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आरटीआई: 40 हजार रुपए वसूलने के बाद भी जानकारी नहीं दी, अफसर को जुर्माने का नोटिस


भोपाल। राज्य सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी ने आरटीआई के एक आवेदन में 40 हजार रुपए का शुल्क वसूलने के बावजूद जानकारी उपलब्ध नहीं कराने के मामले में दमोह जिले के एक अफसर पर 25 हजार रुपए के जुर्माने का नोटिस जारी किया है। यही नहीं आवेदक को 40 हजार रुपए की राशि लौटाने के आदेश भी दिए गए हैं।

सूचना के अधिकार के तहत पथरिया नगर पालिका में 16 अक्टूबर 2019 को आवेदक अनिल तिवारी ने तीन बिंदुओं की जानकारी चाही थी। तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी महेश सारिया ने उन्हें 8 नवंबर को 40 हजार रुपए के शुल्क का सूचना पत्र भेजा, क्योंकि चाही गई जानकारी से जुड़े दस्तावेजों की संख्या ज्यादा थी और यह अनुमानित  राशि फोटोकॉपी पर खर्च होना संभावित थी। आवेदक ने बाकायदा यह राशि जमा कराई, लेकिन बाद में उन्हें जानकारी नहीं दी गई। प्रथम अपील में आदेश हुआ कि जानकारी निशुल्क दी जाए और वसूली गई राशि वापस की जाए क्योंकि राशि जमा करने के बावजूद समय पर पूरी जानकारी नहीं दी गई है।

सूचना आयुक्त तिवारी ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि चार सालों की अति विस्तृत और अलग-अलग विषयों की एकमुश्त जानकारी का यह आवेदन मूलत: सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 6 (1) के अनुरूप विशिष्टपूर्ण न होने से तत्काल ही निरस्त करने योग्य था। लेकिन चाही गई जानकारी की लागत स्वरूप सूचना अधिकारी का 40 हजार रुपए के शुल्क का आकलन यह दर्शाता था कि विस्तृत होने के बावजूद दस्तावेज देने की मंशा जाहिर की गई है। कोई चीज छुपाई नहीं जा रही है। जटिल आवेदन के बावजूद यह एक समाधानकारक निर्णय था। लेकिन शुल्क वसूलने के बावजूद चाही गई जानकारी से आवेदक को वंचित रखना इस कानून का माखौल बनाना है। इससे यह ज्ञात हुआ कि दस्तावेजों का आकलन किए बिना मनमाने ढंग से 40 हजार रुपए की राशि किसी अंदाजे से ही वसूल ली गई जबकि देेने के लिए बिंदुवार जानकारी थी ही नहीं। दोषी अधिकारी को सूचना के अधिकार कानून की धारा 20 (1) के तहत अधिकतम शास्ति का कारण बताओ सूचना पत्र जारी किया गया है। इसके अंतर्गत 25 हजार रुपए अर्थदंड का प्रावधान है।

यह कानून एक ही आवेदन में अलग-अलग विषयों पर एकमुश्त और असीमित दस्तावेजों को हासिल करने का बेलगाम हक नहीं देता। ज्यादातर आवेदनों में लोग इस कानून के लागू होने के 16 साल बाद भी ऐसा ही करते हैं। ऐसे आवेदन सूचना अधिकारी के ही स्तर पर निरस्त करने योग्य हैं। ऐसे प्रकरण यह बताते हैं कि लोक सूचना अधिकारियों को सूचना के अधिकार में अपनी भूमिका का ज्ञान नहीं है।


-विजय मनोहर तिवारी, राज्य सूचना आयुक्त।

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