Type Here to Get Search Results !

एनएमसी की डॉक्टर्स,के लिए,सोशल मीडिया के बारे में जारी की गई नियमावली ,किन्हीं और व्यवसायों के लिए क्यों नहीं?

डॉ नरेन्द्र सिंह

अभी कुछ दिनों पहले ,चिकित्सकों की नियंता संस्था,"राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग"एनएमसी, द्वारा  डॉक्टर्स  के सोशल मीडिया के उपयोग के लिए जो गाइडलाइंस निर्धारित की हैं, वे अत्यंत ही भ्रामक,अनुचित ,अव्यावहारिक और पक्षपात पूर्ण हैं,क्यों कि रजिस्टर्ड मेडीकल प्रैक्टिसनर की परिभाषा ,ज्यादातर जो एलोपेथी से संबंधित चिकित्सक, जो कि क्वालिफाइड डिग्रीधारी होते हैं,वे ही नियमन की हर कैटेगरी में समाहित किए जाते है,और आर एम पी की जो दूसरी केटेगरी है,जो बिना उचित डिग्रीधारी हैं,वे चिकित्सा के नाम पर नंगा नाचने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिये जाते हैं,कोई बंधन नहीं,कोई नियमन नहीं!

वे चाहे यह दावा कर के लोगों को भ्रमित करें कि ,हमारे "बाग"में रोज टहलने आओ, तो हम आपको बाईपास आपरेशन से बचा देंगे,जैसे कि हमने लाखों को बचाया है,बस आपको मिट्टी के "माधव"की तरह हमारे "माधव बाग"रोज विचरण करना पड़ेगा!कुछ दावा करते हैं कि,हम सुगर की बीमारी को जड़ से खत्म कर देते हैं, और इंसुलिन से छुटकारा तो कुछ ही दिनों के इलाज के बाद मिल जाएगा!

मिर्गी का इलाज करने वाले,मछली खिला कर दमे की बीमारी ठीक करने वाले,केंचुए को साँप, और हाथी को हिरण बना देने का दावा करने वालों की तो कोई गिनती ही नहीं,ये किसी कानून में नहीं बंधते!

इसके अलावा एक और कैटेगरी है,अखबारों,दूरदर्शन चैनलों और सोशल मीडिया पर अपनी दाढ़ी खुजलाते हुए,वैज्ञानिक पैथी को कोसते हुए,हर बीमारी को ठीक करने का दावा करने वाली कंपनियां,जो सफेद बालों को काला,काले रंग को गोरा,करने की बातें सीना ठोक कर "एवीडेंस बेस्ड"बता कर प्रचारित करते आए हैं!

ऐसी ढेरों कंपनियां,और ढेरों लोग हैं जो हर तरह की चिकित्सा के बारे में गारंटीशुदा उपचार करने का दावा करते हैं,इससे क्या आमजनता की जेब हल्की नहीं होती?क्या वे भ्रमित नहीं होते?और कई तो उन बीमारियों की जटिलताओं के कारण दम तोड़ देते हैं,जो समय रहते उपचार लेने से ठीक हो जाती या नियंत्रण में रहतीं!अब ऐसी कौन सी पद्धति है जो ,यदि जरूरी है तो "डायलिसिस"से छुटकारा दिलवा दे?लेकिन धड़ल्ले से हर शहर में ऐसे केंद्र चल रहे हैं,!यदि ऐसी कोई चिकित्सा है तो सरकार को इन पर दवाब डाल कर जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए,क्यों इन केंद्रों तक ही ऐसी चिकित्साएं सीमित रहें,जो लोगों बायपास आपरेशन और और फेल गुर्दों को ठीक कर सकती हैं, यदि ऐसी चमत्कारी पद्धति को गुप्त और सीमित रखा जाता है तो यह क्या जनता के साथ धोका नहीं!?

