नई दिल्ली। हाथ आया, पर मुंह न लगा। टीम इंडिया के साथ बर्मिंघम टेस्ट में कुछ ऐसा ही हो गया। मैच के पहले तीन दिन भारतीय टीम जीत की दावेदार थी, लेकिन इसके बाद इंग्लैंड ने बाजी पलट दी। भारतीय टीम इस झटके से बच सकती थी, अगर दिग्गज बल्लेबाज विराट कोहली अच्छी बल्लेबाजी कर जाते। वे दोनों पारियों में फ्लॉप रहे।
ऐसा नहीं है कि विराट का फेल होना हैरान करने वाला रहा। वे करीब तीन साल से इसी तरह एक के बाद एक विफलताओं की नई-नई इबारत लिख रहे हैं। विराट खुद उस कसौटी पर खरे नहीं उतर रहे, जो उन्होंने बतौर कप्तान अपने खिलाड़ियों के लिए तय की थी।
कोहली ने हमेशा कहा कि वे खुद को बेस्ट मानकर क्रिकेट खेलते हैं। अपनी परफॉर्मेंस से उन्होंने लंबे समय तक खुद को बेस्ट साबित भी किया, लेकिन 23 नवंबर 2019 (विराट के आखिरी शतक की तारीख) के बाद से उनका प्रदर्शन देखिए। 18 टेस्ट मैचों में 27.25 की औसत से सिर्फ 872 रन। शतक एक भी नहीं। बेस्ट होना तो छोड़िए, वे इस दौरान दुनियाभर में सबसे ज्यादा टेस्ट रन बनाने वाले बल्लेबाजों की लिस्ट में टॉप-30 में भी नहीं हैं। वे इस लिस्ट में 34वें नंबर पर हैं। सिर्फ भारतीय बल्लेबाजों की बात करें तो भी विराट का नंबर चौथा है।
ऐसे प्रदर्शन के बावजूद विराट कोहली ढोए जा रहे हैं। लगातार..बार-बार...। सवाल यह है कि अगर विराट खुद कप्तान होते तो क्या वे इतना साधारण खेल दिखाने वाले बल्लेबाज को प्लेइंग-11 में शामिल करते? जाहिर है, इसका जवाब विराट तो देने नहीं जा रहे, लेकिन बतौर कप्तान उनके फैसले बहुत कुछ बयान करते हैं।