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दो दिवसीय सातवें विदुषी वीणा सहस्त्रबुद्धे स्मृति संगीत समारोह का समापन हुआ

भोपाल। आज दो दिवसीय सातवें वीणा सहस्त्रबुद्धे स्मृति संगीत समारोह का समापन स्वरलहरियों और श्रोताओं की तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सम्पन्न हुआ। आज दो कलाकारों ने अपनी स्वरांजलि दी। मुम्बई से पधारे विख्यात गायक पंडित फिरोज़ दस्तूर के शिष्य गिरीश साँझगिरी सहित  विदुषी वीणा सहस्त्रबुद्धे जी की सुयोग्य शिष्या भोपाल की ही सुलेखा भट ने अपने  गुरु को स्वरांजलि दी। कार्यक्रम की शुरुआत गिरीश साँझगिरी ने राग पूरिया से की। जिसमे उन्होंने दो बंदिशें प्रस्तुत की । बड़े ख्याल के बोल थे "हे पिया गुणवंत सबही " वहीं छोटी बंदिश के बोल थे " दो दिवसीय सातवें विदुषी वीणा सहस्त्रबुद्धे स्मृति संगीत समारोह का समापन हुआ

आज दो दिवसीय सातवें वीणा सहस्त्रबुद्धे स्मृति संगीत समारोह का समापन स्वरलहरियों और श्रोताओं की तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सम्पन्न हुआ। आज दो कलाकारों ने अपनी स्वरांजलि दी। मुम्बई से पधारे विख्यात गायक पंडित फिरोज़ दस्तूर के शिष्य गिरीश साँझगिरी सहित  विदुषी वीणा सहस्त्रबुद्धे जी की सुयोग्य शिष्या भोपाल की ही सुलेखा भट ने अपने  गुरु को स्वरांजलि दी। कार्यक्रम की शुरुआत गिरीश साँझगिरी ने राग पूरिया से की। जिसमे उन्होंने दो बंदिशें प्रस्तुत की । बड़े ख्याल के बोल थे "हे पिया गुणवंत सबही " वहीं छोटी द्रुत  बंदिश के बोल थे " मैं कर आई पिया संग" .इसके पश्चात आपने राग जोग  दो बंदिशें गाई जिनके बोल थे "ओ दुखियारी मे कासे कहू" और " चैल चैलं चैलवा मोरे मनवा"  । अपने गायन का समापन आपने ठुमरी से किया जिसके बोल थे " सोच समझ नादान"। ततपश्चात मंच पर आई भोपाल की ही सुविख्यात गायिका सुलेखा भट जिन्होंने अपने गायन का आरंभ सुमधुर राग मधुवंती से किया ।राग मधुकौंस देर रात गया जाने वाला और श्रृंगार रस प्रधान बहुत ही सुमधुर राग है .... 

इसकी बंदिशों में विरह वर्णन ,मनुहार भरे शब्दों का प्रयोग होता है, वैसे तो देर रात कभीभी गाया बजाया जाता है  परंतु शरद ऋतु में विशेष रूप से गाते है...कई बंदिशों में शरद ऋतु का वर्णन भी होता है। सुलेखा ने राग मधुकोन्स  में दो बंदिशें प्रस्तुत की। 

विलंबित रचना एकताल में निबद्ध थी जिसके बोल थे "आवो सजना"

मध्यलय रचना तीन ताल में रचित थी जिसके बोल थे "माने ना माने ना कान्हा मोरी बतिया" और इसके बाद सुलेखा ने द्रुत तीन ताल में तराना गाया। दमदार आवाज़ और जबरदस्त तैयारी ने श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद श्रोताओं की विशेष फरमाइश पर आने आषाढ़ी एकादशी के अवसर पर मराठी अभंग " विठ्ठल विठ्ठल" गाया। अपने गायन का समापन आपने कानों में रस घोलने वाले सदाबहार राग भैरवी की  मध्य लय बंदिश जो कि साढ़े नोँ मात्रा की  सुनंद ताल में निबद्ध थी और जिसके बोल थे  "काहे रोकत श्याम" । दोनो ही कलाकारों के साथ संगत कलाकार तबले पर रामेंद्र सिंह व डा. अशेष उपाध्याय और हारमोनियम पर पुणे के उपेंद्र सहस्त्रबुद्धे। तानपुरे पर थे कोशिका सक्सेना व शैलेश। संचालन किया अनुराधा ने। कला समूह के राजेश भट ने बताया कि विदुषी वीणा सहस्त्रबुद्धे की स्मृति में होने वाले कार्यक्रम को आगामी वर्षों में व्यापकता प्रदान करते हुए इसे अन्य छोटे शहरों में भी आयोजित किया जाएगा जिससे संगीत प्रेमी विदुषी वीणा सहस्त्रबुद्धे के शास्त्रीय संगीत के लिए  किए गए अवदान को जान सके और शास्त्रीय संगीत की लोकप्रियता बढ़े।

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