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सिल्वर विजेता अमित को लोग पतलू कहकर चिढ़ाते थे, पिता ने फिटनेस के लिए रेस वॉक पर भेजा

नैरोबी। नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलिंपिक में भारत के 124 साल के ओलिंपिक इतिहास में पहली बार ट्रैक एंड फील्ड में मेडल जीता। नीरज बचपन में काफी मोटे थे और लोग उन्हें मोटू और सरपंच कहकर पुकारते थे। वे पतले होने के लिए पहले जिम गए और बाद में जेवलिन थ्रो करने लगे। वहीं नोरेबा में चल रहे अंडर-20 वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में शनिवार को रेस वॉक में सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रचने वाले रोहतक के अमित खत्री की कहानी इसकी उलट है। अमित काफी दुबले-पतले थे। गांव के लड़के कमजोर और पतलू कहकर चिढ़ाते थे।

अमित के पापा सुरेश कुमार बीएसएफ में थे। जब भी वे छुट्टियों में घर पर आते, तो लोग उन्हें टोकते कि उनका छोटा बेटा कमजोर है, उन्हें यह अच्छा नहीं लगता था। उन्होंने गांव के ही एक लड़के साथ अमित को रेस वॉक के लिए भेजना शुरू कर दिया, ताकि मेहनत करेगा तो उसे भूख लगेगी। धीरे-धीरे अमित रेस वॉक में ऐसे रम गए कि नेशनल में एक बार गोल्ड मेडल जीतने के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा और जूनियर के हर रिकॉर्ड को ब्रेक करते चले गए।

अमित के पापा सुरेश कहते हैं कि बेटे से गोल्ड मेडल जीतने की उम्मीद थी। उन्होंने दैनिक भास्कर को बताया कि दो बेटे हैं। अमित छोटा है। वह बचपन से ही कमजोर था। उनकी रुचि खाने-पीने की तरफ कम ही थी। अमित के पतले होने की वजह से गांव के लोग उसे कई नामों से पुकारते थे। मैंने गांव के एक लड़के साथ 2013 में रेस वॉक के लिए भेजा, कुछ ही दिनों में अमित ने इसमें अपना करियर बनाने का ठान लिया। 2018 में नेशनल में गोल्ड मेडल जीतने के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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