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करवा चौथ का पर्व परंपरागत रूप से मनाया गया

बेगमगंज। नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में पति-पत्नी के अटूट प्यार का करवा चौथ का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया गया । चांद का बेसब्री से इंतजार कर रही महिलाओं को करवा चौथ का चांद दिखते ही महिलाओं ने चांद को अर्घ्य देकर पूजा की और इसके बाद पति की पूजा की, फिर सभी व्रती महिलाओं के पतियों ने उन्हें पानी और मिठाई खिलाकर व्रत पूरा कराया। करवा चौथ पर सबसे पहले सभी महिलाओं ने पंचांग के मुताबिक शाम को 5:36 बजे से लेकर 6:54 बजे तक के शुभ मुहूर्त में पूजा की। इसके बाद अपनी घर की छत पर या आंगन में चांद के दीदार के लिए प्रतीक्षा कर रही महिलाओं को काफी  इंतजार के बाद आसमान पर  चांद दिखा चांद निकलते ही सभी महिलाओं ने करवा चौथ के चांद की पूजा की।

करवा चौथ

आपको बता दें कि सभी महिलाओं ने चंद्रोदय के समय एक लोटे में साफ जल भरा और उसमें दूध, अक्षत् और सफेद फूल मिलाया. फिर चंद्रमा को मन में ध्यान करके अर्घ्य देने के साथ मंत्र का उच्चारण करते हुए अर्घ्य दिया। फिर चंद्र देव को प्रणाम करके अपने पति की लंबी आयु और सुखी जीवन की प्रार्थना की।

उल्लेखनीय है कि करवा चौथ के मौके पर सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। करवा चौथ के व्रत में चंद्रमा की पूजा का खास महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि करवा चौथ पूजा के दौरान माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। लेकिन बिना चंद्रमा के दर्शन और जल अर्पित किए बिना यह व्रत पूर्ण नहीं होता है इसके चलते करवा चौथ के दिन चांद का खास महत्व होता है।

दुल्हन की तरह सजी महिलाएं:- करवा चौथ के व्रत में श्रृंगार का खास महत्व होता है इसलिए सभी व्रती महिलाओं ने दुल्हन की तरह अपना श्रृंगार किया और लाल जोड़ा या साड़ी पहने दिखाई दी। दरअसल हिन्दू धर्म में लाल रंग को सुहाग का प्रतीक माना जाता है करवा चौथ व्रत में शादीशुदा महिलाओं ने भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय और भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा की और रात को चंद्रदर्शन और उन्हें अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोला। इसके बाद अपने बड़े-बुजुर्गों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया। इस अवसर पर करवा चौथ की कथा का श्रवण भी किया।


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