माना कि सोशल मीडिया पर डॉक्टरों को नियंत्रित करने के पीछे सरकार की जो मंशा है वह ,यह हो सकती है,कि प्रचार और झूठी तारीफों से लोग भ्रमित हो सकते हैं,यदि चिकित्सक अच्छा है तो उसकी ख्याति खुद ब ख़ुद फैलेगी!और आमतौर पर ऐसा होता भी है,ज्यादातर चिकित्सक आज भी इसी ढर्रे पर चल रहे हैं,लेकिन यही बात राजनीतिक नेताओं पर भी तो लागू होती है,यदि उनकी समाजसेवा सच्ची और उचित दृष्टिकोण है तो जनता में उनकी साख बढ़ेगी ही,फिर चुनावों के दौरान और बाकी समय भी ,मीडिया के हर प्रारूप में प्रचार क्यों?क्या इससे जनता भ्रमित हो कर गलत नेता नहीं चुन सकती?

जो कि,एक चिकित्सक की झूठी तारीफ से आकर्षित हो,कर उसके पास जा कर अपना नुकसान कर लेने से ज्यादा व्यापक है,क्यों कि गलत राजनेता तो जनता के एक बहुत बड़े वर्ग को,प्रदेश को,देश को गर्त में धकेलने का काम कर सकता है,तो क्यों न समाज हित राजनीतिक प्रचार की भी सोशल मीडिया पर अनुमति नहीं होनी चाहिए!

अब बात करते हैं,सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मरीज को दवा लिख कर भेजना,जांचे भेजना,और सलाह देना अवांछित कृत्य की श्रेणी में आएगा!

तो हम अभी कुछ ही समय पहले की बात करें तो कोरोना काल में हम सभी चिकित्सकों से यह अपेक्षा और इसके लिए बाध्य भी किया जा रहा था कि वे सोशल मीडिया पर मरीजों का उपचार करें ,उन्हें सलाह दें!इसके लिए बाकायदा चिकित्सकों के मोबाईल नम्बर्स प्रकाशित भी किये गए थे समाचार पत्रों में।

आज भी ज्यादातर चिकित्सकों के पास जान पहचान वाले लोग ही सोशल मीडिया पर सलाह लेते हैं और मरीज को उसकी रिपोर्ट मीडिया पर भेजने से,मरीज का श्रम और ईंधन भी बचता है!

सोशल मीडिया पर रिपोर्ट शेयर कर,एक चिकित्सक अपने सीनियर या ज्यादा कुशल चिकित्सक से सलाह ले सकता है,इसमें क्या गलत है?

रही बात ऑनलाइन चिकित्सा के लिए एप्प के उपयोग के लिए बाध्य करना,एक तरह से उन एप्प की मार्केटिंग और उनको लाभ पंहुचाने की दिशा में कदम बढ़ाना होगा।

यदि कोई चिकित्सक कोई विशेष चिकित्सा करता है ,और उसको सोशल मीडिया पर शेयर करता है तो ज्यादातर बार मरीज की जानकारी ही बढ़ती और उसके लिए विकल्प चुनने का अवसर होता है,रही बात लाइक्स खरीदने और बटोरने की तो अधिकतर अब लोग गूगल लाइक्स पर भरोसा नहीं करते आज भी चिकित्सा क्षेत्र में ,मुँह से कान तक पंहुचने वाली लाइक ही सच्ची लाइक समझी जा सकती है।

कुछ मामलों में अपवाद हो सकते हैं,लेकिन मीडिया में जिस तरह के शीर्षकों से यह खबर प्रचारित हो रही है वह अत्यंत ही आपत्तिजनक है-

"अब कसेगी डॉक्टर्स पर नकेल",लाइक जुटाने वाले नपेंगे"!!आदि आदि!

इससे ऐसा लगता है कि इस देश का सबसे क्वालिफाइड डॉक्टर,प्रैक्टिस में गलत तरीके अपना रहा है,लोगों को भ्रमित कर रहा है,एक तरह से अपराधी प्रव्रत्ति का प्राणी है,और व्यापारी लोग चिकित्सा ,गारंटीड इलाज के नाम अघोषित "एवीडेंस"के आधार पर धड़ल्ले से तिजोरियां भरते जा रहे हैं!!

इसीलिए कहते हैं,भारत एक महान देश हैं,जहाँ दुनिया की सबसे सस्ती ,सुलभ और उच्चस्तरीय चिकित्सा उपलब्ध है,लेकिन इसका प्रदाता ठीक नहीं है,उस की लगाम कसना जरूरी है,भले ही चिकित्सा व्यवस्था की जान निकल जाए,अर्थी उठ जाए!!

Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.