भोपाल। सर्व ब्राह्मण परिषद बैरसिया के तत्वाधान में प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी श्रावणी उपाकर्म नगर के प्रसिद्ध मनकामेश्वर मंदिर बाह नदी सीढी घाट पर दश विधि स्नान सप्त ऋषि पूजन कर ब्राह्मणों द्वारा बड़े हो हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
साथ संपन्न हुआ। सप्त ऋषि पूजन,नवीन यज्ञोपवित धारण एवं बड़े ही धूमधाम से मनाया गया यह पर्व प्राचीन काल से ही शुक्ल यजुर्वेद के अनुयायियों का सर्वोत्कृष्ट पर्व है जो वेद धर्म को सर्वोपरि मानते हैं, पालन करते हैं उनका इस पर्व में विशेष योगदान और महत्व रहता है। इस दिन पूरे वर्ष के किए अपने पापोंकेशमन के लिए हेमाद्रिसंकल्प पढ़कर नदी या जलाशय में दशविधीस्नान देवतर्पणऋषितर्पणपित्रतर्पण करके स्वयं को वर्ष भर के किए किए हुए ज्ञातअज्ञातपापोंसेमुक्त करते हैं और फिर नई ऊर्जा के साथ नई उमंग के साथ आगे के वैदिक धर्म में निरत हो जाते हैं, यह श्रावणी पर्व जागृति का पर्व एवं आरोग्यता का द्योतक है मानसिक एवं दैहिक पापों का शमन करने वाला है ।
,नगर के प्राचीन मनकामेश्वर मंदिर बाह नदी सीढी घाट पर प्रातः 9 बजे मा हरसिद्धी मंदिर के आचार्य पं प्रमोद पद्मनाभ शास्त्री के आचार्यत्व मे वैदिक विधि- विधान के साथ प्रथम हेमाद्रि संकल्प, दशविध स्नान, पंचगव्य प्रासन,तर्पण, सप्तर्षि पूजन ,नूतन यज्ञोपवीत धारण भगवान मनकामेश्वर जी का पूजन आरती के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ,जिसमे नगर तथा बैरसिया तहसील के 100 से अधिक विप्र बंधु सम्मलित हुऐ।
नगर के वरिष्ठ समाज सेवी पंडित दीपक दुबे ने बताया कि रक्षा बंधन का पर्व एक और जहाँ भाई बहनों के अटूट रिश्ते को राखी की डोर से बंधता है। वही बैदिक ब्राह्मणों को बर्ष भर में आत्म शुद्वि का अवसर प्रदान करता है।
वैदिक परंपरा अनुसार वेदपाठी ब्राह्मणों के लिए श्रावणमास की पूणिमा सबसे बड़ा त्योहार है। इस दिन को श्रावणी उपाकर्म के रूप में मनाते है। यजमानों के लिए कर्मकांड यज्ञ हवन आदि करने की जगह खुद अपनी आत्म शुद्वि के लिए अभिषेक और हवन करते है।
उन्होंने कहा कि सनातन धर्म मे दशहरा क्षत्रियो का प्रमुख पर्व है। दीपावली वैश्यों व होली अन्य जनों का विशिष्ट महत्व का पर्व है। रक्षा बंधन अर्थात श्रवण शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को मनाया जाने बाला श्रावणी उपाकर्म ब्राह्मणों का सबसे बड़ा पर्व है।
उन्होंने कहा कि वैदिक काल मे ब्राह्मण जाति नदियों व तीर्थो के तट पर आत्म शुद्वि के लिए यह उत्सव मनाते आरहे है। वर्तमान समय मे ब्राह्मण श्रावणी उपाकर्म की परंपरा को भूलते जारहे है। इस कर्म में आंतरिक व वाह्य शुद्वि गोबर मिट्टी भस्म अपामार्ग दुर्बा कुशा एवं मन्त्रो द्वारा की जाती है। इसलिए सभी ब्राह्मणों को श्रावणी उपाकर्म मनाना चाहिए।