भोपाल। विगत 3 वर्षोंं से भारत के किसान संघर्ष के पथ पर हैं। विभिन्न राज्यों में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति एवं संयुक्त किसान मोर्चा के तथा अखिल भारतीय किसान सभा के बैनर तले आंदोलनों का सिलसिला जारी है। लगभग 13 महीने तक दिल्ली के सिंघु बाॅर्डर, गाजीपुर बाॅर्डर, दिल्ली जयपुर मार्ग, शाहजहांपुर बाॅर्डर, पलवल पर हमारे साथियों ने पक्के मोर्चे लगाए।
परिणामस्वरूप केन्द्र सरकार को और विशेषकर प्रधानमंत्री को राष्ट्र के संबोधन के माध्यम से तीनों काले कृृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा। साथ ही यह भी उन्होंने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य और अन्य विषयों पर शीघ्र ही बात की जाएगी। संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं से एक संयुक्त हस्ताक्षरयुक्त एग्रीमेंट भी केंद्र सरकार से हुआ। लेकिन 6 माह बाद एग्रीमेंट के प्रथम और महत्वपूर्ण बिंदू सभी कृृषि उत्पाद के न्यूनतम समर्थन मूल्य की खरीदारी, 750 किसान शहीदों के परिवारों को मुआवजा, उनकी स्मृृति में यादगार स्थल बनाए जाने, लगभग 80,000 किसानों पर चल रहे मुकदमों की वापसी तथा किसानों के सहकारी, सरकारी कर्ज की माफी के संबंध में जो लिखित आश्वासन मिला या मौखिक बात हुई उनमें से एक पर भी अमल नहीं हुआ। बल्कि लगभग 1 माह पूर्व सरकार ने एक समिति बनाई। केंद्र सरकार ने 29 सदस्य समिति बनाई जिसमें 5 सदस्य भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय सवयंसेवक संघ से संबंधित किसान संगठनों के नेताओं के नाम तथा बाकि सब कृृषि विश्वविद्यालय के कुलपति और लगभग 12 नाम केंद्रीय सरकार के कृृषि मंत्रालय के पदाधिकारी एवं आईसीएआर के राष्ट्रीय कृृषि अनसंधन विभाग तथा केंद्र सरकार के कृृषि विभाग के अधिकारियों के नाम डाल दिए। तीन स्थान संयुक्त किसान मोर्चा के लिए रखे गए। यह किसान आंदोलन के साथ धोखा था।
संयुक्त किसान मोर्चा की 3 जुलाई 22 की बैठक में भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत एवं उनके साथियों ने यह सुझाव दिया कि हमें अपने तीन सदस्यों को इस समिति में भेजना चाहिए। इसे हमारे संगठन सहित तमाम संघर्षरत संगठनों ने अस्वीकार कर दिया। आपको याद होगा सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसे ही 5 सदस्यों के एक समिति का गठन किया था और जिसमें सभी किसान संगठनों की राय मांगी गई थी। सभी किसान संगठनों ने आरएसएस और बीजेपी के किसान संगठनों को छोड़कर, सभी किसान संगठनों ने उस समिति का बहिष्कार किया था। आज किसानों के सामने बड़ी विषम परिस्थितियां हैं। आधे हिंदुस्तान में सूखा है तथा बहुत से राज्यों में बाढ़ की स्थिति है। कृृषि के उत्पादन गिरने की पूरी संभावना है। निरंतर निरंकुश होकर बढ़ती जा रही है जीएसटी ने आम जनों के साथ ग्रामीण भारत की कमर तोड़ दी है। सरकार किसी विषय पर भी गंभीरता से चर्चा नहीं करना चाहती। जीएसटी से हुई आय, पेट्रोल, डीजल, पेट्रोलियम उत्पाद से बेशुमार पैदा दौलत, विदेशी आर्थिक संगठनों से बड़े पैमाने पर ली गई ऊंचे दर पर ब्याज से देश की अर्थव्यवस्था को चलाते सरकार ने हमारे देश की अर्थव्यवस्था सहित देश के सामने गंभीर चुनौती पैदा कर दी है। धार्मिक उन्माद की चाशनी में जन आंदोलनों को कुचला जा रहा है। ऐसी स्थिति में अखिल भारतीय किसान सभा को और मजबूती के साथ आने वाले दिनों में किसान और व्यापक जन संगठनों को संगठित कर देश की अर्थव्यवस्था से बचाने, विदेशी पूंजी के जाल में फंसने से बचाने, विदेशी कर्ज से बचाने, कृृषि लागत दर घटाने के लिए किसानों को कमर कसनी होगी।
अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय महासचिव अतुल कुमार अनजान ने कहा कि हर वर्ष किसानों की समस्याओं को लेकर देशव्यापी स्तर पर 1 सितंबर को देशव्यापी मांग दिवस मनाती रही है। इस बार भी आगामी 1 सितंबर को सभी राज्यों और विभिन्न स्तरों पर कृृषि लागत दर घटाने, डीजल, पेट्रोल, पेट्रोलियम प्रोडक्ट के दाम घटाने, किसानों को उस पर सब्सिडी देने, न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ती, महंगाई पर रोक लगाने, स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों को लागू करने, संसद में प्रस्तावित बिजली बिल को संपूर्णता में वापस लेने, खेती किसानी के लिए किसानों को निःशुल्क बिजली देने, सरकारी और सहकारी कर्जे को माफ करने, आवारा पशुओं से किसानों की फसल को बचाने, किसानों पर चल रहे मुकदमों को वापस लेने, लखीमपुर खीरी के किसानों की हत्या के दोषियों को सजा दिए जाने आदि मांगों को लेकर व्यापक स्तर पर-मांग दिवस प्रतिरोध दिवस, मशाल जुलूस, जनसभा आयोजित किए जाएं एवं ज्ञापन पत्र दिया जाए। अखिल भारतीय किसान सभा के सभी यूनिटों से यह आह््वान किया जाता है कि 1 सितंबर 2022 को यह शानदार तरीके से किसान मांग दिवस को आयोजित करें और नव निर्वाचित राष्ट्रपति सुश्री द्रौपदी मुर्म को गर्वनर जिला कलेक्टर के माध्यम से ज्ञापन प्रेषित करें। मजदूरों, नौजवानों, छात्रों, महिलाओं, राज्य कर्मचारियों, व्यापारियों, ग्रामीण भारत के विभिन्न हिस्सों का सहयोग लेकर इसे शानदार बनाएं और प्रभावी प्रतिरोध का आयोजन करें।