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"मित्रता का धर्म श्रीकृष्ण -सुदामा जैसा हो : पं . शास्त्री

बेगमगंज। संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा नरसिंह मंदिर चोर बावड़ी पर चलते हुए आज सप्तम दिवस कथा व्यास भागवत भूषण पंडित शिव नारायण शास्त्री तिनसुआ वाले  गुरु जी ने कथा में सभी भक्तों को  सुमधुर वाणी से भक्तों को श्रवण कराया ।

भगवान कृष्ण सोलह हजार १०८  भगवान के विवाह की कथा सुनाई । जिसमे भूमि का पुत्र भोमा स्वर 16000 सो कन्याओं को बंदीगृह में बंधित रखें थे ।भगवान ने उन को मुक्त कराया उन कन्याओं में हाथ जोड़कर प्रभु के चरणों में भगवान से कहा प्रभु अब हमको कौन वरण करेगा तो प्रभु ने  ने स्वयं वरण कर लिया इसके बाद  गुरुदेव ने भगवान कृष्ण के 8 पटरानी ओ के विस्तार से कथा श्रवण कराई द्वारकाधीश एवं रुक्मणी की झांकी के द्वारा समझाया रुकमणी द्वारकाधीश का भव्य संपन्न हुआ रुक्मणी कौन है। भीषक राजा की बेटी थी रुक्मणी का भाई रूकमी चाहता था कि अपनी बहन रुक्मणी का विवाह शिशुपाल के साथ में करें लेकिन रुकमणी चाहती थी कि मेरा विवाह  भगवान द्वारिकाधीश के साथ हो द्वारकाधीश रुक्मणी को लेकर चले गए और भी गुरुदेव ने बड़े विस्तार की कथा  सुनाते हुए ।सुदामा चरित्र आदि की कथा को श्रवण कराया मित्रता सच्ची होनी चाहिए मित्रता में कभी स्वार्थ नहीं होना चाहिए मित्र वही है जो दुख और सुख में साथ दें । उसी को हम मित्र कहते हैं ,मित्रता में कभी स्वार्थ का भाव नहीं रहना चाहिए । जैसे भगवान कृष्ण और सुदामा का भाव था ।

मित्रता में कभी बड़ा और छोटा नहीं देखना चाहिए । भगवान तो भगवान थे लेकिन मित्र सुदामा को सिंहासन पर बैठाया और सुदामा जी के चरण धोए जल लाने मे रुकमणी मैया को देर हो गई तो भगवान कृष्ण प्रेम की करुणा में रोने लगे । नैनन के जल सो पग धोए विस्तार से कथा सुनाते हुए इसके बाद गुरुदेव ने अपने मुखारविंद से कृष्ण उद्धव संवाद सुनाते हुए भजन में भाव होकर भक्त नाचने लगे ।


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