों के दावे के बाद बाबा बौखनाग को मनाने की कवायद भी शुरू हुई। 23 नवंबर को स्थानीय लोगों ने सुरंग के बाहर बाबा बौखनाग का मंदिर फिर से स्थापित किया। उसके बाद स्थानीय लोगों ने दावा किया कि बाबा बौखनाग के मंदिर के पीछे महादेव की परछाई नजर आने लगी। सभी ने कहा कि ऑपरेशन को सफल करने के लिए बाबा बौखनाग साक्षात मौके पर मौजूद हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी बाबा बौखनाग की दुहाई देने लगे। उधर, विदेशी एक्सपर्ट अर्नोल्ड डिक्स ने भी बाबा बौखनाग के मंदिर पहुंच गए और पुजारी से पूजा करवाई।
विज्ञान की ताकत, इंसान की मेहनत और भगवान के आशीर्वाद ने 41 मजदूरों की जान बचा ली। बुनियादी ढांचे के विकास में कई बार प्रकृति के प्रकोप का सामना करना पड़ता है। इस बात को लेकर गंभीर बहस होते हैं कि क्या प्रकृत्ति की गोद में बसे उत्तराखंड जैसे प्रदेशों में विकास के नाम पर कंक्रीट का जाल बिछाना सही भी है? इस बहस के कई पहलू हैं। पक्ष-विपक्ष और संतुलित पक्ष में तरह-तरह के विचार रखे जाते हैं। लेकिन सच यही है कि मानव सभ्यता की गाथा विकास की कड़ियों से ही गुंथी है। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में बुनियादी ढांचों के बिना जीवन बड़ा दुष्कर है। अस्पताल जैसी प्राथमिक और अनिवार्य सुविधा पाने के लिए लोगों को भारी पेरशानी उठानी पड़ती है। ऐसे में विकास कार्य तो रोके नहीं जा सकते, उन्हें अंजाम तक कैसे पहुंचाया जाए, इस पर बहस हो रही है और होती भी रहेगी, होनी भी चाहिए। बहरहाल, हमारे 41 मजदूरों की जिंदगियां बच गईं है, इसका जश्न मनाने का मौका है। और मौका है- विज्ञान, इंसान और भगवान को धन्यवाद कहने का।
सुबह आठ बजे से मिलने वाली शुभ सूचनाएं धीरे-धीरे खुशी में बदलती दिखी। दोपहर करीब दो बजे जैसे ही मजदूरों ने भीतर पाइप पहुंचने की पुष्टि की तो सबकी खुशी का ठिकाना न रहा।
पिछले 17 दिनों से सिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूरों के परिजनों के लिए ये दिन बेहद हताशा व उम्मीदों भरे रहे। वह सुबह से शाम तक सुरंग की ओर टकटकी लगाए अपनों का इंतजार करते थे।
हालांकि, पहले पाइपलाइन और बाद में ऑडियो सिस्टम से अंदर बातचीत कर उन्हें अपनों की सलामती की खबर मिलती रही। यही कुछ पलों की बात उन्हें इन मुश्किल समय में हिम्मत देती थी।
12 नवंबर को हुए हादसे के बाद धीरे-धीरे अंदर फंसे मजदूराें के परिजनों के सिलक्यारा पहुंचने का सिलसिला शुरू हुआ था। जिनकी पाइपलाइन व वॉकी-टॉकी से सुरंग के अंदर फंसे उनके अपनों से बात करवाई जाती थी।विज्ञापन
इस दौरान कई बार ऐसी उम्मीद बंधी कि रेस्क्यू ऑपरेशन आज खत्म हो जाएगा। इस उम्मीद वह परिजन सुबह ही सिलक्यारा सुरंग के बाहर पहुंच जाते थे, लेकिन शाम होते-होते उनकी उम्मीद टूट जाती थी। सुरंग में फंसे झारखंड के ग्राम केशोहीह निवासी विश्वजीत के भाई इंद्रजीत हर दिन सुरंग के बाहर पहुंचकर अपने भाई का इंतजार करते थे।
उन्होंने बताया कि रेस्क्यू के यह 17 दिन उनके लिए बेहद मुश्किल रहे। हर दिन उम्मीद के साथ शुरू होता, लेकिन रात-होते-होते हताशा घेर लेती, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। बताया कि वह यहां भाई को लेने आए थे, उन्हें साथ लेकर ही जाएंगे।