सिलक्यारा। हमारे देश में तीर्थाटन सदैव से महत्वपूर्ण और जोखिम भरा रहा है लेकिन पिछले बीस सालों से इसे जितना सुगम और सुभीताजनक बनाने की चेष्टा हुई है उससे यह यात्रा और जोखिम पूर्ण हो गई है।लघु हिमालय क्षेत्र में सबसे अधिक पर्यटक पहुंचने लगे हैं ये पर्यटक अब पैदल नहीं बल्कि सड़क मार्ग से वाहनों के ज़रिए लाखों की तादाद में आते हैं जिनके लिए पहाड़ों में सड़क बनाने , चौड़ी करने तोड़फोड़ विस्फोटक पदार्थों से की जाती है जिससे एक व्यापक क्षेत्र का चट्टानी आधारभूत ढांचा और जलप्रवाह प्रणाली अनियंत्रित हो जाती है।आज जोशीमठ जिस तरह रह रह कर मौत की ओर बढ़ रहा है उसकी वजह यही है।
जैसा कि विदित है कि हिमालय पर्वत टेनिस सागर से भूगर्भिक क्रियाओं से धीरे धीरे अभी भी निकल रहा है उसमें चट्टानों में एक जैसी मज़बूती नहीं हो सकती है कहीं कड़ी चट्टान ऊपर है तो नीचे मुरम रेत मिट्टी होती है कहीं इसके विपरीत दृश्य होता है ऊपर बलुआ पत्थर ,मुरम , रेत और नीचे पानी।ऐसे स्थलों पर अक्सर मलवा रास्तों या घरों पर गिरने के समाचार मिलते हैं यानि हियालयीन क्षेत्र में कोई भरोसा नहीं कब कहां स्खलन हो या भूकंप आ जाए।ऐसी भौगोलिक संरचना के बीच जहां सड़क ही खतरनाक है वहां पहाड़ों के नीचे से सुरंग बनाना ख़तरे से खाली नहीं।ऐसी स्थिति में ही सिलक्यारा टनल बनते बनते जो हादसा हुआ है वह हम सबकी आंखें खोलने वाला है।
बताया जा रहा है सिलक्यारा में जहां टनल बन रही है, वहां 60 साल पहले भी टनल बनाने के लिए सर्वे किया गया था, लेकिन पानी का स्रोत मिलने के कारण इस प्रोजेक्ट को रोक दिया गया था। इसके बाद यमुनोत्री के लिए रास्ता बनाया गया था।पर्यावरणविदों ने यहां टनल बनाने का बहुत विरोध किया था, क्योंकि जहां टनल बन रहा है उसके ऊपर का पहाड़ गंगा यमुना का कैचमेंट एरिया है और इस इलाके से होकर फॉल्ट लाइन भी गुजरती है। यह फॉल्ट लाइन एक्टिव है, यानी दो प्लेटें आज भी एक दूसरे के खिलाफ जोर लगा रही हैं। इससे जमीन के नीचे एनर्जी जमा हो रही है। ऐसे इलाके भूकंप के लिए अति संवेदनशील होते हैं। इस टोंस फॉल्ट को दो और छोटे फॉल्ट काट रहे हैं। यानी यहां जमीन के नीचे काफी हलचल है।
ये टनल चार धाम यात्रा का एक मार्ग है। इससे लोग सिर्फ एक घंटा जल्दी पहुंच सकेंगे। इसके लिए इतना बड़ा जोखिम उठाना कहां की अक्लमंदी है? मकसद सिर्फ हिंदुओं को ख़ुश करना और अंधाधुंध बिजनेस है और इसके अलावा कुछ भी नहीं। ऐसे कई टनल बनाए जा चुके हैं और कई अभी बनाए जाने हैं।
कहां जाता है पर्यावरणविदों ने बहुत मना किया कि चारधाम प्रोजेक्ट के नाम पर पहाड़ों की यूनिफॉर्म कटिंग नहीं होनी चाहिए, लेकिन विरोध के बावजूद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में झूठ बोला। कोई कानूनी अड़चन न आए इसके लिए इस पूरी परियोजना को कई छोटी-छोटी योजनाओं के रूप में दिखाया गया, ताकि सब कुछ पर्यावरण के अनुकूल प्रतीत हो। सुप्रीम कोर्ट ने भी आंखें मूंद रखी हैं।
सरकार बेफ्रिक होकर व्यापार के लिहाज से यह प्रकृति विरोधी काम करवा रही है आज जन्न्ते कश्मीर में हम देख रहे हैं इस सरकार ने उसे व्यापार का अड्डा का बना दिया।जिनके लहू में व्यापार और राजनीति है उन्हें प्रकृति और मानवीय संवेदनाओं से क्या लेना देना।जैसे जैसे 2024का चुनाव नज़दीक आ रहा है मोदी सरकार ने चुनाव से पहले उन्हें पूरा करने का अल्टीमेटम भी दे रखा है ऐसी स्थितियों में हम उम्दा निर्माण की कल्पना कैसे कर सकते हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस टनल को भी एक निश्चित समय दिया गया हो और जल्दबाजी में यह बड़ी मानवीय दुर्घटना हुई हो।