बेगमगंज। मजहबे इस्लाम के दो खुशी के त्यौहार हैं एक ईद उल फ़ित्र और दूसरा ईद उल अज़हा बस यही मुसलमानों के असल मज़हबी व मिल्ली त्यौहार हैं इनके अलावा मुसलमान जो त्यौहार मनाते हैं उनकी कोई मज़हबी हैसियत और बुनियाद नहीं है।
यह महीना ईद उल अजहा का है। पैग़ंबरे इस्लाम ने फरमाया की
मस्जिद में तकरीर सुनते लोग |
ज़िलहिज्जा के दस दिनों में की गई इबादत दूसरे दिनों की इबादत के मुक़ाबले में ज़्यादा पसंदीदा है। इन दस दिनों में रखा गया एक दिन का रोज़ा एक साल रखे गए रोज़े के बराबर है, और इनमें एक रात की इबादत लैलतुलक़द्र में इबादत के बराबर है।
ज़िलहिज्जा की नो तारीख़ यानि ईद उल अज़हा से एक दिन पहले अरफ़ा कहलाता है। फ़रमाने नबी है कि अरफ़ा के दिन जो शख़्स रोज़ा रखे तो मुझे खुदा की ज़ात से उम्मीद है कि ये रोज़ा उसके एक साल पहले और एक साल बाद के तमाम गुनाहों का कफ़्फ़ारा हो जाएगा।
उक्त बात जुमे की नमाज से पहले मक्का मस्जिद बालाई टेकरी में मौलाना नजर मोहम्मद गोंडवी ने उपस्थित नमाजियों के समक्ष कहीं और बताया कि परवरदिगार अपने बन्दों को जितना अरफ़ा के दिन जहन्नुम की आग से आज़ाद करते हैं उतना किसी और दिन में आज़ाद नहीं करते।
मदीना मस्जिद पठान वाली में मुफ्ती रुस्तम खान नदवी ने अपनी तकरीर में बताया कि क़ुर्बानी हर उस मुसलमान मर्द औरत पर वाजिब है जो आक़िल, बालिग़ और मुक़ीम हो और उसकी मिल्क में साढ़े बावन तौला चाँदी हो या इतनी क़ीमत का माल हो चाहे तिजारत का माल हो या नक़दी हो या सोने चाँदी के ज़ेवरात हों या घर का सामान ज़रूरते असलियाह से ज्यादा हो और इस पर साल का गुज़रना भी शर्त नहीं है यानि अगर कोई ईद के तीसरे दिन भी इतने निसाब का मालिक हो गया तो उस पर क़ुर्बानी वाजिब हो जाएगी।
मरकाज मस्जिद में मौलाना जैद जुल्फी ने कहां की ऐ ख़ुदा के बन्दों हम एक तरफ़ ईद उल अजहा फ़ज़ीलतों को देखें और दूसरी तरफ़ अपनी ग़फ़लत पर नज़र डालें साल भर में न जाने कितने दिन और कितने लम्हे ऐसे आते हैं जिनमे खुदा ख़ासतौर पर अपने बन्दों की तरफ़ मुतवज्जह होता है, और बड़े रहम व करम का मुआमला करता है, मगर हम ग़फ़लत में पड़े रहते हैं। बड़े अफ़सोस की बात है कि दुनिया के हर काम के लिये हमारे पास पैसा भी है और वक़्त भी लेकिन दीन के लिए खुदा से तअल्लुक़ मज़बूत करने के लिए हमारे पास न पैसा है न वक़्त है । क्या यह सूरत क़ाबिले अफ़सोस नहीं है। हमें अपनी ज़िन्दगी के बारे में फ़िक्र करने की सख़्त ज़रूरत है ।
मस्जिद अमीर दाद खां में जमीयत उलेमा के सदर मौलाना सैयद जैद ने ईद उल अजहा के दिन पर रोशनी डालते हुए बताया कि सुबह को जल्दी उठकर मिसवाक करना , ग़ुस्ल करना अपने पास जो अच्छा और उम्दा लिबास हो पहनना, शरीयत के मुताबिक़ अपने को आरास्ता करना , संवारना, ख़ुश्बू लगाना, ईदगाह जल्दी जाना, ईद की नमाज़ ईदगाह में जाकर पढ़ना, एक रास्ते से जाना और दूसरे रास्ते से वापस आना, ईदगाह पैदल जाना, ईद उल अज़्हा में बुलन्द आवाज़ से तकबीर पढ़ते हुए जाना, जो शख़्स क़ुर्बानी का इरादा रखता हो उसको चाहिए कि वह नमाज से पहले कुछ ना खाए यह मुस्तहब है।
इसके अलावा अन्य मस्जिदों में भी ईद उल अजहा को लेकर तकरीरें हुई और बताया गया कि अगर मौसम साफ रहा तो ईदगाह में सुबह 7:15 बजे, मक्का मस्जिद बालाई टेकरी पर सुबह 7:30 बजे और जामा मस्जिद में सुबह 7:45 बजे ईद की नमाज 29 जून को अदा की जाएगी। बारिश होने की सूरत में जामा मस्जिद में सुबह 7:15 बजे मक्का मस्जिद बालाई टेकरी पर सुबह 7:30 बजे मरकज मस्जिद में सुबह 7:45 बजे और मदीना मस्जिद पठान वाली में सुबह 8 बजे ईद की नमाज अदा की जाएगी।