मेधा पाटकर ने कहा, मप्र को नहीं मिला अब पुनर्वास का मुआवजा
भोपाल। नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण की 92वीं बैठक में सरदार सरोवर की दीवार से लीकेज होने से बांध असुरक्षित होने से जलाशय का पानी न्यूनतम जलस्तर से भी नीचे उतारने का प्रस्ताव गुजरात ने किया है। बावजूद बांध को खाली करने के लिए छोड़ा जा रहा पानी गुजरात अपने हिस्से का नहीं मान रहा है, जबकि कानूनी तौर पर यह पानी गुजरात के हिस्से का ही होगा।
यह जानकारी मीडिया से सोमवार को नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर ने साझा की। उन्होंने बताया कि सरदार सरोवर बांध से करार के अनुसार मध्यप्रदेश को अब तक बिजली नहीं मिली है। यहां तक कि बिजली नहीं मिलने पर भरपाई के लिए मिलने वाले 904 करोड़ रुपए भी मध्यप्रदेश को नहीं मिले हैं। उन्होंने कहा कि अब बांध के खतरनाक होने की आड़ में गुजरात बांध के समानांतर बनाई गए इरीगेशन बायपास जो कि मुख्य नहर के नीचे हैं, उनको खाली करने की अनुमति ट्रिब्यूनल से मांग रहा है। पाटकर ने इसको धोखा बताते हुए कहा कि पूर्व में ट्रिब्यूनल से निर्धारित शर्तों का उल्लंघन गुजरात कर रहा है, जिससे मध्यप्रदेश को बिजली, राजस्व के साथ ही जमीन डूबने का नुकसान उठाना पड़ रहा है। पुनर्वास का पूरा पैसा मध्यप्रदेश को अभी तक नहीं दिया गया है।
नहीं चुकाया गया जंगल का मुआवजा
नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण में यह स्थापित हो चुका है कि महाराष्ट्र का 6488 हेक्टेयर और मध्यप्रदेश का 2700 हेक्टेयर जंगल नर्मदा में डूब चुका है। बावजूद इसके बदले मिलने वाला मुआवजा दोनों राज्यों को गुजरात की ओर से नहीं मिला है।
1000 क्यूसेक पानी छोड़ा गया
सरदार सरोवर बांध के जलस्तर को कम करने के लिए 600 क्यूसेक के बजाय 1000 क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है। इसमें भी छोडे जा रहे पानी को गुजरात अपने हिस्से का नहीं मान रहा है, जबकि कानूनी तौर पर छोड़ा जा रहा पानी गुजरात के हिस्से का होगा।
नवबंर की मीटिंग पर चुप्पी क्यों
सर्वोच्च न्यायालय ने 24 अक्टूबर 2019 को अपने आदेश में गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्यप्रदेश को पुनर्वास पर निर्णय लेने का अधिकार दिया था। इस पर नवंबर 2020 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने बैठक भी ली थी, लेकिन इसका खुलासा नहीं हो रहा।