बेगमगंज। कोरोना के प्रकोप ने तांडव मचाने के साथ लोगों को स्वास्थ्य के प्रति सजग व सतर्क रहना सिखा दिया है। इसके सकारात्मक परिणाम अलग-अलग समय पर अलग-अलग क्षेत्रों में दिखे हैं। सबसे ताजा सुखद परिदृश्य भारत में जैविक खेती में उल्लेखनीय विस्तार के रूप में दिखा है। इन दो साल में भारत जैविक खेती के उत्पादन में विस्तार करने वाले तीन सबसे बेहतरीन देशों में शुमार हो गया है। रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ आर्गेनिक एग्रीकल्चर, स्विटजरलैंड के सर्वे-2022 ने इस पर मुहर लगाई है कि 2020 में वैश्विक स्तर पर जैविक खेती में हुए 30 लाख हेक्टेयर के विस्तार में दसवें हिस्से से ज्यादा क्षेत्र का योगदान भारत का है।
जैविक खेती पर आयोजित कार्यशाला |
पंडित दीनदयाल उपाध्याय शासकीय महाविद्यालय में रूसा वर्ल्ड बैंक एवं आइक्यूएसी के तत्वधान में महाविद्यालय प्राचार्य कल्पना जंभुलकर एवं प्रभारी राकेश कनेल के मार्गदर्शन में एक दिवसीय कार्यशाला में रिटायर्ड लेक्चरार एसपी त्रिपाठी ने उक्त बाते बताई।
उन्होंने बताया कि जैविक खेती का अर्थ होता है न बीज और न ही खाद में किसी तरह के रासायनिक पदार्थ का उपयोग। बीज, खाद सब प्राकृतिक। पूरी प्रक्रिया प्राकृतिक। किसी भी तरह की मिलावट से सर्वथा परे। इसी कारण उत्पादन भी पूरी तरह जैविक, स्वच्छ और पौष्टिक। शरीर पर किसी भी तरह के दुष्प्रभाव की आशंका से बहुत-बहुत दूर। इससे पहले के सालों में देश में जैविक खेती में विस्तार की राह में सबसे बड़ी बाधा के तौर पर यही पाया जाता था कि देश में ऐसे उत्पादन को लोगों तक पहुंचाने और लोकप्रिय बनाने के लिए पर्याप्त बाजार उपलब्ध नहीं हैं। अब जबकि उत्पादन और क्षेत्रफल इतना बढ़ा है, तो इसका स्वाभाविक अर्थ है कि देश में बाजारों के विस्तार की दिशा में भी अच्छा खासा काम हो रहा है। यह भविष्य के लिए भी बड़े सुखद संकेत हैं। लेकिन देश के कर्ताधर्ताओं का काम और जिम्मेदारी यहीं खत्म नहीं हो जाती। जिस रिपोर्ट में विस्तार का उल्लेख है, उसी में यह बिंदु भी निहित है कि देश में अब तक केवल डेढ़ प्रतिशत कृषि भूमि का ही उपयोग जैविक खेती में हो रहा है। स्वाभाविक तौर पर अभी उडऩे के लिए पूरा आसमान खुला हुआ है। यह उड़ान भरना जरूरी है, इसलिए कि जैविक खेती हर दृष्टि से लाभदायी है। सबसे अव्वल स्वास्थ्य की दृष्टि से। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जैविक उत्पादन की बहुत मांग है और यह भी कि इस मांग की पूर्ति करने वाले देशों को पूरे विश्व में सम्मान के साथ देखा जाता है। सम्मान के साथ भरपूर दाम भी उनकी ओर से दिया जाता है।
जैविक खेती में न सिर्फ जमीन की उर्वरता बनी रहती है, बल्कि बढ़ती भी है। सिंचाई का समयांतराल बढ़ता है और जैविक चीजों के उपयोग के कारण फसल की लागत घटती है, जो सरकार का सबसे प्रमुख लक्ष्य है। इसलिए इसे विस्तार देने के लिए उठाए गए कदमों का दायरा द्रुत गति से बढ़ाना चाहिए और अधिकाधिक ऊंचाई तक पहुंचने की कोशिश की जानी चाहिए।उन्होंने जैविक खाद से भूमि की उर्वरक शक्ति को केसे बढ़ा सकते हैं के बारे में विभिन्न उदाहरणों द्वारा जानकारी दी ।
कार्यक्रम का संचालन सुष्मिता चौरसिया व निमिषा माहेश्वरी द्वारा किया गया एवं अंत में आभार वीर सिंह लोधी द्वारा व्यक्त किया। कार्यशाला में विद्यार्थी एवं महाविद्यालय के समस्त स्टाफ उपस्थित रहा।