Type Here to Get Search Results !

जैन मुनि दे रहे सारगर्भित प्रवचन

बेगमगंज। कपड़ा पहनने के पश्चात जब बह कपड़ा गंदा हो जाता है, तो उन कपड़ों को साफ करने के लिए आप सावुन पानी का उपयोग करते हो और साफ करके उसे पुन: उपयोग में ले आते हो उसी प्रकार एक गृहस्थ के जीवन में आरम्भ परिग्रह करने से घर गृहस्थी के कार्य करने से चित्त में मलीनता आ जाती है और उससे आपकी आत्मा में जो कीट कालिमा लग जाती है उसे साफ करने के लिये दान पूजा करके धर्म का मार्ग पूर्वाचार्यों ने दिया है। 

उक्त उदगार निर्यापक मुनि  समतासागर जी महाराज ने वेगमगंज श्री पारसनाथ जिनालय में प्रातःकालीन सभा में व्यक्त किए, मुनि श्री ने एक कथानक को सुनाते हुए कहा कि राजा भोज दीन दुखियों की बहुत मदद करता था उसके दरबार से कोई खाली हाथ नहीं जाता था वह सभी की मदद करते थे और ख्याल रखते थे एवं नगर में रूप बदल कर जाता था एवं जो दीन हीन नजर आता था उनकी मदद कर दिया करता था। मुनि श्री ने कहा कि अक्सर प्रजा की बात राजा तक नही पहुंच पाती  लेकिन रूप बदल कर सीधे आम जन की बात जब राजा तक पहुंचने लगी  आवश्यकता के अनुसार यदि आपको मदद मिल जाऐ और पड़ोसी को भी खवर न लगे वह दान ही सबसे बड़ा दान कहलाता है।राजा भोज रात्री में भेष वदल कर निकलता और सहयोग करने लगा तो राजा भोज की दयालुता और उनके दान की प्रवत्ति को देखकर उनके मंत्री को चिंता हुई कि यदि राजा इसी प्रकार दान करते रहे तो एक दिन राज्य का खजाना खाली हो जाऐगा। मंत्री को चिंता हुई  लेकिन राजा तक यह बात पहुंचाऐ कैसै? उसने डायरेक्ट न कहकर के संकेतों के माध्यम से राजा के भोजन कक्ष में एक बाक्य लिख दिया कि "आपत्ती काल के लिये धन को बचा कर रखना चाहिये" राजा इस बात को समझ गया कि यह कार्य मंत्री का ही है। भोजनशाला से भोजन करने के पश्चात जब राजा बंहा से निकलने लगा तो उसने उस बाक्य के नीचे लिखबा दिया कि "श्रीमानों के लिए आपदा कंहा आती है" अगले दिन मंत्री ने उसके नीचे लिखा श्रीमानों को भी दैवयोग से कभी कभी आपत्ती या परेशानियां आ सकती है?

दूसरे दिन राजा भोजन करने बैठा तो उसने ने पड़ा तो उन्होंने लिखवा दिया कि यदि दैवयोग से आपत्तियाँ आ सकती है,तो क्या वह संचित किया गया धन नष्ट नही हो सकता? मुनि श्री ने कहा कि बच्चों को आप करोड़ो अरबों की संपदा भी सोंप दैना यदि उनके पुण्य में नहीं है तो वह अरबों करोड़ों की सम्पदा भी नष्ट होंने में देर नहीं लगती। इसलिए अपने हाथों से जो पाप तुमने कमाया है उस पाप रुपी  धन को धोने के लिये स्वंय के हाथ से ही दान आवश्यक है।

उन्होंने एक दोहा बोलते हुये कहा कि यदि बच्चों का पुण्य नही है तो कमाया हुआ धन भी साफ हो जाता है, "पूत कपूत तो का धनसंचय" और यदि आपके पास भले ही धन नहीं है लेकिन यदि आपका पुत्र आज्ञाकारी और संस्कार वान है तो "पूत सपूत तो का धन संचय" बच्चों के पुण्य से खाक पति भी करोड़पति होते देखे है और परिवार को ऊंचाई पर पहुंचा देते है। उन्होंने कहा कि धर्म के साथ धन को कमाओ बच्चों को अच्छे संस्कार दो जिससे बच्चों के मन में देव शास्त्र और गुरू के प्रति श्रद्धा हो।

मुनि श्री ने कहा कि यह भगवान का दरबार है, यह पंचपरमेष्ठी का दरबार है। मुनि श्री ने कहा कि यह किसी का व्यक्तीगत दरबार नहीं पंचपरमेष्ठी का दरबार है, जो लोग आज यंहा पर सामुहिक रुप से पंच परमेष्ठी की आराधना कर श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान कर रहे है वह महापुण्य को अर्जित कर रहे है, ऐसे पुण्य महा भाग्यशालियों को ही हांसिल हो पाते है, उन्होंने कहा कि जो लोग अपनी शारिरिक स्थिति से असहाय है और वह भले ही यंहा तक नहीं आ पा रहे है लेकिन अपने घर से ही वह अपने बहु बेटिओं तथा बच्चों को भेजकर पुण्य की अनुमोदना कर रहे है वह भी किसी भाग्यशाली से कम नहीं है। मुनि श्री ने आम जनता से पूंछा कि बताओ आपको यंहा पर आकर कैसा लग रहा है?

 जबाब देते हुये कहा कि बेगमगंज जिला रायसेन की सबसेबड़ी जैन समाज है जंहा से जिले की पूरी जैन समाज का प्रतिनिधित्व हो रहा है। मुनि श्री ने बेगमगंज बालों को आशीर्वाद देते हुये कहा कि आप लोगों नेश्री सिद्धचक्र महामंडल विधान तो चातुर्मास का टेलर है, आगे तो आपके टी.व्ही के जितने चैनल चलते है बह सभी चैनल बंद होंने बाले है आगे से तो एक ही चैनल आचार्य श्री विद्यासागर चैनल ही चलने बाला है। मुनि श्री ने कहा यह तो अभी मंगलाचरण है आगे आगे देखो वेगमगंज तो संपूर्ण भारत का धर्मक्षेत्र बनने बाला है। उन्होंने सभी को शुभकामनाएं और आशीर्वाद देते हुये धन धान्य और वैभव का आशीर्वाद देते हुये कहा कि न्यायनीति के खूब कमाओ और धर्म के क्षेत्र में खूवखर्च करो जिससे आपके पुण्य में शातिशय वृद्धि हो।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.