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मन की बात की 107वीं कड़ी में प्रधानमंत्री के सम्बोधन का मूल पाठ



नई दिल्ली। मेरे प्यारे देशवासियो,नमस्कार, ‘मन की बात’ में आपका स्वागत है।लेकिन आज 26 नवंबर हम कभी भी भूल नहीं सकते हैं।आज के ही दिन देश पर सबसे जघन्य आतंकी हमला हुआ था। आतंकियों ने, मुंबई को, पूरे देश को, थर्रा कर रख दिया था। लेकिन ये भारत का सामर्थ्य है कि हम उस हमले से उबरे और अब पूरे हौसले के साथ आतंक को कुचल भी रहे हैं। मुंबई हमले में अपना जीवन गंवाने वाले सभी लोगों को मैं श्रद्धांजलि देता हूँ। इस हमले में हमारे जो जांबांज वीरगति को प्राप्त हुए, देश आज उन्हें याद कर रहा है

मेरे परिवारजनो, 26 नवंबर का आज का ये दिन एक और वजह से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।1949 में आज ही के दिन संविधान सभा ने भारत के संविधान को अंगीकार किया था। मुझे याद है, जब साल 2015 में हम बाबा साहेब आंबेडकर की 125वीं जन्मजयन्ती मना रहे थे, उसी समय ये विचार आया था कि 26 नवंबर को ‘संविधान दिवस’ के तौर पर मनाया जाए।और तब से हर साल आज के इस दिन को हम संविधान दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं। मैं सभी देशवासियों को संविधान दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ। और हम सब मिलकरके, नागरिकों के कर्तव्य को प्राथमिकता देते हुए, विकसित भारत के संकल्प को जरुर पूरा करेंगे।

साथियो, हम सभी जानते हैं कि संविधान के निर्माण में 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन का समय लगा था। श्री सच्चिदानंद सिन्हा जी संविधान सभा के सबसे बुजुर्ग सदस्य थे।60 से ज्यादा देशों के संविधान का अध्ययन और लंबी चर्चा के बाद हमारे संविधान का Draftतैयार हुआ था।Draftतैयार होने के बाद उसे अंतिम रूप देने से पहले उसमें 2 हजार से अधिक संशोधन फिर किए गए थे।1950 में संविधान लागू होने के बाद भी अब तक कुल 106 बार संविधान संशोधन किया जा चुका है। समय, परिस्थिति, देश की आवश्यकता को देखते हुए अलग-अलग सरकारों ने अलग-अलग समय पर संशोधन किए। लेकिन ये भी दुर्भाग्य रहा कि संविधान का पहला संशोधन,Freedom of Speechऔर Freedom of Expression के अधिकारों में कटौती करने के लिए हुआ था। वहीँ संविधान के 44 वें संशोधन के माध्यम से, Emergencyके दौरान की गई गलतियों को सुधारा गया था।

साथियो, यह भी बहुत प्रेरक है कि संविधान सभा के कुछ सदस्य मनोनीत किए गए थे, जिनमें से 15 महिलाएं थी। ऐसी ही एक सदस्य हंसा मेहता जी ने महिलाओं के अधिकार और न्याय की आवाज बुलंद की थी। उस दौर में भारत उन कुछ देशों में था जहां महिलाओं को संविधान सेVotingका अधिकार दिया। राष्ट्र निर्माण में जब सबका साथ होता है, तभी सबका विकास भी हो पाता है। मुझे संतोष है कि संविधान निर्माताओं के उसी दूरदृष्टि का पालन करते हुए, अब भारत की संसद ने ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ को पास किया है।‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ हमारे लोकतंत्र की संकल्प शक्ति का उदाहरण है।ये विकसित भारत के हमारे संकल्प को गति देने के लिए भी उतना ही सहायक होगा।

मेरे परिवारजनों,राष्ट्र निर्माण की कमान जब जनता-जनार्दन संभाल लेती है, तो दुनिया की कोई भी ताकत उस देश को आगे बढ़ने से नहीं रोक पाती। आज भारत में भी स्पष्ट दिख रहाहै कि कई परिवर्तनों का नेतृत्व देश की 140 करोड़ जनता ही कर रही है। इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण हमने त्योहारों के इस समय में देखा है। पिछले महीने ‘मन की बात’ में मैंनेVocal For Localयानी स्थानीय उत्पादों को खरीदने पर जोर दिया था। बीते कुछ दिनों के भीतर ही दिवाली, भैया दूज और छठ पर देश में चार लाख करोड़ से ज्यादा का कारोबार हुआ है। और इस दौरान भारत में बने उत्पादों को खरीदने का जबरदस्त उत्साह लोगों में देखा गया। अब तो घर के बच्चे भी दुकान पर कुछ खरीदते समय यह देखने लगे हैं कि उसमेंMade In Indiaलिखा है या नहींलिखा है।इतना ही नहीं Online सामान खरीदते समय अब लोग Country of Originइसे भी देखना नहीं भूलते हैं।

साथियो, जैसे ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की सफलता ही उसकी प्रेरणा बन रही है वैसे ही Vocal For Local की सफलता, विकसित भारत - समृद्ध भारत के द्वार खोल रही है।Vocal For Local का ये अभियान पूरे देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देता है।Vocal For Local अभियान रोजगार की गारंटी है। यह विकास की गारंटी है,ये देश के संतुलित विकास की गारंटी है। इससे शहरी और ग्रामीण, दोनों को समान अवसर मिलते हैं। इससे स्थानीय उत्पादों में Value Editionका भी मार्ग बनता है, और अगर कभी, वैश्विक अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव आता है, तो Vocal For Local का मंत्र, हमारी अर्थव्यवस्था को संरक्षित भी करता है।

साथियो, भारतीय उत्पादों के प्रति यह भावना केवल त्योहारों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए।अभी शादियों का मौसम भी शुरू हो चुका है। कुछ व्यापार संगठनों का अनुमान है कि शादियों के इस seasonमें करीब 5 लाख करोड़ रुपए का कारोबार हो सकता है।शादियों से जुड़ी खरीदारी में भी आप सभी भारत में बने उत्पादों को ही महत्व दें। और हाँ, जब शादी की बात निकली है, तो एक बात मुझे लम्बे अरसे से कभी-कभी बहुत पीड़ा देती है और मेरे मन की  पीड़ा, मैं, मेरे परिवारजनों को नहीं कहूँगा तो किसको कहूँगा ?आप सोचिये, इन दिनों ये जो कुछ परिवारों में विदेशों में जाकर के शादी करने का जो एक नया ही वातावरण बनता जा रहा है। क्या, ये जरूरी है क्या ? भारत की मिट्टी में, भारत के लोगों के बीच, अगर हम शादी ब्याह मनाएं, तो देश का पैसा, देश में रहेगा। देश के लोगों को आपकी शादी में कुछ-न-कुछ सेवा करने का अवसर मिलेगा, छोटे -छोटे गरीब लोग भी अपने बच्चों को आपकी शादी की बातें बताएँगे। क्या आप vocal for localके इस mission को विस्तार दे सकते हैं ? क्यों न हम शादी ब्याह ऐसे समारोह अपने ही देश में करें ? हो सकता है, आपको चाहिए वैसी व्यवस्था आज नहीं होगी लेकिन अगर हम इस प्रकार के आयोजन करेंगे तो व्यवस्थाएं भी विकसित होंगी। ये बहुत बड़े परिवारों से जुड़ा हुआ विषय है। मैं आशा करता हूँ मेरी ये पीड़ा उन बड़े-बड़े परिवारों तक जरूर पहुँचेगी।

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