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मिर्जा इकराम बेग को 16वीं बरसी पर किया शिद्दत से याद

 स्वर्गीय मिर्जा इकराम बेग

बेगमगंज। राह देखा करेंगे सदियों तक, छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा माला गांव वैसे तो आसपास के इलाके में पहले से ही फेमस था लेकिन दिल्ली के सियासी गलियारों तक पहुंचाने में जिस शख्सियत ने अहम किरदार अदा किया वह थे स्वर्गीय हाजी मिर्जा इकराम बेग,  कयादत कैसे की जाती है और फौरी तौर पर फैसले कैसे लिए जाते हैं इसमें आप माहिर थे। विषम परिस्थितियों में फौरन फैसले लेने की कला आपके अंदर थी जिससे कई बड़े-बड़े फसाद रुक गए। सियासत में आपकी एक अलग पहचान थी आज भी कांग्रेस आलाकमान में आपका नाम अदब से लिया जाता है।

उक्त उद्गार 16वीं बरसी पर खिराजे अकीकद पेश करते हुए रिटायर्ड शिक्षक और औसाफ सिद्दीकी ने व्यक्त करते हुए श्री बेग को शिद्दत से याद किया।

वरिष्ठ अधिवक्ता चांद मियां  ने स्व. इकराम बेग के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि गरीबों की मदद हो या यतीम बेवाओं को सहारा देने की बात हो आप हर जगह खामोशी के साथ मदद पहुंचा देते थे या सहारा दे देते थे।

युवक कांग्रेस से लेकर वरिष्ठ कांग्रेस तक आप विभिन्न ओहदों पर रहे लेकिन कभी गुरुर को पास नहीं फटकने दिया। देश में बसने वाले हर इंसान के लिए एक दूर की सोच उनके पास मौजूद रहती थी, दूर अंदेशी  और शुजाअत आप में बेमिसाल थी।

वरिष्ठ पत्रकार शब्बीर अहमद ने उन्हें शिद्दत से याद करते हुए बताया कि बिजनेस के मामले में भी एक कामयाब तिजारती रहे, यही हाल खेती किसानी में भी रहा , छोटों पे शफक्कत करना और बड़ों का अदब करना आपकी तहजीब में शामिल था। छोटे बड़े सभी अदब से  आपसे भाई साहब, मौलाना और अधिकारी वर्ग मिर्जा साहब कह कर पुकारते  थे। बेगमगंज के साथ- .साथ गैरतगंज में भी आपने कौम की समाज की रहनुमाई की सभी वर्गों के लोग  आपके काम करने के तरीके को पसंद करते थे। आज भी लोग आपको याद करते हैं और जब कहीं महफिल में कोई चर्चा होती है तो आपका जिक्र जरूर होता है। आपका  बेबाक अंदाज और मजबूती के साथ अपनी बात किसी भी अधिकारी के सामने रखने में महारत हासिल थी। कई कौमी समाजी तंजीमों में भी आप सरगर्म  रहे, बेगमगंज में जब इज्तिमाई  शादी का काम शुरू किया गया तो आपने उसकी भी सरपरस्ती फरमाई। एक अच्छे कायद के तौर पर आज भी आप लोगों के दिलों में ज़िन्दा है।

वरिष्ठ शायर सैयद आबिद हुसैन तालिब ने अपने उद्बोधन में बताया की बेपनाह शख्सियत के मालिक मिर्जा साहब हम सब से 22 दिसंबर 2007 को 16 साल पहले जुदा होकर मालिके हक़ीकी से  जा मिले, आप के जनाजे में सभी धर्मों के लोग अधिकारीगण भारी संख्या में शामिल हुए थे। ऐसा लगता है कि वह आज भी कहीं आस पास ही है ।

किसी शायर ने क्या खूब कहा है की मौत ने चुपके से ना जाने क्या कहा। और जिंदगी खामोश हो कर रह गयी।।

इस अवसर पर परिजनों द्वारा कुरान का पाठ कराकर गरीबों को भोजन कराया गया और मालिक से  हाजी मिर्जा इकराम बेग साहब की  मग़फिरत की दुआ की गई।


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