भोपाल । प्रदेश में रबी की बुवाई शुरू हो गई है, लेकिन किसानों को खाद नहीं मिल पा रहा है। आलम यह है कि दिन भर कतार में खड़े रहने के बाद भी किसान खाली हाथ घर लौट रहे हैं। खाद संकट की कमी से जूझ रहे प्रदेशभर के किसानों का सब्र अब जवाब देने लगा है। सोसाइटियों में खाद की कमी के लिए किसान खेती-किसानी का काम सही तरीके नहीं कर पा रहे हैं। विधानसभा चुनाव के बीच प्रदेश के अन्नदाता खाद के संकट से जूझ रहे है। ऋण पुस्तिका, आधार कार्ड सहित कई कीमती दस्तावेज जमीन पर रखकर घंटों खाद का इंतजार कर रहे है। 10 से 12 घंटे की प्रतीक्षा के बाद कुछ ही किसानों को नाममात्र की खाद मिल पा रही है। इतने संघर्ष के बाद अधिकांश को खाली हाथ लौटना पड़ता है। अफसरों की लापरवाही के चलते किसान संकट के दौर से गुजर रहे हैं।
गौरतलब है कि खरीफ सीजन में बेमौसम बारिश ने फसलों को बर्बाद किया। अब रबी सीजन की शुरुआत में ही शासन के जिम्मेदारों की लापरवाही ने किसानों के सामने चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। सबसे खराब हालात मालवा-निमाड़, बुंदलेखंड, बघेलखंड, ग्वालियर चंबल के जिलों में हैं, जबकि धान प्रधान मष्ठाकौशल में दिवाली बाद बुवाई होने पर इसकी जरूरत पड़ेगी। यहा बुवाई को 16 दिन हो चुके हैं, लेकिन यूरिया, एनपीके 12-32-16, डीएपी खाद को किसान तरस रहे हैं। आलम यह है कि प्रदेश की सहकारी समितियों से लेकर प्राइवेट दुकानों तक पर इसका टोटा है। जिन अंचलों में प्राइवेट व्यवसायियों ने इसकी जुगाड़ कर रखी थी वे मुनाफा काटने के लिए किसानों को दोगुने दामों पर बेच रहे हैं। किसानों को चिंता यह है कि रबी सीजन दलहली, तिलहनी और अनाज के हिसाब से किसानों की माली हालत सुधारने वाला होता है।
एक से दो बोरी से चल रहा काम
जानकारी के अनुसार प्रदेश के कुछ जिले जिनमें सरकारी सिस्टम से वितरण के लिए खाद पहुंचा भी है, वह ऊंट के मुंह में जीरा बराबर है। देवास जैसे बड़े जिले में मान लीजिए पहली खेफ में 500 बोरी खाद पहुंचा तो एक किसान को बमुश्किल एक से दो बोरी मिल जाए तो बड़ी बात होगी। इससे न तो खेतों में फसल को बहुत लाभ होगा और न ही संबंधित क्षेत्र की जरूरत होगी। एक एकड़ में किसान को डेढ़ बोरी खाद लगती है। इस हिसाब से लघु व सीमांत कृषक जिसके पास 5 से 7 एकड़ भूमि है, उसे 10 बोरी खाद चाहिए। मझोला किसान जिसके पास 10 से 20 एकड़ जमीन है, उसे 30 बोरी खाद चाहिए। 50 एकड़ या उससे ज्यादा का काश्तकार है, उसे 75 से 100 बोरी खाद चाहिए। अगर किसान पूरा-पूरा दिन लाइन में लगे तो उसे कितनी खाद मिलेगी और वह खेत में पानी, दवा कब देगा। निंदाई-गुड़ाई कब करेगा? देवास के किसान गोवर्धन लाल पाटीदार ने बताया कि मालवा और निमाड़ में किसान तीनों ही खाद के लिए भटक रहे हैं। समस्या का समाधान कृषि विभाग के अधिकारी भी नहीं कर पा रहे हैं। अब किसान संघ के पदाधिकारियों से मिलकर समस्या समाधान के लिए शासन को पत्र लिखेंगे। जबलपुर के किसान और भारतीय किसान संघ के संगठन मंत्री भरत पटेल का कहना है कि किसान को जिस समय अपने खेतों में ध्यान देना चाहिए, वे खाद के लिए परेशान हो रहे हैं। बैरसिया के खजूरिया रामदास के कृषक माधव सिंह दांगी बताते हैं कि यूरिया की बेहद शॉर्टेज है। प्राइवेट सेक्टर में जिनके पास उपलब्ध वे दोगुने दाम पर बेच रहे हैं। सहकारी समितियों में इक्का-दुक्का जा ट्रक आते हैं, उसकी खाद बड़े काश्तकार कब ले जाते हैं, पता नहीं चलता।
पूरे प्रदेश में खाद की किल्लत
प्रदेश में कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां खाद की कमी नहीं है। मालवा निमाड़ में गेहूं और आलू की बुवाई हो चुकी है, अब किसान उत्पादन बढ़ाने के लिए यूरिया डालना चाहते हैं, लेकिन नहीं मिल रही। किसानों का कहना है कि 15 दिन से बुवाई चल रही है, लेकिन सहकारी समितियों से लेकर प्राइवेट गोदामों से तक खाद नहीं पहुंची। अधिकारियों से जब भी मिलो, एक ही रोना है, ट्रेन का रैक आते ही वितरण करवाया जाएगा। महाकोशल-बुंदेलखंड में भी खाद की कमी किसानों की परेशानी का सबब बनी हुई है। जबलपुर और नरसिंहपुर में मटर की खेती बड़े पैमाने पर होती है। बुंदेलखंड के दमोह, सागर और छतरपुर में मटरी खूब उगाई जाती है। इसी तरह एमएसपी में रेट बढऩे के कारण इस साल दहलन अरहर, मसूर और तिहलन सरसों को रकबा बढ़ेगा, लेकिन खाद की कमी का संकट किसानों को परेशान कर रहा है। इधर, छिंदवाड़ा, सिवनी सहित अन्य जिलों में भी खाद की कमी है। मध्यक्षेत्र के भोपाल से लगे बैरसिया और सीहोर में भी खाद की कमी है। जहां पहुंच चुकी है, वहां दोगुने दाम बिक रही है। सहकारी समितियों में खाद की कमी है, जबकि प्राइवेट में 269 रुपए की खाद की बोरी 350 से 450 रुपए तक बिक रही है।