20 सालों से सत्ता से बाहर है फिर भी एकजुट नहीं कांग्रेसी
विजयेन्द्र फांफरिया, मंदसौर। कांग्रेस की दूसरी सूची आते ही लगभग सभी जगह विरोध के स्वर उठने लगे टिकट की दौड केे दावेदार आक्रोश व्यक्त करने लगे है। लेकिन कोई अपनी पार्टी के बारे में नहीं सोच रहा। विरोध करने वाले पूर्व में चुनाव लड चुके है कई तो ऐसे है जो पार्षद जिला जनपद के चुनाव तक लडके हार चुके हे लेकिन फिर भी अपनी पार्टी को नुकसान पहुंचाना चाहते है। अनुभवी लोग सही कहते है कि कांग्रेस दूसरो से नहीं अपनों से हारती है।
सुवासरा में राकेश पाटीदार हो या मल्हारगढ में परशुराम सिसौदिया दोनों को अपनी मेहनत का फल पार्टी ने दिया है। दोनों ने पांच वर्षो से लगातार फिल्ड में सक्रिय रहकर कांग्रेस का झंडा बुलंद किया है और कांग्रेस को क्षेत्र मंे जिंदा रखा है। राकेश ने हमेशा केबीनेट मंत्री हरदीपसिंह डंग से लोहा लिया तो वित्त मंत्री जगदीश देवडा के क्षेत्र में परशुराम ने भी कम लडाई नही लडी। अन्य नेताओं ने भी अपना पूरा जोर लगाया लेकिन उन्हें अब पार्टी के प्रत्याशी का साथ देना चाहिए जिससे उनकी निष्ठा सबके सामने आ सकें।
लेकिन हर किसी को बस टिकट चाहिए ऐसे में जो विधानसभा क्षेत्र 230 से बढाकर 460 भी कर दिये जाये तो भी कम पड जायेगे।
20 साल हो गये सत्ता से बाहर लेकिन फिर भी एकजुट नहीं
कांग्रेस 20 सालों से सत्ता से बाहर है लेकिन फिर भी एकजुट नहीं हो रहे। जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिलता दिख रहा है। मंदसौर जिले की चारों विधानसभा में टिकट वितरण के बाद विरोध स्वर के उठे है भाजपा में भी उठे लेकिन संगठन ने नियंत्रण करके दबा दिये लेकिन कांग्रेस में कई दावेदार बागी बनने के मूड में है और अपनी ही पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के लिए गड्डा करना चाहते है। पार्टी मां समान होती है यह सिर्फ भाषणों तक ही सीमित रह गया है।