मुंबई। कै. पू. वामन भालचंद्र बेहेरे की स्मृति में आयोजित तीन द्विवसीय "मल्हार उत्सव" का दूसरा दिन ग्वालियर घराने की सुप्रसिद्ध गायिका सुलेखा धारकर भट के नाम रहा। सुलेखा ने मौसम और कार्यक्रम के शीर्षक के अनुकूल बारिश में गाये जाने वाले राग "मियां मल्हार" का चयन किया। शुरुआत एक ताल में निबद्ध सुप्रसिद्ध विलंबित रचना "करीम नाम तेरो* से करते हुए तीनताल में रचित मध्यलय बंदिश " गहर आयो रे बादरवा" प्रस्तुत की और फिर द्रुत तराना सुनाया। इधर मंदिर में मियां मल्हार के स्वर दत्त मंदिर में उपस्थित जन समूह को आनंदित कर रहे थे वहीं आकाश में बादल अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए रिमझिम बारिश के साथ मौसम को सुहावना बना रहे थे। कहा जाता है कि तानसेन जब मल्हार के स्वर छेड़ते थे तो बारिश हो जाया करती थी। कार्यक्रम को आगे बढ़ते हुए सुलेखा ने राग "नन्द" में एक मध्यलय रचना "ढूंढूं बारे सैंया" प्रस्तुत की जो रूपक ताल में निबद्ध थी। नन्द में ही द्रुत रचना "पायल मोरी बाजे" ने श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया।
फिर सिलसिला आरम्भ हुआ मराठी अभंगों और भजनों का। जिसमें सुप्रसिद्ध अभंग " घन बरसत बरसत आले" , " रूप पाहता लोचनी", "अजहुँ ना आये मोरे सवारियां" शामिल थे। सुलेखा ने अपने गायन का समापन भैरवी में निबद्ध भजन "सोपविले दैव सारे साईं नाथा हाती" ने किया। उल्लेखनीय है कि सुलेखा भट ग्वालियर घराने की विख्यात गायिका विदुषी वीणा सहस्त्रबुद्धे की शिष्या है और आपको सुप्रसिद्ध संगीतकार ए आर रहमान की म्यूजिक कंजरवेटरी में भी व्याख्यान सह प्रदर्शन हेतु आमंत्रित किया जा चुका है। अनेक विख्यात मंचों पर आपने प्रदेश और ग्वालियर घराने का नाम रोशन किया है। आपके साथ तबले पर अशेष उपाध्याय और हारमोनियम पर इंदौर से पधारे रवि किल्लेदार ने संगत की। तानपूरे पर ममता पतकी और कौशिकी सक्सेना थे। कार्यक्रम के आयोजक चंद्रकांत बेहेरे ने बताया कि मल्हार उत्सव का समापन रविवार को प्रवीण शेवलीकर के वायलिन वादन से होगा।