बेगमगंज। ग्राम नयानगर में सिद्ध क्षेत्र देव ठाकुर बाबा धाम में समस्त ग्राम वासी, क्षेत्र वासियों के द्वारा पंचकुंडात्मक यज्ञ एवं श्रीमद्भागवत सत्संग के छटे दिन की कथा मे संदलपुर खातेगांव , जिला देवास से पधारे संत भक्त पं.भगवती प्रसाद तिवारी ने कहा श्रीमद्भागवत में सतगुरु श्री शुकदेव मुनि जी ने सम्राट परीक्षित को समझाया । भगवान की भक्ति, भगवान के लिए ही होना चाहिए, नाशवान वस्तुओं के लिऐ नहीं। भक्ति भव से पार होने के लिए हो, व्यापार के लिए नहीं हो। संसार कै भोग पदार्थ के लिए भक्ति साधना करना ,घाटे का सौदा है। संसार के सुख भोगने पर भी दुःख का अंत नहीं होता है।
संसार में प्रत्येक मनुष्य को एक समय अवस्था आने पर घर ,परिवार, नश्वर वस्तुओं से जो आसक्ति, लगाव है,उसे सद्ज्ञान आधार से छोड़ने का प्रयास अवश्य करना चाहिए। सन्यासी कभी गृहस्थी नहीं बन सकता है, परंतु गृहस्थी कुछ समय के लिए सन्यासी, त्यागी,साधु , संत बन सकता है। इसलिए गृहस्थ धर्म सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।समय , संपत्ति का सदुपयोग करना चाहिए।जनता की संपत्ति लेने वाले लोग बहुत है पर संताप लेने वाले कम है।समय और जीवन अनमोल है इसे बरवाद न करें। ईश्वर हमें कितना भी अच्छा बड़ा सब सुख संपत्ति प्रदान करे , हमें ज्यादा सुख नहीं भोगना चाहिए। हमें इतना ही सुख लेना चाहिए, जिससे भगवान का स्मरण बना रहे।जीव का स्वभाव है आवश्यकता से ज्यादा सुख में भगवान को , धर्म को , मर्यादा को , शिष्टाचार को भूल जाता है।जरूरत से ज्यादा सुख धन ,संपत्ति, मान बड़ाई जीव की दुश्मन बन जाती है। आवश्यकता से अधिक परमात्मा ने जो कुछ धन संपत्ति दे रखी है,उसका सदुपयोग करें, घर , परिवार के साथ समाज , गरीब , गौमाता,दीन दुखी की सेवा में लगाते रहना चाहिए।धन का दुरपयोग नशा ,शराब , मांसाहार में करने से लक्ष्मी जी नाराज हो जाती हैं।
नया नगर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा |