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जीवन की शिक्षा में पंचतत्वों का महत्वपूर्ण स्थान हो: सुश्री आशा बेन

बेगमगंज। नगर के सरस्वती विद्या मंदिर विवेकानंदपुरम  में प्रांतीय शिशु वाटिका वर्ग के तृतीय दिवस पर वर्चुअल माध्यम द्वारा सुश्री आशा बेन जामनगर ने संबोधित करते हुए कहा कि शिशु शिक्षा संस्कारों की नीव है, ऐसा समझकर हम सब कार्य कर रहे हैं। हमारा जीवन दर्शन  तथा शैक्षिक दर्शन भी आध्यात्मिक है। हम लोग शिशु शिक्षा क्षेत्र में भारतीय जीवन दर्शन को लागू करने का काम कर रहे हैं। समग्र शिशु शिक्षा को तीन भाग 0 से 5 वर्ष ,उसका केन्द्र घर शिक्षण-माता, पिता, परिवार केन्द्र में संस्कार होता है। 6 से 16 वर्ष का समय विद्यालय शिक्षा है वहाँ गुरु शिक्षक है। और 17 से आजीवन तक में स्वयं प्रेरक है, केन्द्र समग्र सृष्टि है। ऐसी हमारी शिक्षा के तीन भाग है। हम सभी 0-5 वर्ष में कार्य कर रहे है ।  हमें कुछ शब्दावली भी समझना चाहिए हमारे जीवन को जानना है? जीवन क्या, किससे सम्बद्ध है, इसे जीने हेतु क्या आवश्यकता पड़ती है।

शिशु वाटिका वर्ग

जीवन से घनिष्टतम अनुभव होगा तब आनंद आता है। अपना जीवन आनंदमय अनुभव हो। शिक्षा भी आनंद हो जीवन भी आनंद हो उस दृष्टि से शिक्षा की रचना विद्याभारती ने की। पहला बिन्दु पंच महाभूतों से घनिष्टतम अनुभव - पृथ्वी, जल, आकाश, तेज और वायु। अर्थात हमारा शरीर  पांच तत्वों से बना है इसलिए जल को देवता, पृथ्वी के बिना रह नही सकते इसलिये पृथ्वी को मां, वायु देवता, अग्निदेव देवता, आकाश देवता। अतः हमारी शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि संस्कारों में पंचमहाभूत आ जाए । हमारे यहाँ बहुत सारी कलाएं है इनसे बच्चों का नाता जोड़ना चाहिए, आज शिक्षा जगत से कलाएं लुप्तप्राय हो गई है। हमारे शास्त्रों मे 64 कलाए शिल्प स्थापत्य, वाचन, लेखन, वक्तव्य कला आदि से आए तो सभी कलाओं में दक्ष बनेगा। गायन, वादन, नर्तन यदि सभी कलाओं में बच्चों को जोड़ना। पहले माता-पिता, परिवार, पड़ोस, समाज सभी से उसका घनिष्टतम अनुभव जुड़ना चाहिए। आज बच्चा एकाकी है, क्योंकि मानव जीवन से संवेदना समाप्त होती जा रही है यदि हृदय में संवेदना नहीं तो वह जीवन राक्षसी है। इसलिए सभी से प्रेम करना सीखें तभी संवेदना जागृत होगी।आज की शिक्षा में ये घनिष्टतम नाता नहीं है, इसलिये हम नदियों, वृक्षों, पौधों में रसायन से सृष्टि का नुकसान करते हैं। यह कम पढ़े-लिखे लोग ही करते है। अनपढ़ नहीं करते,ग्रामीण स्तर पर लोगों का प्रकृति से घनिष्टतम नाता जुड़ा हुआ है इसलिए वे क्षति नहीं पहुँचाते, उनके लिए प्रकृति ही भगवान है।

शिशु शिक्षा क्षेत्र में  समाज और राष्ट्र को उपयोगी बने ,हमारा यह पाठ्यक्रम सम्पूर्ण राष्ट्र ने ईसीसीई के माध्यम से स्वीकार किया है। आप सभी आचार्य जीवन के घनिष्टतम अनुभव से जुड़कर बच्चों को घनिष्टतम अनुभव से नाता स्थापित करें।


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