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इस गाँव में नही होता दशहरे के दिन रावण दहन, होती है महाआरती , रावण दहन पर पूरा गांव मनाता मातम

विदिशा। दशहरे के दिन जहां पूरे देश में रावण दहन किया जाता है पूरा देश रावण दहन करके जश्न में डूबा होता है वहीं मध्य प्रदेश के विदिशा जिले का एक रावण गांव ऐसा भी है जो जश्न नही बल्कि रावण दहन के दिन मातम मना रहा होता है इस गांव में दशहरे के दिन रावण की महा आरती होती है।

जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूरी पर ढाई हजार आबादी का ग्राम रावण गांव में रावण बाबा का एक प्राचीन मंदिर बना हुआ है इस गांव का नाम भी रावण गांव के नाम से जाना जाता है इस गांव में ब्राह्मण समाज के लोग रहते हैं सभी लोग रावण को अपना देवता मानकर उसकी पूजा करते हैं।

इतना ही नहीं इस गांव में कोई भी शुरुआती काम से पहले भगवान रावण को याद किया जाता है इस गांव में भगवान राम के नही बल्कि जय लंकेश के नारे लगाए जाते हैं गांव वालो की माने तो जब तक भगवान रावण को भोग नहीं लगाया जाता तब तक गांव को कोई व्यक्ति कोई भी कराज शुरू नही कर सकता इतना ही नहीं शादी हो या मरण सभी में रावण की पूजा आराधना की जाती है सभी कार्य के पहले रावण बाबा की अनुमति भी ली जाती है गांव वालो की मान्यता है अगर वो ऐसा नहीं करते तो वो काम ही शुरू नही होता हर गांव के व्यक्ति के शरीर पर जय लंकेश गुदा होता है घर हो या दुकान या फिर कोई वाहन सभी पर इस गांव में जय लंकेश लिखा होता है।

आइए जानते हैं क्या हैं रावण गांव का इतिहास

बताया जाता है एक मायावी राक्षस, का प्राचीन काल में इस ग्राम में आतंक फेला था इस ग्राम के पास एक बुदो की पहाड़ी है जिस पर यह मायावी राक्षक रहता था उस पहाड़ी से इस मायावी ने लंका पति रावण को युद्ध के लिए ललकारा था रावण मुझसे आकर युद्ध लड़े यह खबर लंका पति रावण को लगी तो लंका पति रावण ने मायावी से कहा मुझसे युद्ध बाद में लड़ने पहले मेरी प्रतिमा से ही युद्ध जीत ले मायावी ने रावण की एक प्रतिमा बनवाई कई सालो तक मायावी राक्षक ने उससे युद्ध लड़ा और हजारों वार हार गया जब युद्ध नही जीत पाया तो उसने रावण का मंदिर बनवाया तब से आज तक यह चमत्कारी मंदिर इस गांव में स्थापित है।

रावण मंदिर की मिट्टी से सभी चर्म रोग होते हैं दूर

गांव वालो का दावा है रावण के मंदिर के सामने एक तालाब है जिसके बीचोबीच एक पत्थर की बड़ी सी तलवार गढ़ी हुई है और इस ही तालाब की मिट्टी से लोगो के चर्म रोग भी ठीक हो जाते हैं इस मिट्टी को लोग विदेश तक लेकर गए हैं । रावण बाबा का मंदिर जिसमे लोग अपने आराध्य देवता की पूजन कर रहे है बाकायदा रावण बाबा की आरती गायी जाती है रावण को जलाने की बात सुन भी नही सकते । दशहरे के दिन गांव में रावण दहन का शोक मनाया जाता है और रावण को मनाने विशेष पूजा की जाती है। रावण बाबा ग्राम देवता है । यहां प्रथम पूजा रावण बाबा की होती है । शादी जैसे शुभ कार्य पर रावण बाबा की जब तक पूजन नही की जाती तब तक कड़ाई गर्म नही होती । पंडित जी बताते है कि मूर्ति को एक बार ग्रामीणों ने खड़ी करना चाहा तो गांव में आग लग गयी । इस गांव के मंदिर में रावण बाबा की सभी समाज के लोग पूजा करते है । भगवान श्रीराम और रावण में कोई अंतर नही समझते, बड़े बूढ़े सभी रावण बाबा की जय बोलते है।

पंडित नरेश महाराज, रावण मंदिर पुजारी ने बताया कि हमारे पूरे गांव के इष्ट, कुलदेवता है रावण बाबा इन्हें हम सब गांव वासी मानते हैं निरंतर और कहीं भूल चूक हो जाती है तो हमें उसका परिणाम भोगना पड़ता है इसलिए हम भूल चूक करते ही नहीं हैं । जय लंकेश हमारी गाड़ियों पर लिखा मिलेगा, जय लंकेश नहीं लिखेंगे तो हमारा वाहन नहीं चलेगा ट्रैक्टर-ट्रॉली, जीप, मोटरसाइकिल सब वाहनों पर जय लंकेश लिखा मिलेगा जब ही हमारा वाहन चलता है । प्रतिमा को खड़ा करने को लेकर कहा ? पहले किसी ने प्रतिमा की चाले की थी तो गांव में आग लग गई थी ।

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