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स्व. वीणा सहस्त्रबुद्धे के अमृत महोत्सव में गूंजी शिष्या की स्वर लहरियां

भोपाल। ग्वालियर घराने की विख्यात शास्त्रीय गायिका विदूषी स्व. वीणा सहस्त्रबुद्धे के अमृत महोत्सव के अवसर पर कला समूह भोपाल और स्वर गांधार संगीत अकादमी द्वारा आयोजित संगीत समारोह में मुंबई की कलाकार अदिति जोशी ने गायन और भोपाल के युवा तबला वादक सिद्धांत गुंदेचा ने एकल तबला वादन का प्रस्तुतिकरण किया । 

सर्वप्रथम युवा तबला वादक सिंद्धात गुंदेचा ने अपनी गहन साधना और उज्जवल भविष्य की संभावनाएं प्रदर्षित की । तबले पर थिरकती उंगलिंया जहां दर्शनीय थी वहीं तबले के बांये और दायें से निकलते स्वर नाद संगीत का  वातावरण निर्मित कर रहे थे । सिद्धांत ने तबले पर तीन ताल में कायदे , पलटे व पेशकार प्रस्तुत किये। 

तत्पष्चात मुंबई की कलाकार अदिति जोशी ने  अपनी गुरू स्व. वीणा सहस्त्रबुद्धे से प्राप्त शिक्षा व अपनी कला के माध्यम से आमंत्रित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।अपने गायन के लिये सर्वप्रथम राग श्याम कल्याण का चयन किया जिसमें अपनी गुरू द्वारा गायी दो बंदिशें और एक तराना प्रस्तुत किया । विलंबित रचना ग्वालियर घराने की विशिष्ट ताल तिलवाड़ा में रचित है जिसके बोल थे सखी मैं रैन सब जागी, मध्य लय रचना सजनी श्याम रंग छाये रे और तराना  तीन ताल में निबद्ध थे। तत्पष्चात आपने राग चंद्रकौंस में झपताल में रचित रचना पिया बिन और आड़ा चौताल में एक तराना प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का अंत आपने एक निर्गुणी भजन से किया। संगत कलाकारों में भोपाल के ही तबला  वादक मनोज पाटीदार और हारमोनियम पर युवा कलाकार मुनि मालवीय थे। 

कला समूह की संस्थापक सुलेखा भट ने बताया कि इस वर्ष दुनिया भर में विदूषी वीणा सहस्त्रबुद्धे का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा हैं जिसमें उन्हीं के शिष्य शिष्याएं अपनी प्रस्तुतियों से गुरू को स्वर श्रृद्धांजली दे रही है । भोपाल में कला समूह प्रत्येक वर्ष 29 जून को वीणा ताई की स्मृति में राष्ट्रीय स्तर का आयोजन विगत 5 वर्षाें से करता आ रहा है। 

कार्यक्रम की सहयोगी संस्था स्वर गांधार संगीत अकादमी के निदेशक शेखर कराड़कर ने बताया की अकादमी द्वारा शास्त्रीय और सुगम संगीत के कार्यक्रमों के माध्यम से नई प्रतिभाओं की खोज और उन्हें प्रस्तुति के अवसर प्रदान कर संगीत के संवर्धन जैसा महत्वपूर्ण कार्य विगत अनेक वर्षाें से किये जा रहें है।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध तबला वादक और संगीतविद् पंडित किरण देशपांडे थे।

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