बेगमगंज। कोलू घाट मंदिर पर चल रहे सत्संग में पं.कमलेश कृष्ण शास्त्री ने कहा - शुभ-अशुभ दिन का विचार करना ही है तो वह केवल अशुभ कार्यों के लिये ही करना ठीक है। ऐसा करने से उस समय अशुभ कर्म टल जायेगा और मनुष्य पाप से बच जाएगा। परमात्मा के बनाये सभी दिन समान रूप से शुभ एवं पवित्र हैं। इनमें शुभ-अशुभ का आरोप मनुष्य स्वयं अपने विचारों से कर लेता है, जिस दिन, जिस क्षण किसी में बुरा विचार आए अथवा कोई अप-कार्य करने की प्रवृत्ति हो तो मानना चाहिए कि वह दिन, वह क्षण मनुष्य के लिए अशुभ है। इसके विपरीत जिस दिन, जिस क्षण पर शुभ विचार एवं पवित्र प्रवृत्ति उदय हो तब मानना चाहिए कि वह दिन, वह क्षण शुभ तथा कल्याणकारी है। वैसे परमात्मा का बनाया सारा समय शुभाशुभ से परे परम पवित्र, कल्याणकारी एवं दोष-रहित है।महाराज जी ने कहा कि एक उक्ति प्रसिद्ध है कि रावण का विचार समुद्र पर पुल बनाने और स्वर्ग तक सीढ़ी लगवाने का था। किन्तु उस शुभ कार्य के लिये वह कोई शुभ मुहूर्त खोजता रहा। बात टलती रही और तिथि-वार के शुभाशुभ ने यहाँ तक बाधा डाली कि रावण का वह शुभ विचार क्रिया रूप में परिणित होकर पूरा न हो सका और वह इस संसार से चला गया। इसके विपरीत जब उसने माता सीताजी को हरने का विचार किया तो शुभ-अशुभ मुहूर्त की खोज नहीं की और विचार आते ही उसे क्रिया रूप में परिणित कर दिया, एक क्षण का भी विलम्ब नहीं किया। कितना अच्छा होता कि दशानन सेतु बनवाने और सीढ़ी लगवाने के शुभ कार्यों का श्रीगणेश करने में शुभाशुभ मुहूर्त के चक्कर में न पड़ता और माता सीताजी का हरण करने से पूर्व हजार बार शुभाशुभ मुहूर्त का विचार करता। रावण यदि ऐसा कर सका होता तो उसकी कीर्ति का इतिहास उस अपवाद से भिन्न होता जो आज भी उसके नाम के साथ चला आ रहा है। वह दिन निश्चय ही उसके लिए शुभ था जिस दिन उसने समुद्र पर सेतु बनवाने और स्वर्ग तक सीढ़ी लगवाने का विचार किया था, और वह दिन, वह घड़ी निश्चय ही अशुभ थी, जिस समय उसके मस्तिष्क में माता सीता जी के हरण करने का विचार आया। इसलिए खेद है कि मनुष्य शुभ कर्मों के लिये तो मुहूर्त की खोज करता हुआ समय टालता रहता है, किन्तु अशुभ कार्य के लिये उसकी खोज नहीं करता। इसे विपरीत बुद्धि अथवा अविवेक के सिवाय और क्या कहा जायेगा ।
प्रवचन देते शास्त्री जी |