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हकीम हबीब अली खुरई वालों को शिद्दत से किया याद


बेगमगंज। हकीम साहब खुरई वाले एक ऐसा नाम है जो आज भी लोगों की जुबान पर बर बस आ जाता है। उनका दवाखाना आज भी संचालित है उनकी एक बेटे गैरतगंज में तो दूसरे राहतगढ़, तीसरे बेटे ग्रामीण क्षेत्रों में चौथे बेटे शहर में तो वहीं उनके पोते बेगमगंज और भोपाल में चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे है। उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में ऐसी पौध तैयार की जो आज भी लोगों को लाभ पहुंचा रही है। हम बात कर रहे हैं स्वर्गीय हकीम हबीब अली खुरई वालों की जिन्हें नाड़ी का ज्ञान इतना था कि वह नब्ज देखकर मरज बता देते थे। विशेष कर बच्चों के लिए वह क्षेत्र में वरदान थे क्योंकि बच्चे अपनी बीमारी बात नहीं पाते देखकर उनके बेहतरीन इलाज करते थे। 

उक्त बात उनकी 13वीं बरसी पर खिराजे अकीदत  पेश करते हुए चांदमियां एडवोकेट ने कहीं। समाजसेवी बाबू शब्बीर आजम खान ने कहा कि हकीम हबीब अली खुरई वालों को मलिक ने बेशुमार हिकमतों से नवाजा था उन्होंने जिस मरीज के बारे में जो बता दिया वहीं जांच में निकलता था। आज भी दूर दराज ग्रामीण इलाकों के मरीज उनका नाम और 

दवाखाने का पता पूछते हुए आते हैं। उनके द्वारा मरीजों को  दी जाने वाली दवा की पुड़िया और नुस्खे आज भी लोगों को याद है। यूनानी आयुर्वेद व एलोपैथिक पद्धति से उनके द्वारा किया जाने वाला इलाज बेमिसाल था। महिला रोगों के भी आप अच्छे खासे विशेषज्ञ थे बच्चों में होने वाला सुखा मैली रोग आपकी दवा और ताबीज से चंद दिनों में ही समाप्त हो जाता था। एलोवेरा का हलवा फेमस था जिसे कई बड़े अधिकारी मंगवा कर सर्दियों के मौसम में उपयोग करते थे। आज वे हमारे बीच मौजूद नहीं है लेकिन उनकी यादें हमारे साथ हैं।

उनकी 13वीं बरसी पर जहां कुरआन शरीफ का पाठ कराया गया वही उन्हें शिद्दत से याद करते हुए खिराजे अकीदत  पेश की गई जिसमें विशेष रूप से शब्बीर अहमद, अमजद अली, रफीक नवाब, अफसर सौदागर, अनीस मंसूरी, अनवार खां राईन, सईद अली, मिर्जा जुनेद बैग, मो. यूसुफ खां, रईस खां भोपाली, राशिद खान, शफीक अहमद, हाजी रफीक खलीफा, शेख फाजिल सहित अनेकों  लोग शामिल थे।

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