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क्या नफरत को राजनीति का हथियार बना लिया गया है?

भोपाल। समाज और राजनीति में जो नफरत की आंधी चल रही है, वह नई नहीं है। दुनिया के कई देशों में ऐसे दौर आए हैं, जब घृणा मनुष्य के मन में इस तरह हावी हो गई है कि लगा कि शायद उसने प्रेम या मुहब्बत को हमेशा के लिए खत्म कर दिया है। वह हिटलर का जर्मनी हो, स्टालिन का रूस हो या दक्षिण अफ्रीका की नस्लवादी सरकार हो। लेकिन कहते हैं कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। जब जब समाज और राजनीति में नफरत बढ़ी है, तब-तब उसकी ही कोख से उसे हराने वाले पैदा हुए हैं। नफरत को राजनीति का हथियार बना लिया गया है। राजनीति पार्टियों की ओर से आम जनता में कट्टर साम्प्रदायिकता, जाति एवं धर्म की भावनाओं को भड़काकर जनता को वोट बैंक बनाया जा रहा है। इससे बहुसंख्यक सम्प्रदाय या मूल लोग व अल्पसंख्यक लोगों के बीच नफरत की भावना उत्पन्न होती है। मानवाधिकारों की रक्षा दुनिया के सभी देशों का लक्ष्य होना चाहिए। अमेरिका में भी अश्वेतों के खिलाफ दोयम दर्जे का व्यवहार होता है। नफरत की वजह से भारत ही नहीं, दुनियाभर में हिंसा-हत्या व अपराध की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है। निश्चित रूप से नफरत को राजनीति का हथियार बनाने के उदाहरण हैं। नफरत से दूरी जरूरी है, तभी वैश्विक शांति संभव है।हमारी संस्कृति पर वार यह सही है कि कहीं न कहीं नफरत को राजनीति का हथियार बना लिया गया है। आज हमारे समाज में राजनीति में जो नफरत का जहर घुल रहा है, इससे आपसी भाईचारा व प्रेम खत्म हो रहा है। हमारी धरोहर, हमारी संस्कृति भी नष्ट होती नजर आ रही है। मुद्दों की राजनीति हो आधुनिक भारत की बदलती तस्वीर में, राष्ट्रीय मुद्दों और भविष्य की राजनीति के स्थान पर दलगत नफरत और विरासत की राजनीति पर जोर दिया जा रहा है। राजनीति पार्टियों को टांग-खिंचाई की जगह विकास पर ध्यान देना चाहिए। स्वास्थ्य, शिक्षा, स्कूल कॉलेज यूनिवर्सिटी  बेरोजगारी, बिजली, पानी और आर्थिक मुद्दों को हथियार बनाना चाहिए। सबसे विश्वसनीय हथियार यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं है कि नफरत को राजनीति का हथियार बना लिया गया है, क्योंकि आज के राजनीतिक परिदृश्य में नफरत सबसे विश्वसनीय हथियार है। राजनीति हर पांच साल में अपना नया रंग दिखाती है और वह नया रंग नफरत वाले पर पकड़ जल्दी करता है। नफरत गोला बारूद है, जिसका धमाका दूर-दूर तक जोरदार होता है। फूट डालो, राज करो की नीति इसमें एक प्रतिशत भी मीन-मेख नहीं है कि राजनीति ने नफरत के हथियार का बखूबी इस्तेमाल किया है। राजनेता आज भी अंग्रेजों की नीति 'फूट डालो और राज करो का ही अनुसरण करते हैं। वे भारतीय संस्कृति, प्रेम, भाईचारा और सौहाद्र्र की नीति का पालन नहीं करते हैं क्योंकि यदि ऐसा किया गया तो उनका मानना है कि उनका वजूद ही खत्म हो जाएगा। इसलिए वर्तमान समय में यह अकाट्य सत्य है कि राजनीति पार्टियों ने नफरत को राजनीति का हथियार बना लिया और इसी के बल पर वे सत्तारूढ़ होते आए हैं??

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