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विनम्रता ही अच्छे इंसान की पहचान : प. शास्त्री

कथावाचन करते हुए प.कमलेश शास्त्री जी।

बेगमगंज।  मड़देवरा में चल रही श्रीमद्भागवत महापुराण के सप्तम दिवस में पं.कमलेश कृष्ण शास्त्री ने कहा - विनम्रता ही आध्यात्मिक व्यक्ति की पहचान है। अध्‍यात्‍म जीवन यात्रा को सही और सुखद बनाने का मार्ग प्रेम, करुणा और सेवाभाव है। आध्‍यात्मिक व्यक्ति मानते हैं कि प्रेम की शुरुआत उनके भीतर से होती है। वे स्‍वयं से प्रेम करते हैं और मानते हैं कि दूसरों से प्‍यार करना भी आवश्यक है। वे अपने शरीर और आत्‍म का ध्यान रखते हैं। इसके लिए वे संतुलित आहार और व्‍यायाम अपनाते हैं। इसके साथ-साथ वे स्‍वयं की आत्‍मिक ऊर्जा को भी सही रूप में संचारित करने का प्रयास करते हैं। इससे उन्‍हें अधिक आनन्द, प्रेम और बुद्धिमत्‍ता की प्राप्ति होती है। विश्व को सर्वश्रेष्ठ बनाने का प्रयास अध्‍यात्‍मवाद का सकारात्‍मकता से सीधा सम्बन्ध है। जब आप कोई सकारात्‍मक बदलाव करने का प्रयास करते हैं, तो वह भी एक प्रकार  आध्‍यात्मिकता ही है। शास्त्री जी ने कहा साधकों को निर्णयवादी ना बनने की सलाह दी और कहा कोई भी आध्‍यात्मिक व्‍यक्ति न तो स्‍वयं को और न ही दूसरों को 'जज' करता है। आध्‍यात्मिक यात्रा तभी शुरू होती है जब आप स्‍वयं व अन्‍य लोगों के बारे में कोई भी निर्णयात्‍मक रवैया करने से दूर हो जाते हैं। वे दूसरों को न तो कमतर ठहराते हैं, और न ही उनके बारे में अपशब्द बोलते हैं। इसके स्‍थान पर वे लोगों के बारे में अच्‍छी बातें बोलते हैं और प्रेम ही फैलाते हैं। यदि सीधे शब्‍दों में कहें तो आध्‍यात्मिक व्‍यक्ति नित्‍य-प्रतिदिन अपने व्‍यवहार में दयालुता का भाव उत्‍पन्‍न करने का प्रयास करता है। आध्‍यात्मिक व्‍यक्ति के लिए मानवता ही सबसे बड़ा धर्म होता है। वह मानवता के लिए ही प्रयास करता है। इस प्रकार वह समाज के उत्‍थान और सहायता के लिए कई प्रकार के कार्य करता है। वह स्‍वयंसेवक के तौर पर काम करता है, कभी दान करता है, अनाथ बच्‍चों को गोद लेता है। अर्थात्, वह कुछ न कुछ ऐसा कार्य करता है, जिससे वह समाज की भलाई में योगदान दे सके।


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