इसी दिन शनि जयंती भी है
वट सावित्री पूजन के लिए आई श्रद्धालु महिलाएं । |
उन्होंने बताया कि इसके में जानते हैं कि वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा का महत्व और विधि हिंदू धर्म में बरगद के पेड़ को पूजनीय क्यों माना गया है। बरगद का वृक्ष एक दीर्घजीवी यानी लंबे समय तक जीवित रहने वाला विशाल वृक्ष है। इसलिए इसे अक्षय वृक्ष भी कहते हैं । यक्षों के राजा मणिभद्र से वटवृक्ष उत्पन्न हुआ था ।
मान्यता है कि ये पेड़ त्रिमूर्ति का प्रतीक है, इसकी छाल में विष्णु, जड़ में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव का वास माना जाता है । इसके अलावा पेड़ की शाखाएं, जो नीचे की तरफ लटकी रहती हैं, उनको मां सावित्री कहा जाता है । इसे प्रकृति के सृजन का प्रतीक भी माना जाता है ,इसलिए संतान प्राप्ति की कामना के लिए भी इसकी पूजा अचूक मानी गई है ।
पौराणिक कथा के अनुसार देवी सावित्री ने पति की रक्षा के विधि के विधान तक को बदल दिया था । पुराणों के अनुसार पति को संकट से उबारने के लिए सावित्री ने घोर तप और व्रत किया था । माता सावित्री के सतीत्व और पतिव्रता धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने उनके पति सत्यवान के प्राण बरगद के पेड़ के नीचे ही लौटाए थे ।
इसके बाद देवी सावित्री को 100 पुत्रों की माता होने का सौभाग्य भी मिला । उन्होंने सावित्री को यह वरदान भी दिया था कि जो भी सुहागिन बरगद की पूजा करेगी , उसे अखंड सौभाग्यवती रहने के आशीर्वाद मिलेगा।
कैसे करें वट सावित्री व्रत में बरगद की पूजा :-
वट सावित्री व्रत में सुहागिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं । व्रत का संकल्प लें । इस दिन महिलाएं सोलह शृंगार करती हैं ।दो टोकरी में पूजा का समान तैयार किया जाता है और बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर महिलाएं कथा का श्रवण करती हैं । बरगद के पेड़ को जल से सींचते हैं। रोली,चंदन का टीका लगाएं, कच्चे सूत के साथ बरगद के पेड़ की परिक्रमा की जाती है ।
वट वृक्ष की पूजा के बाद 7 या 11 सुहागिनों को आम और सुहाग की सामग्री जरुर भेंट करें । मान्यता है इससे सुहाग पर संकट नहीं आता । त्रिदेव की कृपा से वैवाहिक जीवन में खुशियां आती हैं और संतान सुख प्राप्त होता है।