शब्बीर अहमद, बेगमगंज। किसान आंदोलन के राष्ट्रीय नेता योगेंद्र यादव एक दिवसीय प्रवास पर रायसेन जिले के बेगमगंज पहुंचे। बहुजन संवाद केंद्र में आयोजित प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए योगेन्द्र यादव ने कहा कि हमें सामाजिक न्याय के सवाल को आगे करके चलना होगा और देश को बचाने के लिए सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाना होगा लेकिन इसके प्रति एक बहु अयामी सोच अपनाने की जरूरत है। जातीय गैर-बराबरी की सच्चाई की शिनाख्त और उसका समाधान ढूंढ़ने का उपक्रम पहले की तुलना में कहीं ज्यादा गंभीरता से करना होगा।
किसान आंदोलन के राष्ट्रीय नेता योगेंद्र यादव प्रेसवार्ता करते हुए। |
सामाजिक गैर-बराबरी के कुछ पक्ष ऐसे हैं कि उन्हें किसी विचार-विमर्श के किसी एक कोटि में नहीं अंटाया जा सकता, जैसे- लैंगिक आधार या यौन-प्रवृति के आधार पर होने वाले भेदभाव या फिर वर्गगत, क्षेत्रगत, धर्म-समुदायगत और स्थान विशेष शहरी- ग्रामीण से जुड़ी गैर-बराबरी. सामाजिक न्याय के जिन औजारों से अभी तक काम चलाया गया उसमें कुछ और भी जोड़ने की आवश्यकता है।
यादव ने कहा कि वंचित समुदाय और महिलाओं के प्रतिनिधित्व तथा नेतृत्व के मसले को खास अहमियत देनी होगी। हमारे लिए लोकतांत्रिक गणतंत्रवाद को साध्य और साधन दोनों ही रूपों में अपनाना जरूरी है। लोकतंत्र सिर्फ संविधान रचने, संस्थाओं को गढ़ने और चुनाव करवाने भर का नाम नहीं है। गणतंत्र के लिए एक ऐसा राजनीतिक समुदाय जरूरी है जिसमें सभी नागरिक बराबरी के भागीदार हों और उन्हें सब बातों की सम्यक जानकारी हो।
यादव ने एक सवाल के जवाब में कहाकि साल 2024 की लड़ाई के बुनियादी व्याकरण को बताना मुश्किल नहीं। बीजेपी की ताकत और कमजोरी, पार्टी के आगे मौजूद अवसर और खतरे (इसे अंग्रेजी में एसडब्ल्यूओटी यानी स्ट्रेन्ग्थ, वीकनेस, ऑपर्च्युनिटी एंड थ्रेट एनालिसिस कहा जाता है) से जुड़े पूरे विश्लेषण के केंद्र में नरेन्द्र मोदी हैं।
बीजेपी की ताकत क्या है ? मोदी का करिश्मा. इसी तरह, बीजेपी की कमजोरी क्या है ? मोदी सरकार का काम-काज। और, बीजेपी को खतरा किन बातों का है?
खतरा ये है कि मोदी की छवि अचानक ही दरक ना जाए।
यादव पत्रकारों के सवाल पर कहते हैं, विपक्ष की ताकत का स्रोत भारत के भूगोल और समाजशास्त्र में छिपा है जबकि भारत का इतिहास और मनोविज्ञान उसकी कमजोरी है। देश की अर्थव्यवस्था विपक्ष के आगे अवसरों के द्वार खोल रही है लेकिन विपक्ष को बड़ा खतरा राजनीति के मोर्चे पर है।
प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए कर्नाटक चुनाव परिणामों पर योगेंद्र यादव ने कहाकि
जाति, वर्ग, लिंग तथा स्थानीयता जैसे तमाम घटक एक ही दिशा में संकेत कर रहे हैं। खाते-पीते लोगों के ज्यादातर वोट बीजेपी को मिले जबकि अभावग्रस्त जीवन जी रहे ज्यादातर मतदाता कांग्रेस के पीछे लामबंद हुए। इन कोणों से देखें तो जान पड़ेगा कि कर्नाटक के चुनाव परिणाम दरअसल कतार में सबसे पीछे की ओर खड़े लोगों की जीत है। अगर विपक्ष अन्य राज्यों में इसे दोहरा सके तो समझिए कि 2024 में केंद्र में सत्ता बदल जाएगी।
यादव ने कहा समाज के ऊपरी तबकों को अपने पीछे गोलबंद करने की बीजेपी की राजनीति की काट के लिए विपक्ष को सामाजिक पिरामिड के निचले हिस्से के लोगों को अपनी तरफ खींचने की राजनीति अपनानी होगी। चूंकि हम यहां साधन-सुविधा के अभाव को चार कोणों (जाति, वर्ग, लिंग तथा स्थानीयता यानी शहरी या ग्रामीण) से देख रहे हैं सो, मुट्ठी भर हिन्दुस्तानियों को छोड़कर अन्य सभी एक ना एक अर्थ में इस अभावग्रस्त हिस्से के ही सदस्य माने जाएंगे। इसमें 80 फीसद लोग अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यक समुदाय के हैं। कम से कम 66 प्रतिशत लोग गरीब तबके के हैं जिन्हें मासिक राशन मिलता है। इसमें 65 प्रतिशत लोग अब भी ग्रामीण इलाकों में रहते हैं तथा इस बड़े से हिस्से में 48 प्रतिशत तादाद महिलाओं की है। इन चार कोणों के सहारे सामाजिक पिरामिड के निचले हिस्से में मौजूद लोगों की हुई इस गणना के भीतर एक-दूसरे में पेवस्त धागों को अलगाते हुए एकसूत्रता के तर्क से गिनती करें तो नजर आएगा कि भारत की इस बड़ी आबादी में शहरी, अगड़ी जाति तथा अपेक्षाकृत सम्पन्न तबके के पुरुषों की तादाद 2 प्रतिशत है।
योगेंद्र यादव ने कहा कि भाजपा हमेशा धर्म के नाम पर आपस में लड़ाती रही है। मणिपुर में जातीय समूहों को आपस में लड़ाया जा रहा है जहां हालात बेकाबू हो चुके हैं। किसान आंदोलन में जाट आगे थे, महिला पहलवान भी अधिकतर जाट हैं जो हरियाणा और पंजाब से आते है। महिला पहलवानों के साथ न्याय करने के बजाय हरियाणा में भाजपा जाट के विरुध्द गैर जाट का मुद्दा खड़ा कर समाज को आपस में बांटने का षड्यंत्र कर रही है।
यादव ने प्रेसवार्ता में पत्रकारों से कहाकि संविधान को बचाने के लिए सभी विपक्षी दलों की एकजुटता बहुत जरूरी है। उन्होंने मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों के संदर्भ में कहाकि यदि यहां के आगामी विधानसभा चुनाव भाजपा हारती है तो इसका प्रभाव लोकसभा चुनावों पर अवश्य पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि लंबे संघर्ष के बाद भी केंद्र सरकार किसानों का एमएसपी की मांग पर अपना मुंह आज भी बंद किए है। यादव ने स्थानीय किसानों, मजदूरों, जनप्रतिनिधियों से संवाद किया। उनके साथ दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अजीत झा, दिल्ली के पूर्व विधायक पंकज पुष्कर भी साथ थे।