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विलुप्त हो रहा चौपड़ का खेल

बेगमगंज। आधुनिकताकी दौड़ में शहर से पारंपरिक खेल लुप्त से हो गए हैं। आज बच्चों का वीडियो गेम, कार्टून प्रोग्राम तथा एनिमेटेड फिल्मों की तरफ रुझान बढ़ता जा रहा है। समाज से परंपरागत खेल तो इस प्रकार से लुप्त हुए हैं कि आजकल के बच्चे उनके नाम नियम तक नहीं जानते हैं। टीवी पर आने वाली कार्टून फिल्मों बच्चों के धारावाहिकों की पकड़ मजबूत होने से बच्चों का रुझान पारंपरिक, मानसिक शारीरिक क्षमता में वृद्धि करने वाले खेलकूदों से एकदम हट सा गया है। एक समय था जब गर्मी की छुटि्टयां शुरू होते ही पारंपरिक खेलकूदों की बहार हुआ करती थी। हर गली मोहल्ले में सामूहिक रूप से विभिन्न प्रकार के खेल खेले जाते थे। लेकिन आज गली और मैदान वीरान पड़े रहते हैं। छोटा भीम, डोरेमॉन, टॉम एण्ड जेरी, पोपइ सेलर मैन, बेटमैन, बॉब बिल्डर, नोडी जैसे अन्य कई कार्टून प्रोग्रामों के नाम है जिन्हें देखने के लिए बच्चे दिनभर टीवी से चिपके रहते हैं। शहर के बच्चों से बात करने पर पता चलता है कि इस प्रकार के पचासों कार्टून दिनभर में आते हैं और मजे की बात तो यह है कि इन सबके नाम और प्रसारण समय बच्चे-बच्चे को जुबानी रटे हुए हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में चौपड़ खेलते हुए

परंपरागतखेल हुए नदारद:- टीवीऔर अन्य आधुनिक इनडोर खेलों के प्रचलन से पारंपरिक खेल तो नदारद हो गए हैं। जिनमें प्रमुख रूप से चर-भर, शेर-बकरी, चौपड़ पासा, अस्टा-चंगा, चक-चक चालनी, समुद्र पहाड़,  आदि अनेक खेल उनके नाम आज लुप्त प्राय: है। यहां तक कि गुल्ली डंडा, सतोलिया, चोर पुलिस, रेस, चर-भर, लुका-छिपी, आदि कई ऐसे खेल हैं जो कि देखने को भी नहीं मिल रहे हैं।

एक समय था जब खेलों पर क्रिकेट भारी पड़ रहा था और जहां देखो वहां क्रिकेट ही हावी हो रहा था। लेकिन अब तो क्रिकेट भी धीरे-धीरे कम हो रहा है। जिसकी मुख्य वजह यह भी है कि बच्चे शारीरिक खेलकूदों पर कम ध्यान दे रहे हैं और बच्चों के अभिभावक भी गर्मी के चलते बच्चों को बाहर जाने से रोकते हैं।

हमारे समय में तो गुल्ली डण्डा, सतोलिया, चरभर, लुका-छिपी आदि कई ऐसे खेल थे जिन्हें हम प्रतिदिन सामूहिक रूप से खेला करते थे। जिनकी याद आज भी जहन में ताजा है। लेकिन आजकल के बच्चों को तो टीवी के अलावा कुछ अच्छा ही नहीं लगता है।( एडवोकेट   चांद मियां, समाजसेवी,) पारंपरिकखेलों में बच्चों की भागदौड़ होती थी। जिससे पूरे शरीर में ब्लड सर्कूलेशन सुचारू रूप से होता था। वहीं खेलों के माध्यम से होने वाली शारीरिक मेहनत बच्चों के शरीर के विकास में सहयोग करती थी। लेकिन हाल ही में बढ़ रहे वीडियो गेम, कंप्यूटर गेम तथा टेलीविजन के प्रोग्राम बच्चों के स्वास्थ्य पर बूरा प्रभाव डाल सकते हैं। ( डॉ. जेपी पटेल रिटायर्ड बीएमओ सिविल अस्पताल बेगमगं मुझे तो टीवी पर कार्टून देखना बहुत पसंद है। वैसे भी मम्मी आज के माहोल के हिसाब से बाहर तो जाने ही नहीं देती है। इसलिए मैं घर पर बैठा टीवी या मोबाइल पर ही वीडियो गेम खेलता हूं। ( रितिक कुमार छात्र ) आजकल तो एनिमेटेड फिल्में भी आने लगी है और मैं और मेरा भाई  छुटि्टयों के दिन  बाजार से सीडी किराए पर लाकर एनिमेटेड फिल्में ही देखते हैं। गली में दूसरे बच्चे भी बाहर नहीं निकलते हैं। ( हेमंत शिल्पी छात्र ) घरपर पापा  मामा से पारंपरिक खेलों के बारे में सुना तो बहुत है और खेलने की इच्छा भी करती है लेकिन अब उन खेलों को सिखाने वाला भी कोई नहीं है। पापा के पास समय नहीं है तो मामा अपने कार्यों में ही व्यस्त रहते हैं। ( मुबश्शिर अहमद छात्र )


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