बेगमगंज। अन्तस् में समाहित अनन्त ऊर्जा, अतुल्य सामर्थ्य, परमानन्द और सनातन सत्य को अनुभूत करने में सहायक है - योग ! जीवन की परिपूर्णता सिद्धि समाधान व स्वयं में अंतर्निहित दिव्य आध्यात्मिक शक्तियों के जागरण की वैज्ञानिक विधा है - योग !
विश्व योग दिवस पर पं.कमलेश शास्त्री ने कहा श्रीमद् भगवत गीता में 'योग: कर्मसु कौशलम् ..' अर्थात् कार्य की कुशलता ही योग है। जीवन में समता और संतुलन के लिए योग को जीवनशैली का अनिवार्य अंग बनाया जाए।
वर्तमान में योग विज्ञान का जो स्वरूप लोकप्रिय है, वह व्यायाम-आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार के द्वारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की उपलब्धियों पर केन्द्रित है। किन्तु आसन-प्राणायाम और प्रत्याहार आदि में योग विज्ञान की विराटता को समेटा नही जा सकता। योग शास्त्र का वृहत्तर स्वरूप तो जीवन की पूर्णता-सिद्धि और समाधान में निहित है।
यौगिक क्रियाओं के अवलम्ब द्वारा स्वस्थ, स्मृद्ध और शान्तिपूर्ण जीवन, आंतरिक व बाह्य समृद्धि के साथ जीवन के परम लक्ष्य की सिद्धि भी सहज ही सुलभ है। महर्षि पतंजलि द्वारा विरचित 'पातंजल योगसूत्र' को योग का सबसे प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है, किन्तु महर्षि पतंजलि के पहले भी योग का अस्तित्व और विस्तार था। संसार के सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में भी योगाभ्यास और विविध यौगिक क्रियाओं का उल्लेख मिलता है। इसलिए योग की विधा उतनी ही प्राचीन है जितनी यह सम्पूर्ण सृष्टि !! विधाता ने सृष्टि की रचना भी यौगिक क्रियाओं के अवलम्बन और समायोजन से ही की थी।
नियमित योगाभ्यास और यौगिक क्रियाओं के अवलम्बन द्वारा शरीर एवं मन की व्याधियों के उपचार के साथ ही आत्मबल का विकास भी होता है।
और आत्मबल सम्पन्न व्यक्ति ही सर्वत्र जय प्राप्त करता है। महर्षि पतंजलि के अनुसार अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश ये पाँच प्रकार के क्लेश होते हैं, इन से निवृत्ति और मोक्ष प्राप्त करने का एकमात्र उपाय उन्होंने योग को ही माना है। महर्षि पतंजलि के अनुसार क्रमशः योग के अंगों यम, नियम आसन, प्राणायाम , प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि का साधन करते हुए मनुष्य सिद्ध हो जाता है और अन्त में मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
अत: योग का क्षेत्र केवल आसान और शारीरिक अभ्यासों तक सीमित नहीं है। वह अत्यन्त व्यापक है तथापि, वर्तमान समय में प्रचलित आसान और व्यायाम पद्धतियों द्वारा स्वास्थ्य सुधार, असाध्य रोगों के उपचार एवं प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ाई जा सकती है। किसी समर्थ व्यक्ति से योगाभ्यास सीखकर उनका उपयोग समाज हित में किया जाए तो यौगिक विधियाँ अत्यन्त प्रभावी और असरकारक सिद्ध हो सकती हैं। योग विश्व को भारत का वरदान है, जिसके द्वारा न केवल आयुष्य और आरोग्यता प्राप्त की जा सकती है, अपितु योग से मोक्ष की उपलब्धि भी सहज सम्भव है।